तुमसे है
मेरा स्वाभिमान
जो सबको
अभिमान सा दिखता है
और मुझे
अभिमानी दिखने पर
अभिमान सा हो जाता है...
जबकि मैं जानती हूँ कि
तुम किसी बच्चे की तरह
या किसी पूर्व नियोजित
आघातक झटका की तरह
मेरे स्वाभिमान को भी
एकदम से तोड़ देते हो...
जब वह
किसी मदमायी कली से
गदराया फूल बनने को
आतुर होता है ...
क्या लगता है तुम्हें ?
कि अपनी सुगंध में
मैं ही बहक जाउँगी
तुम्हें ही भरमा कर
और भड़क जाऊँगी ...
आह ! राग का ऐसा विरूपण
यंत्रणा का ऐसा निपीड़न
अभिमान का तो अंत: अनुपतन
पर स्वाभिमान का सतत सुबकन....
ये तुम्हें भाता होगा , मुझे नहीं ...
हाँ ! मैंने कब तुम्हें मना किया
कि अपने तपौनी में
मुझे इतना मत तपाओ
मेरे हर उद्यम से
उभरते छल को
मुझे ही मत दिखाओ
और अनजाने में उठते
किसी भी अभिमान को तोड़कर
मुझे मत जगाओ...
पर
तुमसे जो है
मेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
आखिर
तेरी ही परितप्ता मैं
मुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ .
नारी की सहज भावनाओं को सशक्त शब्द दिये हैं .... विशेष रूप से ये पंक्तियाँ -
ReplyDeleteआह ! राग का ऐसा विरूपण
यंत्रणा का ऐसा निपीड़न
अभिमान का तो अंत: अनुपतन
पर स्वाभिमान का सतत सुबकन....
ये तुम्हें भाता होगा , मुझे नहीं ...
हाँ ! मैंने कब तुम्हें मना किया
कि अपने तपौनी में
मुझे इतना मत तपाओ
तुमसे जो है
ReplyDeleteमेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति,,,,के लिये बधाई,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
अभिमान और स्वाभिमान के मनोविज्ञान को आपने बखूबी उकेरा है अपनी कविता में। प्रारब्ध और अंत दोनों के प्रति सजगता जीवन की गहरी समझ को प्रतिध्वनित करती है। बेहतरीन कविता। स्वागत है।
ReplyDeleteआह ! राग का ऐसा विरूपण
ReplyDeleteयंत्रणा का ऐसा निपीड़न
अभिमान का तो अंत: अनुपतन
पर स्वाभिमान का सतत सुबकन....
ये तुम्हें भाता होगा , मुझे नहीं ...
हाँ ! मैंने कब तुम्हें मना किया
कि अपने तपौनी में
मुझे इतना मत तपाओ
मेरे हर उद्यम से
उभरते छल को
मुझे ही मत दिखाओ
और अनजाने में उठते
किसी भी अभिमान को तोड़कर
मुझे मत जगाओ...
पर
तुमसे जो है
मेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
अत्यधिक सुन्दर ...प्रबलता लिए हुए ...बहुत गहन अभिव्यक्ति ...!!आपकी सोच ..समझ ..काव्यशैली ...अनुपम है ...अमृता जी ...!!
बहुत सुन्दर रचना ...!!
आह ! राग का ऐसा विरूपण
ReplyDeleteयंत्रणा का ऐसा निपीड़न....
..............................................
आह........ क्या कहूं
अद्भुत भाव बहाते शब्द..
ReplyDeleteराग, अनुराग और विराग की महीन लहरियों पर हिचकोले खाता स्वाभिमान कितनी आशाएँ पाले है. बहुत ही सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव लहरी..अमृता जी, वह ऐसा ही है...स्व की तो छाया भी नहीं पसंद है उसे...
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति ..अद्भुत भाव.!!
ReplyDeleteपर
ReplyDeleteतुमसे जो है
मेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
आखिर
तेरी ही परितप्ता मैं
मुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ ... गहन भावों का सम्प्रेषण
जरूर करायेंगे वो प्रभु क्योंकि यही तो उनका काम है अभिमान के बीज को नष्ट करना और खरा सोना बनाना और खरा सोना बनने के लिये तपना तो पडेगा ही।
ReplyDeleteOverwhelming!
ReplyDeleteमुझे इतना मत तपाओ
ReplyDeleteमेरे हर उद्यम से
उभरते छल को
मुझे ही मत दिखाओ
और अनजाने में उठते
किसी भी अभिमान को तोड़कर
मुझे मत जगाओ...
नारी शक्ति का सहज सरल प्रकटीकरण . बहुत सुन्दर और उदार भाव से कही बातें
खुद को थाम कर चलने की एक जिद्द अपनी भी हैं ..
