इतना भी
घुप्प अँधेरा न करो
कि तड़ातड़ तड़कती
तड़ित-सी विघातक
व्यथा-वेदना में
तुम भी न दिखो...
इस दिए का क्या ?
तेल चूक गया है
बाती भी जल गयी है
बची हुई
चिनकती चिनगारी में
इतना धुआँ भी नहीं
कि भर दे जलन
तुम्हारी आँखों में...
क्या कहूँ ?
बस इतना ही
कि
तुम्हारी मर्जी को
स्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
नहीं तो
पूरी ताकत से
एक धाँस धधकाकर
मिट जाती
वो चिनगारी भी...
ताकि
तुम्हारा अँधेरा
और गहरा जाता
पर तुम्हारे खाँसने की
आवाज भी
पूरी तरह खो जाती
उसी अँधेरी खनखनाहट में .
Amrita,
ReplyDeleteGOORH MATLAB HAI ISKAA. AAPSI SAMBANDHON KO ITNAA BHI DOOR NAHIN KARO KI ANDHERAA CHHAA JAYE.
Take care
तुम्हारी मर्जी को
ReplyDeleteस्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
वाह !
संबंधों की धूप-छांव का प्रभावी चित्रण।
बहुत गहराई लिए एक सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, बिम्बात्मकता, की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है।
ReplyDeleteइतना भी
ReplyDeleteघुप्प अँधेरा न करो
कि तड़ातड़ तड़कती
तड़ित-सी विघातक
व्यथा-वेदना में
तुम भी न दिखो...बढ़िया बिम्ब है------- इस दिए का क्या ?
तेल चूक गया है
बाती भी जल गयी है
बची हुई
चिनकती चिनगारी में
इतना धुआँ भी नहीं
कि भर दे जलन
तुम्हारी आँखों में...
क्या कहूँ ?- -----------------इस दीये का क्या ..........तेल चुक गया ..........चिनकती चिंगारी में ....इसीलिए कहतीं हूँ एक अन्धेरा एक धुंध सार्वजनिक रूप से रचो ,और उसी धुंध का फायदा उठा अपनी बात कहो .....सीधे सीधे कुछ कह नहीं पाती ही कवियित्री इस रचना में ......दीपक की बाती..तेल के चुक जाने की बात कहती है .....बढ़िया रचना है भाव व्यंजना लिए एक अंडर टोन लिए ... .कृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
bahut kuch kahti rachna ........
ReplyDeletenice presentation .तुम मुझको क्या दे पाओगे?
ReplyDeleteबची हुई
ReplyDeleteचिनकती चिनगारी में
इतना धुआँ भी नहीं
कि भर दे जलन
तुम्हारी आँखों में...
........
नहीं तो.....
यूं चेहरा फेर लेने से छिपता नहीं धुंआ...
तुम्हारी मर्जी को
ReplyDeleteस्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
शायद ऐसी ही कोई
परिस्थिति रही होगी ,
जिसमें पड़ ,
रचियेता ने रचा होगा ,
सांप-छुछुंदर की गती !
खोने में होने का एहसास तो रहने दो।
ReplyDeleteसंबंधो की रासायनिक .पड़ताल करती हुई अद्भुत पंक्तियाँ . वो कभी छुप ना पायें.
ReplyDeleteहाँ और न के बीच का फासला उतना कम भी नहीं है और दीये की बाती भी घट गई है ,जीवन बीत रहा है ,यही द्वंद्व है इस रचना में ,एक मारक अंडर टोन भी है जो उदास कर जाती है .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
आजमाए हुए रसोई घर के नुसखे
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Hip ,Sacroiliac Leg Problems
Hip ,Sacroiliac Leg Problems(हिन्दुस्तानी जबान में भी आ रहा है यह मह्त्वपूर्ण आलेख ,विषय की गभीरता और थोड़ी सी
क्लिष्टता को देख कर लगा पहले एक बेकग्राउंडर आधारीय आलेख अंग्रेजी में दिया जाए ताकी विषय की एक झलक तो मिल जाए वायदा है समझाया जाएगा यह आलेख हिंदी में ,अभी इस श्रृंखला के तीन -चार आलेख और आने हैं ,अब तक जो इस अभिनव विषय पर आप लोगों का रेस्पोंस मिला है उससे हौसला बढ़ा है ).
