अब प्रेम की
जैसी भी गली हो
सहसा बढ़ गये हैं
पाँव मेरे...
अब तेरा
पता- ठिकाना
किसी से क्या पूछना ?
बस चलते-चलते
पहुँच जाना है
गाँव तेरे...
पंथ अपरिचित है तो क्या ?
दूरी अपरिमित है तो क्या ?
तुम जानते हो
मेरी वेदना सुकुमार है
और तुमसे ही तो
ये मधुर अनुहार है...
अब तुम चाहे
मुझे आँख दिखाओ
चाहे तो कसमें खिलाओ
पर लौट कर
कहीं न जाऊँगी...
बस
तेरी पलकों की
छबीली छाँव तले
सुध-बुध खोकर
खुद को भी बिसराउंगी .
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteपंथ अपरिचित है तो क्या ?
दूरी अपरिमित है तो क्या ?
तुम जानते हो
मेरी वेदना सुकुमार है
क्या बात
वाह अमृता जी ..सुध बुध क्षण को पढ़ते पढ़ते ही खो गयी ....रम से गए इस रचना में ...बहुत सुमधुर अनुहार है ....!!
ReplyDeleteपंथ अपरिचित है तो क्या ?
ReplyDeleteदूरी अपरिमित है तो क्या ?
तुम जानते हो
मेरी वेदना सुकुमार है
और तुमसे ही तो
ये मधुर अनुहार है...
आपकी रचनाओं में शब्द विन्यास और भावों की गूढ़ता सुखद अहसास देती है.वाह !!!!!!!!!!!!
Amrita,
ReplyDeleteMERI BHAGWAAN SE PRAATHNAA HAI KI AAPKI KALPANAA HAMESHAA URHTI REHEIN AUR HUM AAPKI KAVITAAYON KAA KHAZAANAA PARHTE RAHEIN.
Take care
अब क्या कहना .... बहुत सुन्दर ख्याल
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता |
ReplyDeleteसुन्दर भावों का सुन्दर शब्दों के साथ चित्रण ........
ReplyDeleteअत्यन्त प्रभावी रचना..
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteसुन्दर प्रेम ...
सुन्दर ख़याल...
अनु
प्रेम ये ऐसा रोग है,कब कैसे लग जाता
ReplyDeleteमिलने को मन व्याकुल,रात दिन तड़पाता,,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
पंथ अपरिचित है तो क्या ?
ReplyDeleteदूरी अपरिमित है तो क्या ?
सुध-बुध खोकर
खुद को भी बिसराउंगी
ये मधुर अनुहार है...
अच्छी प्रेममयी रचना
ReplyDeleteवाह ...प्रेमपगी सुंदर रचना .... आप ऐसा भी लिखती हैं ? वरना आपकी कविता को समझने के लिए कम से कम दो तीन बार तो पढ़ना ही पड़ता है :)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteएक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-
जमाने के नख़रे उठाया करो
आपको पढ़ना वाकई अमृत पीने के सदृश है |उम्दा कविता |
ReplyDeleteप्रेम की सुंदर अनुभूति और अनुहार.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
हृदयस्पर्शी प्रेमोपहार और समर्पण की सुकुमार सर्जना
ReplyDeleteयाद आयी यह कविता अचानक
ReplyDeleteपंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!
महादेवी वर्मा
आपकी इस कविता में सहजता औऱ प्रवाह दोनों का अद्भुत समन्वय है। जहां तक भावों की बात है तो प्रेम में डूबे मुसाफिर मन को आपने शब्दों में बांधने का सुंदर यत्न किया है। बहुत-बहुत आभार और शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteएक संगीन तजुर्बे के अंतहीन सफ़र का
ReplyDeleteकोई अंजाम नहीं...कोई मुकाम नहीं....
आप हर बार की तरह स्तब्ध करती रहती हैं.. इस बार कुछ ज्यादा.... बेशक ज्यादा...
प्रेम के इस मधुर सफर की शुरुआत है तो मंजिल भी जल्द ही मिट जायगी ... सुन्दर प्रवाह है रचना में ...
ReplyDeleteसुध-बुध खोकर खुदको बिसराकर प्रेम किया है, तो बिना पता ठिकाना उनके गाँव पहुँच ही जाना है... सुन्दर मधुर मनुहार... आभार
ReplyDeleteबेहतरीन उदगार...
ReplyDeleteबधाई !
पंथ अपरिचित है तो क्या ?
ReplyDeleteदूरी अपरिमित है तो क्या ?
तुम जानते हो
मेरी वेदना सुकुमार है
गजब है ये राह प्रेम की
तुम जानते हो
ReplyDeleteमेरी वेदना सुकुमार है
और तुमसे ही तो
ये मधुर अनुहार है...!
बहुत सुन्दर...
अब प्रेम की
ReplyDeleteजैसी भी गली हो
सहसा बढ़ गये हैं
पाँव मेरे...