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteKISI SE USKE KARAN GARV KI BHAVANAA KO NAA TODNE KAA ANURODH BAHUT ACHCHHA KAHAA HAI.
Take care
'तेरी ही परितप्ता मैं
ReplyDeleteमुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ .'
- अश्रु वेदना को घोल के लिखेंगे ,
एक बात जो कभी न हो पुरानी !
गहन भाव और अद्भुत सम्प्रेषण.
ReplyDeleteस्व से प्यार = स्वाभिमान .स्व यानि अपने होना .अपना अस्तित्वा या फिर सपूर्ण अस्तित्वा .समर्पण अभिमान का .और खोने तक विरह ब्यथा .भौतिक प्रतीकों का अत्यधिक भावपूर्ण चित्रण उस महाभाव के लिए.अद्भुत रचना .भाव को सिर्फ जिया ही जा सकता है .आपने शब्दों के देने की प्रयाश ,एक अमूर्त भाव को ब्यक्त करना .....इस कठिन प्रयाश के लिए शब्द तो नहीं पर आशीष तो अवश्य .
ReplyDeleteजबकि ऐसा अभिमान सिर तुम्हारे लिए है ... इसको तोड़ना अच्छा नहीं ... इसका मान रखना चाहिए ...
ReplyDeleteयही तो प्रेम है ...
वाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
आपके पोस्ट पर जब भी आता हू। एक नए भाव से भरपूर कविता से परिचय होता है । आपकी कविता में जिस भाषिक मिजाज का दर्शन होता है,प्रशंसनीय है। मेरे नए पोस्ट 'प्रेम सरोवर' पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता अमृता जी |
ReplyDeleteक्या लगता है तुम्हें ?
ReplyDeleteकि अपनी सुगंध में
मैं ही बहक जाउँगी
तुम्हें ही भरमा कर
और भड़क जाऊँगी ...
तेरी ही परितप्ता मैं
मुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ .'
अद्भुत है नारी मन के भावों का प्रस्तुतिकरण अमृता जी
तुमसे जो है
ReplyDeleteमेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
आखिर
तेरी ही परितप्ता मैं
मुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ .
स्वाभिमान समर्पण और अधिकार की त्रिवेणी अकेली नहीं हैं विरहणी.बढ़िया भाव व्यंजना .
तुमसे जो है
ReplyDeleteमेरा स्वाभिमान
उसकी तो
हरसंभव लाज बचाओ...
आखिर
तेरी ही परितप्ता मैं
मुझे विचुम्बित करके
गहरी वापिका में भी
हाथ को थामकर
वार पार तो कराओ .
स्वाभिमान समर्पण और अधिकार की त्रिवेणी अकेली नहीं हैं विरहणी.बढ़िया भाव व्यंजना .
लिंक 15-
परितप्ता मैं -अमृता तन्मय
तुमसे जो है मेरा स्वाभिमान !
ReplyDeleteपूरी कविता इसमें ही सिमटी है !
बहुत बढ़िया !
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ।
ReplyDeleteमेरे स्वाभिमान को भी
ReplyDeleteएकदम से तोड़ देते हो...
जब वह
किसी मदमायी कली से
गदराया फूल बनने को
आतुर होता है ........बहुत ही सुन्दर ।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है , बधाई |
ReplyDeleteगहरे भावों को व्यक्त करती
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति..
:-)
गहन भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteभय की भांति ही साहस भी संक्रामक होता है। और परितप्ता होने के बावजूद उसके ही हाथों वापिका को पार करने का आह्वान संक्रामक है।
ReplyDeleteसंक्रामक इसलिए की उसके लाख प्रयत्नों के बाद भी जो ‘मैं’ है इस रचना का, उसके हाथों शिकस्त नहीं होता।
हमें तब तक किसी अच्छे मौक़े का इल्म नहीं होता जब तक वह हमारे हाथों से निकल नहीं जाता। और इस रचना का ‘मैं’ उसे निकलने नहीं देना चाहता(ती)।
अनुभूति की सघनता एवं संवेदना का संश्लिष्ट प्रभाव कविता की विशेषता है और यह विशेषता इसमें प्रयुक्त शब्दों के चयन से आई हैं जो प्रायः आज की कविताओं में देखने को नहीं मिलते।
भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति के लिये बधाई,,, अमृता जी
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमेरे अभिमान में तुम्हारे साथ होने का स्वाभिमान ही तो है | बहुत सुन्दर तरीके से संबंधों को आपस में पिरोती हुई रचना |
ReplyDeletebahut hi bhavpurna abhivyakti..badhai
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