नये-नये गीत
बार-बार लिखकर भी
अपने को तनिक भी
उसमें समा न सकी
निज आहों के आशय को
इस जगती को समझा न सकी...
सोचती थी
जतन से मैंने जो कहा है
छंदित छंदों से लयबद्ध हो रहा है
अर्थों की परिभाषाओं को तोड़कर
पुलकित पद्य में ढल रहा है....
पर यह क्या ?
चेतना का शाप और
देह के धर्म में ठनी अनबन
बनी की बनी रह गयी
मैं सबसे या जीवन से या
अपने से ही छली गयी......
चाहकर भी
कंचन की जंजीर पहनकर
सपनों की झांकी में भी
क्षण भर को भी मुस्का न सकी
और औचक चाहों में भी
सोई हुई उजली रातों को
अबतक मैं जगा न सकी.....
निशदिन अँधेरे-पाख और
नन्ही परछाईं से भी डरते हुए
रह-रह कर कँप जाती हूँ
बदल-बदल कर लाख मुखौटा
क्यों अपने में ही छिप जाती हूँ...
कितना बेबस है मेरा आकाश
कि बंद दिशाओं में ही
बस उड़ता-फड़फड़ाता है
और क्षितिजों के कँटीले तारों में
उलझ-उलझ कर रह जाता है....
अब तो
हे! खारे आँसू
इन अधरों तक ही रुक जाओ
विधना विमुख है तो भी
करुण उद्गार से न चूक जाओ...
आज फिर
एक बार जी भर के
रचना में दर्द को छटपटाने दो
चौंको मत !
जगह-जगह से फूटी गागर ही सही
तनिक भी तो भर जाने दो .
गागर में सागर को समेटने को व्याकुल एक कविता
ReplyDeleteअच्छी कविता |
ReplyDeleteएक बार जी भर के
ReplyDeleteरचना में दर्द को छटपटाने दो
चौंको मत !
जगह-जगह से फूटी गागर ही सही
तनिक भी तो भर जाने दो .
रचना दर्द से ही पैदा होती है ......और इस दर्द की अभिव्यक्ति कभी प्रेम बन जाती है तो कभी विरह ....!
ब्लॉग जगत के सभी मित्रों को कान्हा जी के जन्मदिवस की हार्दिक बधाइयां ..
ReplyDeleteहम सभी के जीवन में कृष्ण जी का आशीर्वाद सदा रहे...
kalamdaan
आह! बहुत ही जोर से चौका दिया आपने..
ReplyDelete'चेतना का शाप और
देह के धर्म में ठनी अनबन
बनी की बनी रह गयी ...'
बहुत सुन्दर,लाजबाब तन्मय हुए अमृता जी.
कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'फालोअर्स और ब्लोगिंग' पर मेरा मार्ग दर्शन कीजियेगा.
एक बहुत खूबशूरत रचना,,,,,
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
बहुत सुन्दर और प्यारी रचना..
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाये..
:-)
क्या चौकूँ ... खुद रिसता मन क्या कहे !
ReplyDeleteहमेशा की तरह कुछ और नया कहती हुई..
ReplyDeleteयही दर्द जब हद से बढ़ जाता है तभी द्वार खुलते हैं..शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
कितना बेबस है मेरा आकाश
ReplyDeleteकि बंद दिशाओं में ही
बस उड़ता-फड़फड़ाता है.....
.....................................
ओह...आकाश की बेबसी और उसके दर्द को आपसे बेहतर कौन थाह सकता है.....
फिर शब्द कहाँ बचता है कुछ कहने को ................
भीतर का दर्द छटपटा कर रचना में आ भरता है और रचना में छटपटा कर फिर अपना हो जाता है. इसमें चौंकने की काफ़ी गुंजाइश है. रश्मि प्रभा जी की टिप्पणी हृदयस्पर्शी है.
ReplyDeleteइस कविता का दूसरा दार्शनिक-सा सुंदर पक्ष इन पंक्तियों में नज़र आया
ReplyDelete'कितना बेबस है मेरा आकाश
कि बंद दिशाओं में ही
बस उड़ता-फड़फड़ाता है
और क्षितिजों के कँटीले तारों में
उलझ-उलझ कर रह जाता है....'
वियोगी होगा पहला कवि ,आह से निकला होगा गान
ReplyDeleteनिकल कर अधरों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान .
नीड़ का निर्माण फिर फिर हो सकेगा ,पीर को भी आसरा एक मिल सकेगा .श्रृंगार के विरह पक्ष में आकंठ डूबी उतराती आतुरता लिए फिरती है ये कविता ....जन्म अष्टमी मुबारक .कृपया यहाँ भी कभी दस्तक दें ,शुक्रिया .
ram ram bhai
शुक्रवार, 10 अगस्त 2012
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा में है ब्लड प्रेशर का समाधान
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा में है ब्लड प्रेशर का समाधान
ram ram bhai
h
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteसुन्दर कविता..