;;अपने वश में तो होता नहीं कुछ,
कैसे रोके कोई पांव.
अचानक कोई सा पल ,
भर देता है प्राणों में प्यार,
और दे जाता है बेदना अपार ,;;;;;;;;
अति सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबस हो ही गया मिलना.
ReplyDeleteवह ऐसों की ही राह तक करता है, बधाई !
यही प्यास हो और यही समर्पण तो वो कब तक दूर रह सकेगा भला ।
ReplyDeleteअति सुन्दर!
ReplyDeleteपर लौट कर
ReplyDeleteकहीं न जाऊँगी...
बस
तेरी पलकों की
छबीली छाँव तले
सुध-बुध खोकर
खुद को भी बिसराउंगी.
शब्द और भाव का समिश्रण आपकी कविता को प्रशंसनीय बना दिया है। पढ़ कर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला ,
ReplyDeleteकिस पथ से जाऊं असमंजस में है वह भोला भाला ,
अलग अलग पथ बतलाते सब ,लेकिन मैं बतलाता हूँ ,
राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला ......अति सूधो सनेह का मार्ग है.....सयानाप .... ...फिर अनुहार और मनुहार ,अपेक्षा हर किसी से तो होती भी नहीं ,
कितनी दूरी मंजिल की हो चलते चलते कट जाती है ,.....प्रेम पथिक को मंजिल ढूंढें ,मंजिल खुद ही मिल जाती है...........परिपूर्ण मुग्धा भाव और समर्पण ही प्रेम की अन्विति है .....बढ़िया रचना ....
मंगलवार, 4 सितम्बर 2012
Connecting the Dots : Type 2 Diabetes
The Basics (पारिभाषिक शब्दावली के साथ हिंदी में भी जल्द आ रहा है यह आलेख :बुनियादी बातें जीवन शैली रोग मधुमेह की )
Diabetes ,which affects 25.8 million Americans , is a disease in which people have high blood glucose
(blood sugar )levels due to the body's inability to produce or use insulin .
Insulin is a hormone that converts the sugars and starches that you eat into glucose , the fuel for your cells.
In Type 1 (often called juvenile) diabetes , the body does not produce insulin from birth .
With Type 2 diabetes ,over time the body either stops producing enough insulin or does not respond properly to insulin (insulin resistance).
Untreated or poorly managed diabetes can lead to chronically high blood sugar levels , a risk factor for heart disease , nerve damage , vision loss and other problems.
bhavon ka apoorv sammelan.....
ReplyDeleteamrita its a wonderful poem of infinite waiting and rememberance.
ReplyDeleteखुद को बिसराने में ही प्रेम की परिणति है. बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteप्रेम की डगर पर बढे तो कदम पीछे कहाँ ...कविता का यह प्रेम और समर्पण मुग्ध कर रहा है .
ReplyDeleteकवियित्री प्रेम में समर्पिता है ,व्याकुल है .कविता प्रेम को पाने की उसकी पीड़ा को व्यक्त करती है .भीतर की पीड़ा अन्दर की लय ,अंतर की आवाज़ सभी इस कविता में आन बसीं हैं .कवियत्री कहती है मेरा (तेरे प्रति मेरा प्रेम )प्रेम अनन्य है मैं तेरा ही अनुसरण ,अनुसार ,अनुहार करूंगी किसी और का नहीं .फिर जो हो सो हो -
ReplyDeleteमंगलवार, 4 सितम्बर 2012
जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें
जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें
यह वही जीवन शैली रोग है जिससे दो करोड़ अठावन लाख अमरीकी ग्रस्त हैं और भारत जिसकी मान्यता प्राप्त राजधानी बना हुआ है और जिसमें आपके रक्तप्रवाह में ब्लड ग्लूकोस या ब्लड सुगर आम भाषा में कहें तो शक्कर बहुत बढ़ जाती है .इस रोगात्मक स्थिति में या तो आपका अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हारमोन ही नहीं बना पाता या उसका इस्तेमाल नहीं कर पाता है आपका शरीर .
पैन्क्रिअस या अग्नाशय उदर के पास स्थित एक शरीर अंग है यह एक ऐसा तत्व (हारमोन )उत्पन्न करता है जो रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है और खाए हुए आहार के पाचन में सहायक होता है .मधुमेह एक मेटाबोलिक विकार है अपचयन सम्बन्धी गडबडी है ,ऑटोइम्यून डिजीज है .
फिर दोहरा दें इंसुलिन एक हारमोन है जो शर्करा (शक्कर )और स्टार्च (आलू ,चावल ,डबल रोटी जैसे खाद्यों में पाया जाने वाला श्वेत पदार्थ )को ग्लूकोज़ में तबदील कर देता है .यही ग्लूकोज़ ईंधन हैं भोजन है हरेक कोशिका का जो संचरण के ज़रिये उस तक पहुंचता रहता है .