मीलों दूर बैठा मन
उत्सुक है , बहुत आतुर है
जानने को पीड़ित है
क्रांतिक्षेत्र / शांतिक्षेत्र में ये क्या हो रहा है
सत्य और न्याय के लिए अब और युद्ध नहीं होना चाहिए
इसलिए मनुपुत्रों ने लाखों- करोड़ों युद्धों को
सफलतापूर्वक संपन्न कराने के बाद
लिए गए अघोषित सौगंध और शांति से किये अनुबंध के कारण
कुरुक्षेत्र का बहिष्कार कर रहे हैं और शांतिक्षेत्र में जमें हैं
शांति समर्थक और उनके विरोधी क्या- क्या कर रहे हैं
ये जानने के लिए मन बड़ा व्यग्र है इसलिए वह
कभी टीवी खोलता तो कभी अखबार पलटता है
मोबाइल में न्यूज नोटिफिकेशन पर पल- पल नजर रखता है
चौबीसों घंटे सोशल मीडिया का खाक छानते रहता है
विदेशी न्यूज़ एजेंसी पर भी ताका-झांकी करके
सेंसर किया गया गुप्त जानकारियां पाना चाहता है
परिचितों को भी फोन लगाकर आँखो देखा हाल जानना चाहता है
चाहे वो हमारी तरह मीलों दूर ही क्यों न हो
भले ही ऊपर- ऊपर से दिखाई पड़ती आँखे हैं
पर हम अंधों की जिज्ञासाओं का कोई अंत नहीं है
बात यदि शांति स्थापित करने की हो तो अशांति स्वभाविक है
हम तक छन- छन कर जो खबरें आ रही है
उसके आधार पर यही लग रहा है कि
चारों ओर शांति के मुक्तसैनिक मोर्चा संभाले हुए है
बड़ी ही शांति पूर्वक एक नई दुनिया बनाने की पहल करते हुए
मानव को पहले के वनिस्पत कुछ अधिक सभ्य , सुसंस्कृत दिखाते हुए
युगों- युगों से शोषण के शिकार स्वार्थ के शासन के
कदमों में श्रद्धा से चढ़ाए गए वर्तमान और भविष्य को
चक्रवृद्धि ब्याज सहित लौटाने के आग्रहों का भेंट देकर
बदले में सभ्येतर प्रतीक्षा को सलीका से ओढ़कर सब डटे हुए हैं
युगों- युगों से चढ़ी कई- कई परतों वाली संतुष्टि के प्लास्टर के भीतर
भरभराते दरारों की दबायी- छुपायी हुई
दमन की गाथाओं को चुन- चुनकर चिन्हित कर रहे हैं
परंपराओं की जमी सीमेंट को क्रांति की नोंक से खुरच रहे हैं
रूढ़िग्रस्त चिंतनों की नींव से धीरे- धीरे एक- एक ईंट निकाल रहे हैं
संरक्षित खंडहरों को सम्मानित ढंग से सलामी देकर विदा कर रहे हैं
उन शांति के मुक्तिसैनिकों में शामिल होने की हमारी भी पूरी अर्हता है
पर परंपराओं का क्रुर कानून इजाजत नहीं देता है शांतिपूर्ण क्रांति का
मन का देश आज भी गुलाम है युद्धरत शांतिदूतों के आगे .
आज के संजय की आंख। सुन्दर।
ReplyDeleteगहन चिंतन से उपजी रचना.. साक्षी होने के सिवाय हम कुछ भी तो नहीं कर सकते
ReplyDelete.....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शंशं
बहुत सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteमन का देश आज भी गुलाम है युद्धरत शांतिदूतों के आगे ....
ReplyDeleteचेतनाओं को झंकृत करती हुई बेहतरीन रचना आदरणीया अमृता जी।
शांतिदूत हों या क्रांतिदूत, सभी ज़मीन कब्ज़ाने के लफड़े हैं. कविता बहुत सुंदर है.
ReplyDeleteबस एक तकनीक ही सच। ..बांकी सब कहने, सुनाने वाले विश्वास योग्य नहीं।
ReplyDeleteसचमुच पराधीनता है।
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