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Wednesday, September 26, 2012

आओ , भेंट ले हम ...


हर रात को
पूनो की रात की तरह
आओ , भेंट ले हम ...
टुकड़े -टुकड़े में
फैली चांदी को
श्वास -श्वास में
श्लोकबद्ध कर फेंट ले हम ...
बिखरे -बिखरे से
सन्न सन्नाटे में जरा -जरा सा
लंगर कर लेट ले हम ...
और छिटकी -छिटकी
पारे की तरह बातों को
उँगलियों के पोरों से
सटा -सटा कर समेट ले हम ...
फिर उलटे -पलटे
कांच के कंचे से
अयाचित अनुभवों को
इसी क्षण के धागे में
मजबूती से लपेट ले हम ...
व तरल -तरल में
आश्चर्य के बहते लावा को
जमने से पहले ही
चट -पट चहेट ले हम ...
अहा! कितनी सुन्दर रात है
चूकती सन्नाटे में भी कुछ बात है ...
स्निग्ध -स्नेह बरसा -बरसा कर
रह -रह मुस्काता आसमान है ...
कणभर की तृप्ति ही सही
कण -कण से फूट -फूट कर
हर ओर भासमान है ...
अचानक
हमारी ही सीपी खुल जाती है ...
इक बूँद ही सही
उसमें गिर जाती है ...
जो हमारा ही
अनमोल मोती बन जाता है
और उस बरसते रस को
इक उसी क्षण में
खुलकर ग्रहण करना
बड़ी सहजता से
हमें ही सिखलाता है . 

28 comments:

  1. उस बरसते रस को
    इक उसी क्षण में
    खुलकर ग्रहण करना
    बड़ी सहजता से
    हमें ही सिखलाता है ...सीप सा खुलना,खुद में मोती बनना,यह सीख ही सुनहरा भविष्य है

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  2. अहा! कितनी सुन्दर रात है
    अलमस्त चांदनी में चमका जज्बात है
    मिलन की बेला में आधी -पौनी बात है

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  3. Amrita,

    KISI BHI SABAK KO SIKHNAA HAMAARI TATPARTAA PAR HAI.

    Take care

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  4. जब आयेगी बूँद, सीप स्वतः खुल जायेगी..

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  5. आश्चर्य के बहते लावा को
    जमने से पहले ही
    चट -पट चहेट ले हम

    बहुत खुबसूरत अंतर्मन के भावों की अभिव्यक्ति

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  6. अंतर्मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. मनोभावों की खूबशूरत आभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST : गीत,

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  8. सीपी खुली एक और अनमोल मोती बन गया... शुभकामनाये

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  9. और छिटकी -छिटकी
    पारे की तरह बातों को
    उँगलियों के पोरों से
    सटा -सटा कर समेट ले हम ...

    बहुत सुंदर .... और जब सीपी का मुंह खुलते ही बूंद गिरेगी तो मोती तो बनेगा ही .... गहन अभिव्यक्ति

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  10. इक पल ॥इक युग सा ॥
    हर पल उस पल सा ...
    मोतियों की माला बना जाये ...
    जीवन सौन्दर्य से भर जाये ...
    बस मन मे प्रेम ही प्रेम हो ...
    आदि से अनंत तक ....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  11. बहुत सुंदर रचना


    अहा! कितनी सुन्दर रात है
    चूकती सन्नाटे में भी कुछ बात है ...
    स्निग्ध -स्नेह बरसा -बरसा कर
    रह -रह मुस्काता आसमान है ...
    कणभर की तृप्ति ही सही
    कण -कण से फूट -फूट कर
    हर ओर भासमान है ...

    क्या बात
    शुभकामनाएं

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  12. और उस बरसते रस को
    इक उसी क्षण में
    खुलकर ग्रहण करना
    बड़ी सहजता से
    हमें ही सिखलाता है . waah...bahut khoob.

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  13. बहुत ही उम्दा और अलग ढंग की कविता |

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  14. पूनो की रात ...शब्दों की चाशनी से लिपटी ...मन के सीप में मोती की बूँद !
    शब्द चमत्कार करती हैं आप !

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  15. नए प्रतीक नए शब्द और खूबसूरत सन्देश ...

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  16. Behtarin rachana, sabdo ka jal bun na koi aap se sikhe
    From India

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  17. हमारी ही सीपी खुल जाती है ...
    इक बूँद ही सही
    उसमें गिर जाती है ...
    जो हमारा ही
    अनमोल मोती बन जाता है

    वाह बहुत सुन्दर ।

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  18. बहुत सुन्दर.
    विलक्षण काव्य प्रतिभा है आप में.
    मद मद मदमाती हुई
    हृदय को हुल हुल हर्षाती हुई.
    वाह!

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  19. बहुत रोमांटिक रेसिपी.

    सुंदर शब्द चयन और सयोजन. बधाई.

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  20. अमृता हर बार की तरह इस बार भी उम्दा रचना

    "तरल -तरल में
    आश्चर्य के बहते लावा को
    जमने से पहले ही
    चट -पट चहेट ले हम ..."

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  21. शब्दों से पूनो की रात की तरह अमृत रस बरस रहा है. अति सुन्दर

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  22. बहुत सुंदर बन पड़ी है यह कविता. सभी बिंब इतने ठोस हो कर उभरते हैं कि अपने अर्थ की गहरी छाप छोड़ जाते हैं.

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  23. You weave a web of words, she is wonderful and amazing writer. From Our India

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  24. अपने अन्दर का चाँद अपने अन्दर की पूनो को कोई पूर्णिमा में मिलाना सीखे .अमृत रस नाभि से निकाल अपनी ही पीना सीखे .कमाल का रूपक और तमाम बिम्ब रचना अपने लघु कलेवर में समेटे है अभिसार का एक पूरा आसमां कैद है रचना में .

    सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
    सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,

    सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html

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  25. वाह ! पूनो की रात का ऐसा विस्मित कर देने वाला वर्णन अनोखा है.. शब्दों पर आपकी गहरी पकड़ है, बधाई !

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