कितना
सहज,सरल
है डगर
चलता चल
मत कर
अगर-मगर
लग जाए न
कहीं ठोकर
पर
मत रुक
वहीं रोकर
मटक-मटक
चल पनघट
घट भर
और घर चल
जमघट से
बचकर निकल
मत तक
इधर-उधर
तनने दे
टेढ़ी नजर
सर पर
घट रख
तन कर गुजर
तय है
यह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल
कहीं जाए न
साँझ ढल
घट में ही
रह जाए न
सब जल
और
रीता-रीता
बस तू
हाथ मल
प्यास तू
अमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर उगल
देर न कर
मत मचल
इधर-उधर
घट भर
और घर चल .
कल कल की गूँज है इस कविता में। वैसे ही बहती चली जा रही है।..वाह!
ReplyDeleteबचपन का मासूम पाठ याद आ गया ... बहुत ही बढ़िया प्रयोग
ReplyDeleteतय है
ReplyDeleteयह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल
हर पंक्ति का अलग
अपना अंदाज और
संदेश है।
बहुत सुंदर
सहज/सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteचल घर चल,हठ मत कर...पनघट पर जल भर...रब से डर..
ReplyDeleteरश्मि दी ने ठीक कहा....
पाठ बचपन का, मगर अर्थ गहन छुपे हैं...
सुन्दर!!!
प्यास तू
ReplyDeleteअमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर उगल
....सहज शब्दों में बहुत गहन और सशक्त अभिव्यक्ति॥
प्यास तू
ReplyDeleteअमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर अमृत उगल
वाह ... !
चलता चल कि....
ReplyDeleteजैसे पानी रे पानी
शुक्रिया आपका..रब का भी
अमृता वाणी... अमृता वाणी .......
प्यास तू
ReplyDeleteअमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर उगल
सचमुच अद्भुत प्रयोग... बहुत अच्छा लगा
मुसाफिर होने के हक को अदा करने की प्रेरणा देती है कविता। जिंदगी के सफर में कोई मकसद है तो भटकाने वाले तमाम प्रलोभन भी, उनसे खुद को बचाकर आगे निकल जाने की जिजीविषा को जीवंत करती रचना। बहुत-बहुत स्वागत है। नए प्रयोगों की तो तारीफ होनी चाहिए। रचना का सरल, सहज प्रवाह भी ध्यान आकर्षित करता है। शुक्रिया।
ReplyDeleteप्यास तू
ReplyDeleteअमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर अमृत उगल
वाह ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
अति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?
ReplyDeleteतय है
ReplyDeleteयह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल
आपकी कविता कहूँ या रचना या कह दू भावों की लड़ियाँ .किस शब्द को कहूँ किससे नादाँ किसे कहूँ सयाना .मैं तो बस रह गया निःशब्द
छोटी -छोटी बातों में जीवन के गूढ़ अर्थ .कमल किया है आपने
ReplyDeleteपनघट से घर तक का सफ़र...इतना सहज और सरल तो नहीं है...मार्ग में गरल भी हैं...पर समझदार वही है...जो अमृत लेकर निकल ले...वापस घर तक...
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteHAMEIN JEEVAN BHI ISI BHANTI GUZAARNAA CHAAHIYE.
Take care
बहुत ही बढ़िया । राही मासूम रजा की एक सुंदर कविता पढ़ने के लिए आपका मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।
ReplyDelete
ReplyDeleteअमृत चख...
कितना
सहज,सरल
है डगर
चलता चल
मत कर
अगर-मगर
लग जाए न
कहीं ठोकर
पर
मत रुक
वहीं रोकर
मटक-मटक
चल पनघट
घट भर
और घर चल
भीड़ से
बचकर निकल
मत तक
इधर-उधर
तनने दे
टेढ़ी नजर
सर पर
घट रख
तन कर गुजर
तय है
यह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल
कहीं जाए न
साँझ ढल
घट में ही
रह जाए
न सब जल
और
रीता-रीता
बस तू
हाथ मल
प्यास तू
अमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर उगल
देर न कर
मत मचल
इधर-उधर
घट भर
और घर चल .कवियित्री अभिव्यक्त होना चाहती है स्वयं भी ,विचार कौंधता है और वैचारिक दृष्टि से कवियित्री चिंगारी की तरह अपनी बात कहती है .संसार बहुत कुटिल है ,यहाँ बहुत कुछ ऐसा है जो तुम्हारे विपरीत है रुको मत अपना काम करो और आगे बढ़ो ,छोटे बिम्ब और क्रियाओं के गति शील बिम्ब लेकर कवियित्री आगे बढती है ,रचनात्मकता है कवियित्री में ,बेशक लयात्मकता का प्रभाव कहीं कहीं टूटता है ,लेकिन थोड़े अभ्यास से इसका भी निर्वाह हो सकता है ,असल बात है विचार की लय वह कहीं भंग नहीं होती है प्रबल आवेग लिए रहती है तमाम रचना में .
ram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
भीड़ से
ReplyDeleteबचकर निकल
यहाँ लयात्मकता भंग होती है लेकिन कवियित्री को शास्त्र की समझ है
..कविता के शास्त्र की जानकार है वह .
कुछ नया प्रयोग अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: शहीदों की याद में,,
तय है
ReplyDeleteयह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल
राह की उलझनों में उलझ कर रह जाने से बेहतर है राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला।
ऐसा लगा जिसे कोई ताल पर गीत गा रहा हो....वाह ।
ReplyDeleteयह अमृत तो ऐसा है जो एक बार चख लिया तो फिर उगलते नहीं बनता...सुंदर लेखन !
ReplyDeleteजीवन-प्रपात सी कविता. प्रपात जो जीवन-कला सिखाता है. चलते रहने की गति देता है.
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब...
ReplyDeleteबचपन में पढ़े हिन्दी पोथी की रिदम याद हो आयी .. :-)
ReplyDeleteवाकई गजब शिल्प की कविता है!
कल-कल झरती जीवन रचना... गतिमान
ReplyDeleteनया प्रयोग और ताजापन ...
ReplyDeleteबधाई !
गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना
ReplyDeleteसर पर घट रखकर तन कर तू गुजर !
ReplyDeleteयही प्रेरणा तो जनमानस में शक्ति बनकर ऊर्जा का संचार करती है !
थक रुक थक,
ReplyDeleteपर उठ चल।
बहुत सुन्दर रचना..
सुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब अंदाज़ है इस रचना में ... बहुत खूब ...
ReplyDeletevery good thoughts.....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।