कवि का क्या भरोसा ?
कब क्या कह दे
मात खायी बाज़ी पर भी
शह पर शह दे...
कविता का क्या मोल है ?
हिसाब में बड़ा झोल है...
क्या ये नारियल का खोल है ?
या फूटी हुई ढोल है ?
इससे न तो पेट भरता है
न ही तन ढकता है
न ही छप्पड़ बन कर
किसी के सर पर लटकता है
तो कोई कवि कविता क्यों कहता है ?
बर्दाश्त की सारी हदों को
बार-बार जानबूझकर तोड़ता है
आह-वाह सुनने के लिए
लार बनकर टपकता है...
उससे कुछ पूछो तो -
स्वांत: सुखाय रटता है ...
ये कवि -जमात बड़ा ही
ख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
ये कवि -जमात बड़ा ही
ReplyDeleteख़तरनाक मालूम होता है
:) :) sachh :D
इन बेचारे शब्द-जीवियों पर कोई भरोसा नहीं करता फिर भी इनका आत्मविश्वास देखने लायक होता है :))
ReplyDeleteकविता कर कर के करे, कवि कुल आत्मोत्थान ।
ReplyDeleteजैसे योगी तन्मयी, करे ईश का ध्यान ।
करे ईश का ध्यान, शान में पढ़े कसीदे ।
भावों में ले ढाल, ढाल से सौ उम्मीदें ।
रोके तेज कटार, व्यंग वाणों को रविकर ।
कायम रख ईमान, हमेशा कविता कर कर ।।
ये कवि -जमात बड़ा ही
ReplyDeleteख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
इस मर्तबा नै ज़मीन तोड़ी है ,कविता भी नहीं छोड़ी है ,
कहता है फूंक फूंक ग़ज़लें शायर दुनिया का जला हुआ ,
उसके जैसा चेहरा देखा एक पीला तोता हरा हुआ ,
आंसू सूखा कहकहा हुआ .
पानी सूखा तो हवा हुआ .
वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान ,
निकल कर अधरों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान .
क्रोंच (नर पक्षी )के बहेलिया द्वारा मारे जाने पर वाल्मीकि ऋषि के मुख से कुछ निकला था ,शायद वही पहली कविता थी ,जो आज इस मोड़ पे आगई ,अपना ही उपहास करवा गई .
अमृता जी छा गईं .
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
आलमी होचुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी किश्त )
http://veerubhai1947.blogspot.com
कविता हो,या कहानी.... नहीं कुछ भी बेमानी.भले इससे तन ना ढंके,भूख ना मिटे,-पर एक अव्यक्त सुकून मिलता है
ReplyDeleteवाह: क्या बात है..?अच्छा अंदाज है..
ReplyDeleteगहन भाव लिए सशक्त लेखन ...आभार
ReplyDelete्बडी गज़ब की प्रस्तुति है।
ReplyDeleteसशक्त उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये बधाई ,,,,अमृता जी
ReplyDeleteक्या अपनी, परिभाषा लिख दूँ
क्या अपनी,अभिलाषा लिख दूँ
शस्त्र कलम को, जब भी कर दूँ
तख्तो त्ताज ,बदल के रख दूँ
केंद्र बिंदु, मष्तिक है मेरा
नये विषय का , लगता फेरा
लिखता जो , मन मेरा करता
मेरी कलम से , कायर डरता
क्रोधित होकर कभी न लिखता
सदा सहज बन कर ही रहता
विरह वेदना ,पर भी लिखता
प्यार भरी भी , रचना करता
कभी नयन को,रक्तिम करता
कभी मौन हूँ, सब को करता
कभी वीरता के , गुण गाता
दुर्गुण को भी , दूर भगाता
मन मेरा है, उड़ता रहता
अहंकार से , हरदम लड़ता
गुनी जनीं का ,आदर करता
सारा जग,कवि मुझको कहता,,,,,
RECENT POST -मेरे सपनो का भारत
अमृता जी, पंछी क्यों उड़ता है, सूरज क्यों जलता है..कवि कवि है इसलिए कविता करता है, कवि न होता तो जो होता वही करता जैसे आलू बेचता या टीवी पर शो करता...वैसे आपकी कविता बहुत अच्छी है.
ReplyDeleteछा गयी अमृता जी.....क्या कहूँ शब्द नहीं है मेरे पास.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
ReplyDeleteकवि तो वे भी कह देते हैं जैसा कि एक कवि ने ही कहा है -
ReplyDeleteजहां न जाए रवि,
वहां जाए कवि।
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
ReplyDeleteडाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है
कवि कुछ-कुछ सिरफिरा कहलाता है
ReplyDeleteसच में कवि का क्या भरोसा... :)
ऑपरेशन ग़लतफ़हमी और ऑपरेशन अफवाह के बीच
ReplyDeleteझूलता ये कवि जमात और कुछ कर भी तो नहीं सकता...
