ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ
सुना है जो हम हैं वही हमें चारों तरफ दिखाई पड़ता है । हमें जो बाहर दिखता है , वह हमारा ही प्रक्षेपण होता है । स्वभावत: हमारी चेतना जो जानती है उसी का रूप ले लेती है । इसलिए हम सुंदर को देखते हैं तो सुंदर हो जाते हैं , असुंदर को देखते हैं तो असुंदर हो जाते हैं । हमारे सारे भाव भी अज्ञात से आते हैं और हमें ही यह निर्णय करना होता है कि हम किस भाव को चुनें । ये भी सुना है कि संतुलन प्रकृति का शाश्वत नियम है । जैसे दिन-रात , सुख-दुख , अच्छाई-बुराई , शुभ-अशुभ , सुंदर-असुंदर आदि । बिल्कुल पानी से आधे भरे हुए गिलास की तरह । गिलास को हम कैसे देखते हैं वो हमारी दृष्टि पर निर्भर करता है ।
ये भी सुना है कि इन दृश्य और अदृश्य के बीच भी बहुत कुछ है जो तर्कातीत है । काव्य उन्हीं को देखने और दिखाने की कला है । तब तो साधारण से कुछ शब्द आपस में जुड़ कर असाधारण हो जाते हैं और इनका उद्गार हमें रससिक्त करता है । साथ ही हमारा अस्तित्व आह्लादित होकर और प्रगाढ़ होता है । हम किन भावों को साध रहे हैं इतनी दृष्टि तो हमारे पास है ही । आइए ! उन्हीं भावों का हम खुलकर आदान-प्रदान करें हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ।
न जाने कितनी भावनाऐं , भीतर-भीतर ही
उमड़-घुमड़ कर , बरस जाती हैं
जब तक हम समझते , तब तक
शब्दों के छतरियों के बिना ही
हमें भींगते हुए छोड़कर , बह जाती है
आओ ! मिलकर हम
छतरियों की , अदला-बदली करें
भाव बह रहें हैं , थोड़ा जल्दी करें
एक-दूसरे के हृदय को , खटखटाएं
कुछ हम सुने , कुछ कहलवाएं
बांधे हर बिखरे मन को
उन के हर एक सूनेपन को
आओ ! सब मिलकर , साथ-साथ शब्द साधें
गुमसुम , गुपचुप यह जीवन कटे
छाई हुई उदासियों का , आवरण हटे
शब्द-शब्द से मुस्कानों को , गतिमय बनाएं
आओ ! हर एक भाव में , पूरी तरह तन्मय हो जाएं .
वाह!! अनुपम बात की है। तर्कातीत। परस्पर छतरियां बदलना अच्छा रहेगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteन जाने कितनी भावनाऐं, भीतर-भीतर ही
Deleteउमड़-घुमड़ कर, बरस जाती हैं
जब तक हम समझते, तब तक
शब्दों के छतरियों के बिना ही
हमें भींगते हुए छोड़कर, बह जाती है.............................
इन पंक्तियों में उठे भाव एवं विचार कवयित्रियों-कवियों, लेखिकाओं-लेखकों तथा यहां तक कि साधारण व्यक्तियों की केन्द्रीय भावनाओं में हमेशा होते हैं। परन्तु हर बार या बार-बार प्रकट नहीं हो पाते। अत्यंत संवदेनशील बिंदु पर ध्यानाकर्षण कराया है। कविता में गुंथकर यह बिंदु अविस्मरणीय हो गया है।
सचमुच एक बहुत सरस सफल रचना | बधाई के साथ नये वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....
ReplyDeleteछाई हुई उदासियों का , आवरण हटे
ReplyDelete-डिट्टो-
आओ हम सब मिलकर शब्दों को साथ-साथ साधे।
ReplyDelete-------------------------------------
बहुत सुंदर। आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बेहतरीन भाव संयोजन। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌹🙏
ReplyDeleteप्रिय अमृता जी
ReplyDeleteवाह...
बहुत अच्छे भाव 👌👌👌👌
नववर्ष मंगलमय हो 💐🌺🌹💐
हार्दिक शुभकामनाएं,
- डॉ. वर्षा सिंह
कुछ अच्छा हो केवल अपने लिए नहीं, अपितु सबके कल्याण के लिए तो मन को सुकून मिलना तय होता है, लोकहित में जीने वाले कभी दुखी नहीं रहते बस यही ख्याल हमेशा मन रहे तो यह धरती स्वर्ग बन जाय!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
वाह ! बहुत सुंदर कल्पना, भाव विभोर होने और भाव विभोर करने का नाम ही तो काव्य है। नव वर्ष में नया सृजन हो और ब्लॉग जगत इसी तरह सरसता का वाहक बना रहे
ReplyDelete"शब्द-शब्द से मुस्कानों को , गतिमय बनाएं
ReplyDeleteआओ ! हर एक भाव में , पूरी तरह तन्मय हो जाएं"
बहुत ही बढ़िया।
🙏नववर्ष 2021 आपको सपरिवार शुभऔर मंगलमय हो 🙏
सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआओ ! सब मिलकर , साथ-साथ शब्द साधें
ReplyDeleteगुमसुम , गुपचुप यह जीवन कटे
छाई हुई उदासियों का , आवरण हटे
शब्द-शब्द से मुस्कानों को , गतिमय बनाएं
आओ ! हर एक भाव में , पूरी तरह तन्मय हो जाएं वाह!
कितनी सुंदर।
सहज।
सार्थक रचना।
आशीष शुभकामनाओं के साथ सादर।
गुमसुम , गुपचुप यह जीवन कटे
ReplyDeleteछाई हुई उदासियों का , आवरण हटे
शब्द-शब्द से मुस्कानों को , गतिमय बनाएं
आओ ! हर एक भाव में , पूरी तरह तन्मय हो जाएं .
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति,अमृता दी।
एक-दूसरे के हृदय को , खटखटाएं
ReplyDeleteकुछ हम सुने , कुछ कहलवाएं
बांधे हर बिखरे मन को
उन के हर एक सूनेपन को
आओ ! सब मिलकर , साथ-साथ शब्द साधें
वाह!!!
अनुपम अद्भुत अप्रतिम सृजन
बहुत ही लाजवाब ...
पढ़कर मन को शांति एवं सुकून प्राप्त हुआ..बेहतरीन रचना
ReplyDeleteदार्शनिक रचना । पर मेरा दर्शन थोड़ा भटका हुआ सा है, बंजारे सा ...जिसकी कुछ भेंड़ें इधर-उधर हो गयी हैं । जब मैं रोती-बिलखती अफ़गानी बच्चियों को घसीटते हुये किसी तालिब को देखता हूँ तो मैं तालिब नहीं हो पाता बल्कि भयभीत हो जाता हूँ जो उस दृश्य का फ़िज़ियोलॉज़िकल इफ़ेक्ट होता है । जब मैं अशरफ़ गनी और जो बाइडन जैसे इंसानियत के लिये गद्दारों को देखता हूँ तो भयभीत हो जाता हूँ ..कि हम कैसी सभ्यता के प्रतीक बन रहे हैं । रउवा हमरी बतिया पर रिसइहा झन, हम त बंजारा बानी ।
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