मेरे भावों के समंदर में
तरह-तरह की लहरें
तरह-तरह की तरंग है ...
मेरे होने का
यही ढंग है
कभी बांसों-बांस
उछल जाती लहरें
कभी किनारे से लग
चुप हो जाती लहरें
कभी अपने ही तल में जा
छुप जाती लहरें
विपरीत से ही जीवन में
सारा उधम और उमंग है...
मेरे होने का
यही ढंग है
कभी हवाओं की धड़कन पर
थिरक जाती लहरें
कभी बादलों को देख
ललच जाती लहरें
कभी चाँद के छुअन से
सिहर जाती लहरें
सरपट समय जो सरका दे
बस वही मेरे संग है ...
मेरे होने का
यही ढंग है
कभी मुक्त राग में
गुनगुनाती लहरें
कभी पगुराए पत्थरों पर
कमल खिलाती लहरें
कभी मोतीवलियों से ही
सज जाती लहरें
लहर-लहर पर तिरता
पल-पल बदलता रंग है ...
जिसे देखकर
झलझलाया समंदर खुद ही
चकित और दंग है ...
क्या कहूँ ?
मेरे होने का
यही ढंग है .
एक और सुन्दर रचना !
ReplyDeleteजीवन की विशिष्टता ही हमें विशेष बनाता है।
ReplyDeleteविचारों का ज्वार, यही है परिचय..
ReplyDeleteअहसासों को जीना ही जिंदगी है
ReplyDeleteRECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
अजब निराला ढंग है, लहर लहर लहराय |
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रंग है, सहलाए टकराय |
सहलाए टकराय, सदा आनंदित करती |
हुई कभी जो शांत, उदासी कैसी भरती |
लहरे सारी देह, नेह की मेह पुकारे |
अवगाहन की चाह, सुनो हे मोहन प्यारे ||
जीवन लहरियों पर लहराती कविता. रविकर ने जो कहा है उससे अधिक क्या कहा जाए. बहुत खूब.
ReplyDeleteAABHAAR
Deleteबहुत अच्छी रचना है, बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteAdbhut aur amritmay rang hai ...
ReplyDeletebahut sundar rachna ...
अनुभूतियों के ताप में
ReplyDeleteकथा कहता मन....
आत्मीय भाषा में
अपने आप का स्पर्श.................
यही होना शाश्वत है
ReplyDeleteविपरीत से ही जीवन में
ReplyDeleteसारा उधम और उमंग है...
...बिलकुल सच कहा...बहुत उत्कृष्ट लगा यह होने का ढंग...
Very special waves :-)Full of emotions and devotion!
ReplyDeleteयही जिन्दगी है..सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकभी पगुराए पत्थरों पर
ReplyDeleteकमल खिलाती लहरें
कभी मोतीवलियों से ही
सज जाती लहरें
लहर-लहर पर तिरता
पल-पल बदलता रंग है ...
.........सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteमेरे होने का
यही ढंग है
kya khoob dhang hai...bahut sundar:-)
आज भले कूड़े दान में जा रही हैं बेटियाँ ,
ReplyDeleteकल सबक सिखाएंगी यही बेटियाँ ,|
देखें तब कौन करें इनकी हेटियाँ .
बिजली सी चमकेंगी यही बेटियाँ ||
हिला हुआ समाज है आरक्षण की बेड़ियाँ ,
टूटेंगी ये सामाजिक झडबेरियाँ |
राज करेंगी बेटियाँ ,मार्ग गढ़ेंगी बेटियाँ ,
सुयश दिलावाएंगी यही बेटियाँ .
ये आरक्षण बला क्यों है ?
चला ये सिलसिला क्यों है ?
बदलते रंग पत्ते ,
पतझड़ से गिला क्यों है ?
गंधाती अब सियासत ,
चयन से गिला क्यों है ?
बिकाऊ वोट तेरा ,
फिर मांझी से गिला क्यों है ?
रुख हवा का जिधर का है ,
उधर के हम हैं ,
भें हम लहरों के संग ,
रुकें हम ,लहरों के संग .
न हों छाती पे हलचल ,
सुनामी अबिस (abyss)में हम,
है ये आवेग तट पर ,
हम हैं आवेग संग संग .
बेहतरीन भाव अभिव्यंजना .....बहे लहरों के संग संग .....
कभी बांसों-बांस
उछल जाती लहरें
कभी किनारे से लग
चुप हो जाती लहरें
कभी अपने ही तल में जा
छुप जाती लहरें
विपरीत से ही जीवन में
सारा उधम और उमंग है...
मेरे होने का
यही ढंग है ,
..................
बस उत्ताल तरंग
मेरे संग ...
बढ़िया रचना ...
अबिस =गहरा समुंद (समुन्दर ,समुद्र ,सागर ,समंदर ).