कवि को ग़लतफ़हमी ये कि..... उसके रचे शब्दों का सर्वाधिकार सुरक्षित रहे....
लोगों के बीच फैला अफवाह ये कि... क्या भरोसा.....कब क्या कह दे.....
.................................
मीर तकी मीर ने कितना सटीक कहा है.....
ये उदास-उदास चेहरे, ये हंसी-हंसी तबस्सुम
तेरी अंजुमन में शायद कोई आईना नहीं है
.............................
ये कवि बड़ा ही जीवट शै है ...
ReplyDeleteशब्दों के साथ खेलता है ... जादू रचता है ...
बहुत उम्दा ...
जोरदार कविताई!
ReplyDeleteजब विषय कुछ न मिले तो भी कवि जोरदाकर कविता लिखता है।:)
ये कवि -जमात बड़ा ही
ReplyDeleteख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
कवि की यही बेबाकी उसे अन्य लोगो से भीड़ में ही अलग बनाती है
शब्द ऊर्जावान होते हैं, उन्हें सम्हालना ही होगा।
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteAGAR KAVI NIDAR NAA HOTE TO HAMEIN PREM KAA KAISE PATAA LAGTAA?
Take care
Ye kavi bhi kitane ajib hote hain n!
ReplyDeleteवाह वाह......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
निराले लोग...निराली बात...
अनु
सशक्त लेखन ... बहुत बढ़िया...........आभार
ReplyDeleteउससे कुछ पूछो तो -
ReplyDeleteस्वांत: सुखाय रटता है ...
ये कवि -जमात बड़ा ही
ख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
वाह...वाह...
:)))))
:) आज तो हवा दूसरी दिशा में ही बह रही है!
ReplyDeleteहँसने की बात करो तो
ReplyDeleteऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
आत्म मंथन पर मजबूर कर दिया आपने तो
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_14.html
ReplyDeletekhatarnak kaviyon ka khaka khinch diya aapne:)
ReplyDeleteअब इतना धो-धो के धोबीपाट देंगी तो कौन हिम्मत करेगा कवि कहलाने की। हां नहीं तो
ReplyDeletesach likha lekin ek baat to kahni padegi chaahe lekhak dusre k dard pe daka daal k rota hai magar aaj aisa kon jo dosron k dard pe roye.
ReplyDeleteसचमुच बड़ा ही कोमल होता है कवि ह्रदय...लाज़वाब रचना...
ReplyDeleteहिंदी दिवस की शुभकामनाये...
कवि ... शायद बहुत भावुक होता है हर बात उसके मन को उदद्वेलित करती है ॥फिर चाहे खुद आ दर्द हो या किसी और का ... कवि की कल्पना तो न जाने कहाँ से कहाँ ले जाती है ....
ReplyDeleteएक अलग रंग की रचना
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
ReplyDeleteअपनी कविता को ढ़ोता है ....
तभी कवि सबसे अलग होता है अपनी ही सोच के साथ वो कुछ खास है ...
ये कवि -जमात बड़ा ही
ReplyDeleteख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है .
अजी कविता तो वो हथियार है जहां तलवार काम नहीं करती वहां कविता करती है बढ़िया प्रस्तुति
कवि की खबर लेने वाली कविता का स्वागत है। कई अहम सवालों की तरफ ध्यान खींचती कविता। जो कवि के जमात में तब्दील होने और गुटबाजी में शामिल होने के कुचक्र की तरफ भी खामोशा इशारा करती है। स्वागत है।
ReplyDeleteपहली बार आपकी कविता एक ही बार में पढ़ ली...और समझ ली.....आभार ! जोक्स अपार्ट .....सच कहा आपने ...लोग हालाँकि इस जमात से बहुत डरते हैं .....फिर भी ...!!!!
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
sundar sarthak lekhan ......ये कवि -जमात बड़ा ही
ReplyDeleteख़तरनाक मालूम होता है
दिनदहाड़े सबके दर्द पर
डाका डालकर रोता है
हँसने की बात करो तो
ऐसे आपा खोता है
और रक्त-निचुड़े शब्दों पर ही
अपनी कविता को ढ़ोता है ...kavi aur kavita ka sarthak chitran
बहुत खूब सार्थक रचना |
ReplyDeletesach hi hai ...kavi jo na kahe so thoda hai ...!!
ReplyDeletesarthak baat ...!!
आप तो कवि हैं अमृता जी.
ReplyDeleteखूब कटाक्ष किया है आपने स्वयं पर ही.
कवि की छवि खुद कवि ही समझ सकता है जी.
हम तो वाह वाह करने वालों की जमात में ही है,
आज 18/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteमजेदार रचना..
ReplyDelete:-)