तुमने तार क्या छेड़े
पुकार क्या दे दी
सोया गीत जाग उठा...
मेरे सँभलने के पहले ही
उनींदे नयन-पाटल
ऐसे खुले कि
इस मन-मधुबन से
मेरा ही मधुमास लुटा...
आह !
निश्च्छल नेह की प्रतीति ऐसी होगी
तो प्रिय ! मृदु-मिलन की
रास - रीति कैसी होगी ?
ये सोच -सोचकर
बड़ी दुविधा में प्राण है
और दाँव पर तेरा मान है...
घुट-घुट कर विरह अधीर है
भर-भर जाती कैसी यह पीर है ?
अब तो घुमड़कर ह्रदय में ही
रागिनी है कंपकंपाती
अधर तक पहुँच कर भी
लुटी हुई सी लौट जाती..
कहो ! ये कैसी कलियाँ
तुमने बिछाई है सहेज कर
कि नुपुर बन झनक रहा है
शूल प्रतिपल सेज पर...
अपने कसक की बात , बोलो
किससे कहूँ मैं ?
और बिन कहे तो और भी न
रह सकूँ मैं ...
मेरा गीत क्यूँ डगमगा रहा है ?
बंदी- सा क्यूँ अकुला रहा है ?
मौन की भाषा तो अनजान है
बड़ी दुविधा में प्राण है...
प्रिय ! हो सके तो
आज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
Amrita,
ReplyDeleteSAMAJH NAHIN AA RAHAA KYAA KAHOON. HONE WAALE PREM PAL KI KALPAATMAK SOCH KAA BAHUT HI SUNDE VARNAN HAI.
Take care
मेरा गीत क्यूँ डगमगा रहा है ?
ReplyDeleteबंदी- सा क्यूँ अकुला रहा है ?
मौन की भाषा तो अनजान है
बड़ी दुविधा में प्राण है...
बहुत सुंदर
क्या कहने
प्रेम का जादू बादल बनाये , बना दे बूंदें ,... प्रेम में सब संभव है
ReplyDeleteकाव्य रस से भीग जाते है हम इधर आकर . ये बदली तो बोझिल जीवन में रस की फुहार लाती है .
ReplyDeleteगीत का डगमगाना...अकुलाना उसके बोलों से थमेगा ही...
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
अनु
वाह!
ReplyDeleteआपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक कल दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ
प्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
बेहद उम्दा प्रस्तुति ……गहनता लिये अध्यात्मिक भाव भी उभर रहा है।
मेरा गीत क्यूँ डगमगा रहा है ?
ReplyDeleteबंदी- सा क्यूँ अकुला रहा है ?
मौन की भाषा तो अनजान है
बड़ी दुविधा में प्राण है...
निश्च्छल नेह की प्रतीति ऐसी ही होगी
अद्धभुत अभिव्यक्ति !!
प्रेम रस हो या भक्तिभाव दोनों ही भावों में सुंदर रचना ...
ReplyDeleteउनींदे नयन पाटल ... पटल कर लें ।
आदरणीय , यहाँ पाटल का अर्थ 'गुलाब' के सन्दर्भ में लिया गया है . आपका आभार .
Deleteअपने कसक की बात बोलो
ReplyDeleteकिससे कहूँ मैं?
...............
रंग बातें करे...
बात से खुशबू आये.....
कविता के शिल्प और भाव अच्छे लगे।
ReplyDeleteप्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ। रचना काफी अच्छी लगी । धन्यवाद।
निश्च्छल नेह की प्रतीति ऐसी होगी
ReplyDeleteतो प्रिय ! मृदु-मिलन की
रास - रीति कैसी होगी ?
प्रिय ! हो सके तो
आज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो
बहुत सुन्दर भाव
प्रेम पगी विह्वलता का उदात्त चित्रण -मनुष्यता इन्ही भावों ,संवेदनाओं के चलते ही तो अखिल ब्रह्माण्ड में अनूठी है - :-)
ReplyDeleteगहन और बहुत सुन्दर उदगार ह्रदय के ...
ReplyDeleteमन झूमने सा लगा ...!!
दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइये ....
मेरी जबीं पे अपना मुक़द्दर सजाइये ...
ये शेर याद आ गया पढ़ कर ...