Hip ,Sacroiliac Leg Problems
Chiropractic Bringing out the Best in you
A Masterpiece Of Engineering
इतना भी
ReplyDeleteघुप्प अँधेरा न करो
कि तड़ातड़ तड़कती
तड़ित-सी विघातक
व्यथा-वेदना में
तुम भी न दिखो...गहरी अभिव्यक्ति
behtareen...
ReplyDeleteगहन सोच..सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकुछ रौशनी रहने दो बरक़रार
ReplyDeleteइतना तो है न अधिकार !
कवियत्री की ब्यथा तो समझ आती है ,पर कौन सी तेल और बाती की कथा ,एक वह तेल और बाती जो परमात्मा ने दिया था या उस तेल और बाती की कथा जो हम स्वयं नैराश्य पूर्ण भावनाओं में जल्द ही चूका देते रहते हैं.इतिहास गवाह है की इसी तेल और बाती ने लहक लहक कर कई कई बार इतिहाश भी लिखा है.आँखों के आगे छोटी सी कंकर भी बड़ा अँधेरा कर डालती है.एक कवियत्री के जीवन में मिला काब्य रचाने का बरदान एक बड़े उद्देश्य में मानव जीवन में नयी आशा के संचरण के लिए होता है.आपसे ऐसी ही आशा के साथ.बिदा.
ReplyDeleteतुम्हारी मर्जी को
ReplyDeleteस्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
man ki vyatha ka ,vihvalata ka purzor chitran ..
bahut sundar rachanaa ..Amrita ji .
जीवन में साथ चलते हुवे भी कभी कभी इतना जुदा होते हैं पल की मुश्किल हो जाता है ... जीवन आसान नहीं ...
ReplyDeleteयह द्वंद्व मार्मिक एहसास कराता है।
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतुम्हारी मर्जी को
ReplyDeleteस्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
...अंतर्मन के द्वंद्व का बहुत प्रभावी चित्रण...
गहन द्वंद्व
ReplyDeleteक्या कहूँ ?
ReplyDeleteबस इतना ही
कि
तुम्हारी मर्जी को
स्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
कुछ तो रोशनी रहे ..... गहन द्वंद्व भरी रचना
और मर्जी से
ReplyDeleteमुकरते जाना
और भी कठिन है...
नहीं तो
पूरी ताकत से
एक धाँस धधकाकर
मिट जाती
वो चिनगारी भी...
गहन द्वंद्व का चित्रण
मार्क्स का सारा भौतिक द्वंद्व (Dialectical materialism ),उनकी यथार्थ के प्रति अवधारणा -The Marxian concept of reality in which material things are in the constant process of change brought about by the tension between conflicting or interacting forces ,elements ,or ideas.कि चीज़ों का भौतक स्वरूप थिर नहीं है परिवर्तन शील है .इस परिवर्तन की वजह बनता है भौतिक और मानसी द्वंद्व .,आपकी रचनाएं समझा रहीं हैं .आभार कृपया यहाँ भी पधारें -veerubhai1947.blogspot.com
ReplyDeleteअस्थि-सुषिर -ता (अस्थि -क्षय ,अस्थि भंगुरता )यानी अस्थियों की दुर्बलता और भंगुरता का एक रोग है ओस्टियोपोसोसिस
खूबसूरत..!!
ReplyDeleteवह दिखता भी है और छुपता भी है..वह कभी अपने शिकार को अपनी गिरफ्त से दूर नहीं जाने देता..
ReplyDeleteक्या कहूँ ?
ReplyDeleteबस इतना ही
कि
तुम्हारी मर्जी को
स्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
:) :) awesome !!
बेहतरीन और सुन्दर हमेशा की तरह.......हमारे ब्लॉग जज़्बात......दिल से दिल तक की नई पोस्ट आपके ज़िक्र से रोशन है.....वक़्त मिले तो ज़रूर नज़रे इनायत फरमाएं -
ReplyDeleteमेरी टॉप 10 लिस्ट - 3
नही तो...
ReplyDeleteबहुत कुछ कह दिया है आपने, नही तो.....
मेरा ब्लॉग सूना सूना है आपके बैगर,नही तो...
तुम्हारी मर्जी को
ReplyDeleteस्वीकारते रहना
इतना आसान नहीं
और मर्जी से
मुकरते जाना
और भी कठिन है...
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति.
Gahan abhivyakti...
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