हर रात को
पूनो की रात की तरह
आओ , भेंट ले हम ...
टुकड़े -टुकड़े में
फैली चांदी को
श्वास -श्वास में
श्लोकबद्ध कर फेंट ले हम ...
बिखरे -बिखरे से
सन्न सन्नाटे में जरा -जरा सा
लंगर कर लेट ले हम ...
और छिटकी -छिटकी
पारे की तरह बातों को
उँगलियों के पोरों से
सटा -सटा कर समेट ले हम ...
फिर उलटे -पलटे
कांच के कंचे से
अयाचित अनुभवों को
इसी क्षण के धागे में
मजबूती से लपेट ले हम ...
व तरल -तरल में
आश्चर्य के बहते लावा को
जमने से पहले ही
चट -पट चहेट ले हम ...
अहा! कितनी सुन्दर रात है
चूकती सन्नाटे में भी कुछ बात है ...
स्निग्ध -स्नेह बरसा -बरसा कर
रह -रह मुस्काता आसमान है ...
कणभर की तृप्ति ही सही
कण -कण से फूट -फूट कर
हर ओर भासमान है ...
अचानक
हमारी ही सीपी खुल जाती है ...
इक बूँद ही सही
उसमें गिर जाती है ...
जो हमारा ही
अनमोल मोती बन जाता है
और उस बरसते रस को
इक उसी क्षण में
खुलकर ग्रहण करना
बड़ी सहजता से
हमें ही सिखलाता है .
उस बरसते रस को
ReplyDeleteइक उसी क्षण में
खुलकर ग्रहण करना
बड़ी सहजता से
हमें ही सिखलाता है ...सीप सा खुलना,खुद में मोती बनना,यह सीख ही सुनहरा भविष्य है
अहा! कितनी सुन्दर रात है
ReplyDeleteअलमस्त चांदनी में चमका जज्बात है
मिलन की बेला में आधी -पौनी बात है
Amrita,
ReplyDeleteKISI BHI SABAK KO SIKHNAA HAMAARI TATPARTAA PAR HAI.
Take care
जब आयेगी बूँद, सीप स्वतः खुल जायेगी..
ReplyDeletebahut sundar rachna amrita ji
ReplyDeleteआश्चर्य के बहते लावा को
ReplyDeleteजमने से पहले ही
चट -पट चहेट ले हम
बहुत खुबसूरत अंतर्मन के भावों की अभिव्यक्ति
अंतर्मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमनोभावों की खूबशूरत आभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
सीपी खुली एक और अनमोल मोती बन गया... शुभकामनाये
ReplyDeleteऔर छिटकी -छिटकी
ReplyDeleteपारे की तरह बातों को
उँगलियों के पोरों से
सटा -सटा कर समेट ले हम ...
बहुत सुंदर .... और जब सीपी का मुंह खुलते ही बूंद गिरेगी तो मोती तो बनेगा ही .... गहन अभिव्यक्ति
इक पल ॥इक युग सा ॥
ReplyDeleteहर पल उस पल सा ...
मोतियों की माला बना जाये ...
जीवन सौन्दर्य से भर जाये ...
बस मन मे प्रेम ही प्रेम हो ...
आदि से अनंत तक ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअहा! कितनी सुन्दर रात है
चूकती सन्नाटे में भी कुछ बात है ...
स्निग्ध -स्नेह बरसा -बरसा कर
रह -रह मुस्काता आसमान है ...
कणभर की तृप्ति ही सही
कण -कण से फूट -फूट कर
हर ओर भासमान है ...
क्या बात
शुभकामनाएं
Bahut sundar
ReplyDeleteऔर उस बरसते रस को
ReplyDeleteइक उसी क्षण में
खुलकर ग्रहण करना
बड़ी सहजता से
हमें ही सिखलाता है . waah...bahut khoob.
बहुत सुन्दर..!!!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और अलग ढंग की कविता |
ReplyDeleteपूनो की रात ...शब्दों की चाशनी से लिपटी ...मन के सीप में मोती की बूँद !
ReplyDeleteशब्द चमत्कार करती हैं आप !
नए प्रतीक नए शब्द और खूबसूरत सन्देश ...
ReplyDeleteBehtarin rachana, sabdo ka jal bun na koi aap se sikhe
ReplyDeleteFrom India
हमारी ही सीपी खुल जाती है ...
ReplyDeleteइक बूँद ही सही
उसमें गिर जाती है ...
जो हमारा ही
अनमोल मोती बन जाता है
वाह बहुत सुन्दर ।
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteविलक्षण काव्य प्रतिभा है आप में.
मद मद मदमाती हुई
हृदय को हुल हुल हर्षाती हुई.
वाह!
बहुत रोमांटिक रेसिपी.
ReplyDeleteसुंदर शब्द चयन और सयोजन. बधाई.
अमृता हर बार की तरह इस बार भी उम्दा रचना
ReplyDelete"तरल -तरल में
आश्चर्य के बहते लावा को
जमने से पहले ही
चट -पट चहेट ले हम ..."
शब्दों से पूनो की रात की तरह अमृत रस बरस रहा है. अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर बन पड़ी है यह कविता. सभी बिंब इतने ठोस हो कर उभरते हैं कि अपने अर्थ की गहरी छाप छोड़ जाते हैं.
ReplyDeleteYou weave a web of words, she is wonderful and amazing writer. From Our India
ReplyDeleteअपने अन्दर का चाँद अपने अन्दर की पूनो को कोई पूर्णिमा में मिलाना सीखे .अमृत रस नाभि से निकाल अपनी ही पीना सीखे .कमाल का रूपक और तमाम बिम्ब रचना अपने लघु कलेवर में समेटे है अभिसार का एक पूरा आसमां कैद है रचना में .
ReplyDeleteसीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html
वाह ! पूनो की रात का ऐसा विस्मित कर देने वाला वर्णन अनोखा है.. शब्दों पर आपकी गहरी पकड़ है, बधाई !
ReplyDelete