आओ , कोई भी मुद्दा लो
प्यार से चीरा लगाओ
जितना अंट सके , उससे ज्यादा ही
उसमें विस्फोटक पदार्थों को भरो...
उसे अफवाहों से कसकर लपेटो
पूरा दम लगाकर
हवा में जोर से उछाल दो...
स्वर्णपदक पाए निशानेबाज़ की तरह
निशाना साधो , गोली दागो
धारदार धमाका होगा
और मुद्दा
न जाने कितने ही टुकड़ों में
जगह -जगह बिखर जाएगा...
चिनगियाँ लपकने वाले तो
यूँ ही लार टपकाए फिरते हैं
थूक -खखार लपेट -लपेट कर
मुद्दे पर आग उगलते हैं...
आग की लपटें आपस में ही
लड़-झगड़कर लिपट जाती हैं
और मुद्दई मुद्दे पर
मुरौवत दिखा कर
मुनासिब मुलम्मा चढ़ा आती है....
भई ! सच तो यही है
कि सबको मीठा , रसीला
सदाबहार आम चाहिए
खाली बैठने से बेहतर है
कि कोई तो काम चाहिए
और आग उगलने में अव्वल होकर
नामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए .
और मुद्दा
ReplyDeleteन जाने कितने ही टुकड़ों में
जगह -जगह बिखर जाएगा...
.........................................
एकदम सीधी बात.. कड़वी बात.. तीत..तीत बात
Kaun sa mudda?Kisi mudde ka nam to lo! Yahan to afsono ki tarah mudde hazaro hain!
ReplyDeletemuddon ki bhi kya koi kami hai kya?apne pasand aur jarurat ke hisab se pasand kar lena bhar hai.
Deleteनाम के लिए सुकृत्य ज़रूरी नहीं, गलत वाण गलत दिशा में चलाओ...नाम सुर्ख़ियों में आना ही है
ReplyDeleteतीखी....आग उगलती बात...
ReplyDeleteबेहतरीन!!!
अनु
Amrita,
ReplyDeleteVRATMAAN STITHI KAA BILKUL SAHI VYAKHYAAN KIYAA HAI AAPNE. MUDDE KI PRAWAAH KISKO HAI, KEWAL NAAM HI TO CHAHIYE.
Take care
हाँ ऐसी ही विस्फोटक स्थिति है देश की .बढ़िया रचना .
ReplyDeleteकैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
Virendra Kumar SharmaSeptember 16, 2012 9:06 PM
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2012/09/blog-post_2719.html
waah Amrita ji ...jabardast ...
ReplyDeleteteekha prahar lekhani se ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
वाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
भई ! सच तो यही है
ReplyDeleteकि सबको मीठा , रसीला
सदाबहार आम चाहिए
खाली बैठने से बेहतर है
कि कोई तो काम चाहिए
और आग उगलने में अव्वल होकर
नामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए .
यही तो एक कम बच गया है ?
कि कोई तो काम चाहिए
ReplyDeleteऔर आग उगलने में अव्वल होकर
नामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए .
बदनाम हो तब भी नाम ही चाहिए ...वर्तमान परिस्थितियों में यह रंज दिन प्रति दिन और गहरा होता जाता है !
लड़ने के लिये कोई तो बहाना चाहिये, बिना उसके मन की आग कैसे निकलेगी भला?
ReplyDeleteजबरदस्त!!!
ReplyDeleteकरारा कटाक्ष है।
ReplyDeleteआग उगलने में अव्वल होकर
ReplyDeleteनामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए
बिलकुल सही !!
तीखी और बेहतरीन बात...
ReplyDeletekya baat....aakramak andaaj
ReplyDeletealag hi andaz hai.....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त कटाक्ष किया है रचना में वाह
ReplyDeleteअमृता जी, आपने बात तो बहुत पते की कही है और बहुत तीखी..मगर बिलकुल सच..
ReplyDeleteबेहद गहन और तीखा.....और कडवा सच ।
ReplyDeleteइंसान ख़ुद को अमनपसंद कहता है लेकिन स्वभाव से लड़ाका है. मुद्दे तो ढूँढ ही लेगा. बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteमुद्दों और अफवाहों का बाज़ार आज भी ग्राम रहता हैं हर वक्त ...एक नाज़ुक सी स्थिति
ReplyDeleteबिलकुल सही बात...कुछ तो काम चाहिए... नामाकूल ही सही पर कुछ तो नाम चाहिए ....
ReplyDeleteक्या बात है अमृता जी.
ReplyDeleteखूब नून मिर्च लगा डाली है आपने.
चटपटी सी सी करती प्रस्तुति लगी जी.
तीखी और असरदार बात...
ReplyDeleteबेहतरीन...
:-)
Nicely presented, neatly written great lines Amrita.. Keep writing..
ReplyDeleteहाहाहा हा मुद्दा सरकार की तरह नया घोटाला लाओ पूराना लोग भूल जाते हैं...रेट बढ़ाओ लोग मंहगाई जपने लगते हैं...।
ReplyDeleteबढ़िया कटाक्ष ...नया मुद्दा दूसरे मुद्दे को भुलाने में कितना सहायक है यह हमारे नेता बखूबी जानते हैं .... खैर यहाँ तो मुद्दा अफवाह का भी है ...
ReplyDeleteसदाबहार आम चाहिए
ReplyDeleteखाली बैठने से बेहतर है
कि कोई तो काम चाहिए.
सुंदर व्यंग.
भई ! सच तो यही है
ReplyDeleteकि सबको मीठा , रसीला
सदाबहार आम चाहिए
खाली बैठने से बेहतर है
कि कोई तो काम चाहिए
और आग उगलने में अव्वल होकर
नामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए .....बढ़िया व्यंग्य
और मुद्दई मुद्दे पर
मुरौवत दिखा कर
मुनासिब मुलम्मा चढ़ा आती ...बहुत बढ़िया
तीक्ष्ण कटाक्ष.....
ReplyDeleteआज के हालात पर बहुत सटीक कटाक्ष...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी .. सच अहि की सभी को आज कुछ न कुछ करने के लिए मुद्दा चाहिए ... करारा कटाक्ष ...
ReplyDeleteसही बात, यही रवैया हो गया है आजकल..
ReplyDeleteखाली बैठने से बेहतर है
ReplyDeleteकि कोई तो काम चाहिए
और आग उगलने में अव्वल होकर
नामाकूल ही सही
पर कुछ तो नाम चाहिए .
सार्थक अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट 'समय सरगम' पर आपका इंतजार रहेगा।
नाम चाहिए
ReplyDeleteशोहरत चाहिए
भीड़ में क्षणिक ही सही
मगर पहचान चाहिए...
समस्यायों की निरंतरता
कैसे रहे कायम
बस कोई ढंग का
जुगाड़ चाहिए...
मेरे साथी कहते हैं कि नेपथ्य में भी नेतृत्व की असीम संभावना है। मगर आगे आने और होड़ में शामिल होने से ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है।
'कृपया बिना अनुमति के रचना न लें' आप ने लिख तो दिया किन्तु अनुमति कैसे लें यह नहीं लिखा
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