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
अनु
Amrita,
ReplyDeleteAPNE CHHUPE DARD KA VYAKHYAAN DIL CHHOONE WAALAA KIYAA HAI.
Take care
लाजवाब!!
ReplyDeleteकुछ बेहद उत्तम प्रयोग ..
चेतना का शाप और
देह के धर्म में ठनी अनबन
**
एक बार जी भर के
रचना में दर्द को छटपटाने दो
चौंको मत !
जगह-जगह से फूटी गागर ही सही
तनिक भी तो भर जाने दो .
यदि आपकी सहमति हो तो इसे हम ‘आंच’ के अगले अंक में लें? हां, समीक्षा में थोड़ी बहुत आलोचना भी हो सकती है।
Deleteरचना को जो कहना होता है वो कह कर चुप हो जाती है .यदि समीक्षक अथवा आलोचक कुछ और कहलवाना चाहें तो रचना को ख़ुशी ही होती है . स्वागत है ...
Deleteथैन्क्स!
Deleteलाजवाब!!बहुत सुन्दर.. कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमन के उहापोह का सुन्दर विश्लेषण
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteजगह-जगह से फूटी गागर ही सही
ReplyDeleteतनिक भी तो भर जाने दो .....लाजवाब!!!
मन आहत होता है, फिर भी,
ReplyDeleteकोई क्षितिज में बैठा बैठा,
अपनी ओर बुलाता है,
जाने को मन आतुर रहता,
पैर नहीं उठ पाते हैं,
जाने क्या हो जाता है?
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .
गहरी सोच ... रचना का सृजन तो दर्द की अभिव्यक्ति भी है ...
ReplyDeleteआज फिर
ReplyDeleteएक बार जी भर के
रचना में दर्द को छटपटाने दो
चौंको मत !
जगह-जगह से फूटी गागर ही सही
तनिक भी तो भर जाने दो .
"अपनी ही बंदिश में जाने क्यों सीमित रहते कुछ लोग ?..".छोटा सा आकाश लिए क्यों भ्रमित चकित रहतें हैं लोग ....रचना आपको पूरी करनी है अमृता जी ....कृपया अगली पोस्ट फाइबरो -मायाल्जिया का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक म...ज़रूर पढ़ें .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए जो हमारे लिए बेहद महत्व लिए रहतीं हैं आंच मुहैया करवातीं हैं लेखन को .
Dil se nikli hui ak marmik rachna bahut hi sundar lagi .
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteतन्मयता से पढ़ गया . कविताई के नए नए प्रतिमान गढ़ती हुई अमृता
ReplyDeleteबेहद गहन है पोस्ट .....शानदार अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteझील की सरगोशियों में चाँद गुनगुनाया है
ReplyDeleteआँखों में दर्द का प्रतिबिम्ब उतर आया है....
SUNDAR KAVITA.. AANCH PAR PADHKAR AAYAA HOON...
ReplyDeleteबदल-बदल कर लाख मुखौटा
ReplyDeleteक्यों अपने में ही छिप जाती हूँ...
बहुत शानदार कविता । लाजवाब
आज इस रचना को पढ़ने का अवसर आंच से मिला .... बीते कुछ दिनों में मैं नियमित नहीं रह पायी इसीलिए यह गहन अभिव्यक्ति पढ़ने से रह गयी ....
ReplyDeleteकविता का सृजन जब होता है उस समय कवि- मन क्या सोचता है यह कवि ही समझ सकता है .... और फिर हर पाठक उस कविता का अर्थ अपने मन के अनुरूप ही उसे ग्रहण करता है ... सुंदर प्रस्तुति
वेदना की अभिव्यक्ति नए तरीके से हुई है । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteनिशदिन अँधेरे-पाख और
ReplyDeleteनन्ही परछाईं से भी डरते हुए
रह-रह कर कँप जाती हूँ
बदल-बदल कर लाख मुखौटा
क्यों अपने में ही छिप जाती हूँ...
निशब्द हूं पढ़कर!!इतनी सरलता से खुद को अभिव्यक्त करना हरेक से कहां संभव हो सका है कभी किसी से!!
अब तो
ReplyDeleteहे! खारे आँसू
इन अधरों तक ही रुक जाओ
विधना विमुख है तो भी
करुण उद्गार से न चूक जाओ...
आज फिर
एक बार जी भर के
रचना में दर्द को छटपटाने दो
चौंको मत !
जगह-जगह से फूटी गागर ही सही
तनिक भी तो भर जाने दो 👌👌🙏🙏.