रुख हवा का जिधर का है ,
ReplyDeleteउधर के हम हैं ,
बहें हम लहरों के संग ,
रुकें हम ,लहरों के संग .
न हों छाती पे हलचल ,
सुनामी अबिस (abyss)में हम,
है ये आवेग तट पर ,
हम हैं आवेग संग संग .
बेहतरीन भाव अभिव्यंजना .....बहे लहरों के संग संग .....
कभी बांसों-बांस
उछल जाती लहरें
कभी किनारे से लग
चुप हो जाती लहरें
कभी अपने ही तल में जा
छुप जाती लहरें
विपरीत से ही जीवन में
सारा उधम और उमंग है...
मेरे होने का
यही ढंग है ,
..................
बस उत्ताल तरंग
मेरे संग ...
बढ़िया रचना ...
अबिस =गहरा समुंद (समुन्दर ,समुद्र ,सागर ,समंदर ).
Amrita,
ReplyDeleteJEEVAN KE VIBHIN RANGON KA VARNAN SUNDAR SHABDON MEIN KIYAA HAI.
Take care
लहरें, तरंग और उमंग, जीवन का सबसे निराला ढंग... वाह अमृता जी बहुत सुन्दर भाव... बधाई
ReplyDeleteआपके होने का ढंग दंग कर रहा है जी.
ReplyDeleteसुन्दर रंगारंग प्रस्तुति के लिए आभार,अमृता जी.
Beeautiful...
ReplyDeleteशुभप्रभात !
ReplyDeleteविपरीत से ही जीवन में
सारा उधम और उमंग है...
बहुत खूब !
मेरे होने का यही ढंग है :)
आपके जीवन के इस ढंग के हम मुरीद हुए ...
ReplyDeleteबेहतरीन !
बेहद खूबसूरत ढंग है ये.. अनुसरण करने को जी चाहता है.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपने जीवन की लहरों के खेल का अद्भुत चित्रण किया है। इसके बरक़्श आपने अपने जीने के ढंग को देखा है। कोई अतिश्योक्ति नहीं कि जल और जीवन का रिश्ता बहुत गहरा है। तालाब के ठहरे हुए पानी से, झरनों की उछलती कूदती जलधाराओं, नदियों की बलखाती मद्धम-तेज लहरों से लेकर समुंदर की अगम गहराइयों का स्थिरिता और सतह की शोर मचाती बेचैनी,उछलकूद-आपाधापी,किनारों से मिलने औऱ वापस लौट जाने का अनवरत सिलसिला और चांद के प्रति अबूझ प्यार। जो अभिव्यक्ति पाती है चांदनी रातों में समुंदर की आसमान छूती लहरों में। नदियों के श्रोतों में जीवन के भी तमाम श्रोत छिपे हैं। जो मन की गहराइयों से बार-बार निकल-निकल बाहर आते हैं और हमें खुद अपने जीने के ढंग पर हैरान करते हैं। जीवन के विरोधाभाषों की तरह। स्वागत है।
ReplyDeleteअमृता जी, बहुत सुंदर लगा लहरों का यह नृत्य और जीवन का यह ढंग...मुबारक हो !
ReplyDeleteविपरीत से ही जीवन में
ReplyDeleteसारा उधम और उमंग है...
बहुत ही गहन और सुन्दर है ये पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए ।
हमेशा की तरह आपकी लेखनी के माया जाल और शैली की उत्कृष्टता से अभिभूत हूँ .....
ReplyDeleteकभी मुक्त राग में
ReplyDeleteगुनगुनाती लहरें
कभी पगुराए पत्थरों पर
कमल खिलाती लहरें
कभी मोतीवलियों से ही
सज जाती लहरें
बहुत खूबसूरत ढंग है आपके होने का
आपके होने का ढंग प्रभावित करता है . अद्योपरांत . कई बार शब्द नहीं होते
ReplyDeleteजिसे देखकर
ReplyDeleteझलझलाया समंदर खुद ही
चकित और दंग है ...
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार....
adbhut..
ReplyDeleteजिसे देखकर
ReplyDeleteझलझलाया समंदर खुद ही
चकित और दंग है ...
क्या कहूँ ?
मेरे होने का
यही ढंग है . bahut achhi rachana likhi hai apne .......ak shayar ko padha tha बस समंदर देख ली मैंने तेरी दरियादिली |
त्रिश्ना लब रखा सदफ बूद पानी का ना दी ||
lekin yahan sb kuchh palat gaya hai nayee drshti mili .....abhar ke stth badhai amrta ji
निराला ढंग. वाह अमृता जी.
ReplyDeleteविपरीत से ही जीवन में
ReplyDeleteसारा उधम और उमंग है...
...बिलकुल सच अमृता जी
नई पोस्ट .उजला आसमा
पर आपका स्वगत है