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Thursday, December 17, 2020

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए .......

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
अनकिये से वादे थे टूट गए

हाथ थामे कभी हम थे चले
आँखों में एक से सपने पले
संग-संग सब हंसे और खेले
पीड़ाओं में भी थे घुले-मिले

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
अनकिये से वादे थे टूट गए

रंगो के थे क्या मनहर मेले
बतकहियों के अनथक रेले
एक से बढ़के एक अलबेले
हर पीछे को बस आगे ठेले

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
अनकिये से वादे थे टूट गए

उलझाते सुलझाते हुए झमेले
फाग आग सब मिलकर झेले
हुए कभी न हम ऐसे अकेले
उन दिनों को अब कैसे भूलें 

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
अनकिये से वादे थे टूट गए 

हर रूठे को आवाज लगाऊं
रोऊं गाऊं और उन्हें मनाऊं
पर अब ये तो समझ न पाऊं
कि उन छूटे को कैसे बुलाऊं

कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
अनकिये से वादे थे टूट गए 


यह पावन भाव उन समस्त पथगामियों एवं पथप्रदर्शकों को निवेदित है जिन्होंने इस ब्लॉग जगत को विपुल समृद्धि प्रदान किया है । आज जो दृष्टिगत हैं वे निःसंदेह ह्रदयग्राही हैं पर हृदय दौर्बल्यता दबंग यादों को लिए हुए बारंबार उस कल्पतरु की छांव में जाना चाहता है जहां पुनः यह कहने की इच्छा बलवती होती जाती है --- ये ब्लॉगिंग है जनाब !

25 comments:

  1. आपकी पुरानी रचनाओं की स्वाद का सोंधापन भा गया।
    सभी रचनाएँ लाज़वाब है।
    आपका स्नेहिल आमंत्रण अवश्य रूठे-छूटों को खींच लायेगा:)
    सादर।

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  2. कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
    अनकिये से वादे थे टूट गए

    सही कहा छूटों को कैसे बूलाऊँ...लाजवाब लिखा है आपने और साथ ही पुरानी रचनाएं को इस तरह दर्शाना बहुत ही शानदार...
    एक से बढ़कर एक हैं सभी रचनाएं...।
    वाह!!!!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. हर रूठे को आवाज लगाऊं
    रोऊं गाऊं और उन्हें मनाऊं
    पर अब ये तो समझ न पाऊं
    कि उन छूटे को कैसे बुलाऊं..आपके सुंदर भावों के मोहपाश में बंधकर भूले बिसरे सब आना चाहेंगे..ईश्वर न करे कि कोई मजबूरी हो..।सुंदर रचनायें मन मोह गयीं..शुभकामनाएँ आपको..।

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  5. सादर नमन..
    आभार दीदी..
    अब सही और सटीक हूँ..
    सादर...
    यशोदा..

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  6. बहुत सुंदर सृजन

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  7. बहुत सुन्दर. पुकार पहुँचेगी, सब आएँगे. ब्लॉगिंग की जय!

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  8. कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
    अनकिये से वादे थे टूट गए ..
    अपनों की याद दिल से कभी नहीं जाती । अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  9. उलझाते सुलझाते हुए झमेले
    फाग आग सब मिलकर झेले
    हुए कभी न हम ऐसे अकेले
    उन दिनों को अब कैसे भूलें

    बहुत सुंदर रचना....
    हृदयस्पर्शी...

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  10. वाह लाजबाव मन को छूती हुई बेहतरीन रचना

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  11. समय की धारा आगे ही आगे बहती है, आपकी कविता पढ़कर यह गीत याद आ गया, ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना...

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  12. यही तो जीवन है कुछ रुठ जाते हैं कुछ छुट जाते हैं पर जीवन चलता रहता है बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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  13. कई ब्लॉगर साथी है जो अब भी बहुत याद आते हैं
    उनकी रचना अब भी बहलाती है उजड़े मन को।
    बहुत सुंदर रचना।

    नई रचना- समानता

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  14. हर रूठे को आवाज लगाऊं
    रोऊं गाऊं और उन्हें मनाऊं
    पर अब ये तो समझ न पाऊं
    कि उन छूटे को कैसे बुलाऊं

    सुन्दर रचना... कई बार यादें मीठी होती हैं... लेकिन जीवन का चक्र चलता ही रहता है.. गुजरी यादों को याद करती सुन्दर कविता...

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  15. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  16. बहुत कुछ छूटता ही कहां हैं! जिन भावनाओं और चिंताओं के प्रताप से ये पद्यावली जन्मी है, उनके प्रति सादर स्नेह अंजलि।

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  17. जीवन का ये एक यथार्थ रूप है,छुटना रूठना जुड़ना ।
    बहुत सुंदर लिखा है आपने। अहसासों को शब्द दे दिये।
    अप्रतिम।

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  18. लीजिये प्रभु यीशु ने हमें पढ़ने के लिए भेज दिया।

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  19. मैंने भी ब्लॉग पढ़ने के लिए बहुत से फिल्टर लगाए थे. वाकई कुछ
    कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
    अनकिये से वादे थे टूट गए

    कोई अफसोस नहीं.

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  20. हृदय से जो की गई पुकार ,फिर तो आना ही था !हमेशा की तरह बहुत सुन्दर रचना !!

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