ऐसे भाव की अभिव्यक्ति आसान नहीं होती. जिस तरह ये शब्द उतरे हैं वह कवियित्री के भाव और शब्दों के दृढ़ संबंध की रचनात्मक मिसाल है.
ReplyDeleteजो बहता है, वह बहने दे,
ReplyDeleteमन कहता है, वह कहने दे।
चमके चंचल बिजुरिया, प्रगटे बादल रोष ।
करे इंद्र उत्पात तो, मोहन का क्या दोष ?
मोहन का क्या दोष, कोष में है जितना जल ।
देता मेघ उड़ेल, तोड़ना चाहे सम्बल ।
रविकर नहीं अनाथ, व्यर्थ तू दमके बमके ।
कृष्ण कमरिया हाथ, बदन हर्षित मम चमके ।
इन गीतों में भर आने दो
ReplyDeleteमैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो,,,,, .
भाव और शब्दों की उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,
RECENT POST,,,,मेरे सपनो का भारत,,,,
प्रेम की अभिव्यक्ति है ये रचा ... भाव मय ...
ReplyDeleteभाव और शब्दों की सुन्दर प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteप्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
वाह ! अमृता जी, बहुत सुंदर भावों का निर्झर बहाया है आपने...
सुन्दर भावपूर्ण पोस्ट।
ReplyDeleteशब्दों से भरी गीतों की बदरिया बरस रही है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव...
प्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
प्रेम रस में डूबी मनमोहक
प्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
बेहद भावपूर्ण रचना.
प्रिय ! हो सके तो
ReplyDeleteआज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
विरहणी का उच्छ्वास ,बढ़िया प्रस्तुति -
टकराओं परबत शिखरों से ,
बरखा बन बरस जाओ ,
.
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )
प्रेम का श्रृंगार पक्ष भी कम लालित्यपूर्ण नहीं है !
ReplyDeleteखूबसूरत कविता !
हमेशा की तरह कविता को २ ,३ बार पढ़ा और हर अहसास को आत्मसात किया .....
ReplyDeleteनिश्च्छल नेह की प्रतीति ऐसी होगी
तो प्रिय ! मृदु-मिलन की
रास - रीति कैसी होगी ?
....बस क्या कहूं ......भीग गयी आपकी रचना में ....
शब्दों में अगर प्राण भरा जा सकता तो आपकी पूरी कविता ही pranmayi और sajiw ho jaati. sirf कुछ पंक्तिया तो मात्र अनमोल रत्नों में कुछ चुन लेने जैस ही है.प्रतीक्षा रत विरही ह्रदय की ब्यथा और पुकार उन भावमयी बादलों जैसी है जो अंत अंत तक भीगा ही डालते है.अमृता जी इतनी कोमल कविता के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.मेरी उस परमात्मा से बिनती होगी की आपके ह्रदय का प्रवाह बना रहे ताकि हिंदी को आप जैसे लोगों से समृधि बनती रहे.सामान्य से सामान्य लोगों को भी प्यार की इस अमित प्यास की अभिब्यक्ति आपकी कविता से मिलाती रहे.
ReplyDeleteअपने कसक की बात , बोलो
ReplyDeleteकिससे कहूँ मैं ?
और बिन कहे तो और भी न
रह सकूँ मैं ...
मेरा गीत क्यूँ डगमगा रहा है ?
बंदी- सा क्यूँ अकुला रहा है ?
मौन की भाषा तो अनजान है
बड़ी दुविधा में प्राण है...
प्रिय ! हो सके तो
आज तुम
अपने शब्दों को ही
इन गीतों में भर आने दो
मैं बोझिल बदरिया
मुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
Kya koi richa un paatalon ke naam likh doon?
ReplyDeleteSundaratam upama!
मैं बोझिल बदरिया
ReplyDeleteमुझे बरबस ही
बहक- बहक कर बरस जाने दो .
बेहद उम्दा प्रस्तुति
meetha meetha sa dard...pyaari si khoobsurat si kavita :)
ReplyDeleteआपके लेखन से मन मग्न हो जाता है अमृता जी.
ReplyDeleteक्या इसीलिए आपका नाम भी 'तन्मय' हुआ हैं जी.