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Friday, August 17, 2012

अमृत चख...


कितना
सहज,सरल
है डगर
चलता चल

मत कर
अगर-मगर
लग जाए न
कहीं ठोकर
पर
मत रुक
वहीं रोकर

मटक-मटक
चल पनघट
घट भर
और घर चल

जमघट से
बचकर निकल
मत तक
इधर-उधर
तनने दे
टेढ़ी नजर
सर पर
घट रख
तन कर गुजर

तय है
यह सफ़र
मत उलझ
राह पर
रहगीर मिले
या रहबर
शुक्रिया कर
चलता चल

कहीं जाए न
साँझ ढल
घट में ही
रह जाए न
सब जल
और
रीता-रीता
बस तू
हाथ मल

प्यास तू
अमृत भी तू
छक कर
अमृत चख
फिर उगल

देर न कर
मत मचल
इधर-उधर
घट भर
और घर चल .


35 comments:

  1. कल कल की गूँज है इस कविता में। वैसे ही बहती चली जा रही है।..वाह!

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  2. बचपन का मासूम पाठ याद आ गया ... बहुत ही बढ़िया प्रयोग

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  3. तय है
    यह सफ़र
    मत उलझ
    राह पर
    रहगीर मिले
    या रहबर
    शुक्रिया कर
    चलता चल



    हर पंक्ति का अलग
    अपना अंदाज और
    संदेश है।
    बहुत सुंदर

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  4. सहज/सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  5. चल घर चल,हठ मत कर...पनघट पर जल भर...रब से डर..
    रश्मि दी ने ठीक कहा....
    पाठ बचपन का, मगर अर्थ गहन छुपे हैं...

    सुन्दर!!!

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  6. प्यास तू
    अमृत भी तू
    छक कर
    अमृत चख
    फिर उगल

    ....सहज शब्दों में बहुत गहन और सशक्त अभिव्यक्ति॥

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  7. प्यास तू
    अमृत भी तू
    छक कर
    अमृत चख
    फिर अमृत उगल
    वाह ... !

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  8. चलता चल कि....
    जैसे पानी रे पानी
    शुक्रिया आपका..रब का भी
    अमृता वाणी... अमृता वाणी .......



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  9. प्यास तू
    अमृत भी तू
    छक कर
    अमृत चख
    फिर उगल
    सचमुच अद्भुत प्रयोग... बहुत अच्छा लगा

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  10. मुसाफिर होने के हक को अदा करने की प्रेरणा देती है कविता। जिंदगी के सफर में कोई मकसद है तो भटकाने वाले तमाम प्रलोभन भी, उनसे खुद को बचाकर आगे निकल जाने की जिजीविषा को जीवंत करती रचना। बहुत-बहुत स्वागत है। नए प्रयोगों की तो तारीफ होनी चाहिए। रचना का सरल, सहज प्रवाह भी ध्यान आकर्षित करता है। शुक्रिया।

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  11. प्यास तू
    अमृत भी तू
    छक कर
    अमृत चख
    फिर अमृत उगल
    वाह ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  12. अति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?

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  13. तय है
    यह सफ़र
    मत उलझ
    राह पर
    रहगीर मिले
    या रहबर
    शुक्रिया कर
    चलता चल

    आपकी कविता कहूँ या रचना या कह दू भावों की लड़ियाँ .किस शब्द को कहूँ किससे नादाँ किसे कहूँ सयाना .मैं तो बस रह गया निःशब्द

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  14. छोटी -छोटी बातों में जीवन के गूढ़ अर्थ .कमल किया है आपने

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  15. पनघट से घर तक का सफ़र...इतना सहज और सरल तो नहीं है...मार्ग में गरल भी हैं...पर समझदार वही है...जो अमृत लेकर निकल ले...वापस घर तक...

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  16. Amrita,

    HAMEIN JEEVAN BHI ISI BHANTI GUZAARNAA CHAAHIYE.

    Take care

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  17. बहुत ही बढ़िया । राही मासूम रजा की एक सुंदर कविता पढ़ने के लिए आपका मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।

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  18. अमृत चख...

    कितना
    सहज,सरल
    है डगर
    चलता चल

    मत कर
    अगर-मगर
    लग जाए न
    कहीं ठोकर
    पर
    मत रुक
    वहीं रोकर

    मटक-मटक
    चल पनघट
    घट भर
    और घर चल

    भीड़ से
    बचकर निकल
    मत तक
    इधर-उधर
    तनने दे
    टेढ़ी नजर
    सर पर
    घट रख
    तन कर गुजर

    तय है
    यह सफ़र
    मत उलझ
    राह पर
    रहगीर मिले
    या रहबर
    शुक्रिया कर
    चलता चल

    कहीं जाए न
    साँझ ढल
    घट में ही
    रह जाए
    न सब जल
    और
    रीता-रीता
    बस तू
    हाथ मल

    प्यास तू
    अमृत भी तू
    छक कर
    अमृत चख
    फिर उगल

    देर न कर
    मत मचल
    इधर-उधर
    घट भर
    और घर चल .कवियित्री अभिव्यक्त होना चाहती है स्वयं भी ,विचार कौंधता है और वैचारिक दृष्टि से कवियित्री चिंगारी की तरह अपनी बात कहती है .संसार बहुत कुटिल है ,यहाँ बहुत कुछ ऐसा है जो तुम्हारे विपरीत है रुको मत अपना काम करो और आगे बढ़ो ,छोटे बिम्ब और क्रियाओं के गति शील बिम्ब लेकर कवियित्री आगे बढती है ,रचनात्मकता है कवियित्री में ,बेशक लयात्मकता का प्रभाव कहीं कहीं टूटता है ,लेकिन थोड़े अभ्यास से इसका भी निर्वाह हो सकता है ,असल बात है विचार की लय वह कहीं भंग नहीं होती है प्रबल आवेग लिए रहती है तमाम रचना में .
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
    गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?

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  19. भीड़ से
    बचकर निकल
    यहाँ लयात्मकता भंग होती है लेकिन कवियित्री को शास्त्र की समझ है
    ..कविता के शास्त्र की जानकार है वह .

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  20. तय है
    यह सफ़र
    मत उलझ
    राह पर
    रहगीर मिले
    या रहबर
    शुक्रिया कर
    चलता चल
    राह की उलझनों में उलझ कर रह जाने से बेहतर है राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला।

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  21. ऐसा लगा जिसे कोई ताल पर गीत गा रहा हो....वाह ।

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  22. यह अमृत तो ऐसा है जो एक बार चख लिया तो फिर उगलते नहीं बनता...सुंदर लेखन !

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  23. जीवन-प्रपात सी कविता. प्रपात जो जीवन-कला सिखाता है. चलते रहने की गति देता है.

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  24. वाह ... बहुत खूब...

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  25. बचपन में पढ़े हिन्दी पोथी की रिदम याद हो आयी .. :-)
    वाकई गजब शिल्प की कविता है!

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  26. कल-कल झरती जीवन रचना... गतिमान

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  27. नया प्रयोग और ताजापन ...
    बधाई !

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  28. गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना

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  29. सर पर घट रखकर तन कर तू गुजर !
    यही प्रेरणा तो जनमानस में शक्ति बनकर ऊर्जा का संचार करती है !

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  30. थक रुक थक,
    पर उठ चल।

    बहुत सुन्दर रचना..

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  31. सुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।

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  32. सुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।

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  33. बहुत खूब ... लाजवाब अंदाज़ है इस रचना में ... बहुत खूब ...

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  34. very good thoughts.....
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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