इस 'आज' की
बौखलाई कविता से
( समाचारवाचिका सी )
संतुलित संवेदना भी जाहिर होती तो
सहनीय होती उसकी बौखलाहट
शब्द वाया भावों की
थोपी जिम्मेदारियों से
कटघरे में घेर कर भी
बरी कर दी जाती
( समाचार सी पढ़ ली जाती )
इस 'आज' के
हालातों - ज़ज्बातों को वह
बिना लाग-लपेट के कहती रहती
ख़ुशी-गम से निकली आह-वाह को
ख़ुशी-ख़ुशी सहती रहती....
पर इस 'आज' की
बौखलाई कविता
एकालाप से त्रस्त कविता
कंठ के आक्षेप से ग्रस्त कविता
अब चुप ही रहना चाहती है
कोई लाख बोलवाये पर
मुँह नहीं खोलना चाहती है....
जबकि इस 'आज' का
बौराया कवि ( मैं भी )
सब रसों का रस चूस-चूस कर
अपना रस टपका-टपका कर
कविता कहता है
और खुद ही इतना बोल जाता है
कि बड़ी मुश्किल से
इस 'आज' की कविता में
ढूंढी गयी रही-सही
खूबसूरती भी
खुद कवि के ही काया-क्लिनिक में
अत्यधिक रंग-रोगन करके
शब्दित मेक-ओवर की
सुलभ शिकार हो जाती है .
कवि का कटाक्ष, कवि पर कटाक्ष।
ReplyDeleteबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
यही तो है कविता का री -मॉडल ,री -मिक्स ,शब्दों की बाजीगरी ,मेक -ओवर 'आज 'की (अ -)कविता का ,नव -कविता का .कहतें हैं इसे शब्दित मेक ओवर .
ReplyDeleteआज की कविता में आती जाती लहरें हैं , जो सुनामी होना चाहती हैं
ReplyDeleteकविता की सुन्दरता बढ़ाने के प्रयास में न जाने क्या क्या करते हैं कवि।
ReplyDeleteबड़े गूढ़ अर्थ लिए.........
ReplyDeleteएक मर्तबा पढ़ी...फिर पढ़ी.....
बहुत खूब...
अनु
बहुत सुंदर, क्या बात
ReplyDeleteआज की कविता भावों का द्वंद्व है ...गेयता भले ही कम हो गूढ़ता ज्यादा है मेक ओवर के चक्कर में यदि कविता शिकार हो जाती है तो डॉक्टर ( कवि ) की निश्चय रूप से गलती है ... बढ़िया कटाक्ष किया है
ReplyDeleteबहुत सटीक और विचारपूर्ण कविता
ReplyDeleteअपने तो ऊपर से निकल गया जी ये मेक ओवर :-)
ReplyDeleteअमृता, आप की काव्य विधा और संरचना मे प्रयुक्त शब्द जब भावों के रंग में रंग जाते हैं तो एक इंद्रधनुषी प्रखर भावोद्गीत की उत्पत्ति स्वतः हो जाती.. आपकी कविताओं को पढ़ने का सुयोग मिलना भी एक उपलब्धि है....और इसे समझने के लिए बार बार पढ़ना बिलकुल वैसे ही है जैसे मंदिर मे जा कर आरती की बेला मे बजती घण्टियों की धुन में रची बसी मंत्र की शक्ति पुजा करना....यह हमें पढ़ने और लिखने दोनों की ताकत देती है.. लिखते रहिए और प्रेरणा का श्रोत्र बनते रहिए...शुभम भूयात...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
गहन भाव लिए ...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकटाक्ष अच्छा है.......
ReplyDeleteबड़े चिंतन मनन का परिणाम है
बहुत खूब
बड़ी ही भाव प्रवण रचना, वाह !!!!!
ReplyDelete.................बहुत सुंदर
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ
मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ कृपया मेरा मार्ग दर्शन करे
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
एकालाप से त्रस्त कविता ...
ReplyDelete... अब चुप ही रहना चाहती है
सुन्दर चिंतन,
सादर
बौखलाई सी कविता ....
ReplyDeleteकाया -क्लिनिक में रंग रोगन कर तैयार की गई ...मेक ओवर कि गई कविता ......
बहुत अनूठे बिम्ब इस्तेमाल किये हैं अमृता जी ....
दृढ़ता से रखी अपनी बात ...
बहुत सुंदर ..
मेक ओवर के चक्कर में सारा किया धरा गुड़-गोबर न हो जाय। इतनी सावधानी तो जरूर बरती जानी चाहिए। मेकअप के बाद रेडी हुई कविता में समाचार सी भावहीनता का आगमन स्वतः हो जाता। जिससे आजादी का रास्ता लिखने वाले को खुद ही खोजना पड़ता है। इस प्रयास में हम केवल प्रोत्साहन देने वाले की भूमिका निभा सकते हैं। तारीफ के अलावा अगर लेखन के आस-पास भी बात करने की परंपरा शुरू हो तो शायद कुछ बात बन सकती है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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अन्तर्राष्ट्रीय मूर्खता दिवस की अग्रिम बधायी स्वीकार करें!
aapka kekhan anootha hai...sahitya samaj ka darpahota hai aapne sraahity ko darpan dikha diya apne is behtarin kavyabhivyakti se....utkrist rachna ke liye ke liye sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteसही कटाक्ष..भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteअंतर्द्वान्दात्मक, गहन भाव युक्त
ReplyDeleteएकालाप से त्रस्त कविता
ReplyDeleteकंठ के आक्षेप से ग्रस्त कविता
सुन्दर व्यंग मनमाफिक
पढ़ने वाले में नैतिक ऊहापोह पैदा करे, तयशुदा प्रपत्तियां हिला दे ऐसी रचना कम ही मिलती हैं।
ReplyDeleteकविता के कथ्य और शैली में नवीनता झलक रही है।
ReplyDeleteआज की कविता और कवि के दर्द और चिंतन को कुशलता से प्रस्तुत किया आपने!
ReplyDeleteआभार.
मैक ओवर भी जरुरी है.
ReplyDeleteनए बिम्ब को ले कर .. अपने आप से बात करती सी कविता ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteउत्तम....
ReplyDeleteहम तो अभी भी रंग रोगन ढूढ़ रहे है कविता के मेक ओवर के लिए . गूढ़ कटाक्ष .
ReplyDeleteकवि का कटाक्ष क्यों ,प्रसंग क्या ? संदर्भ क्या ?
ReplyDeleteअनूठा विषय और उसका लाज़वाब मेक ओवर ....बहुत सटीक अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDeleteमेक ओवर का ज़माना है...हर कहीं...
ReplyDeleteकवि पर कटाक्ष, लेकिन कवियों के भी प्रकार होते है।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteभाग्य बदलते देर नहीं लगती !
बहुत अच्छा हें
ReplyDeleteमै जितना समझ पा रहा हूँ... उसके हिसाब से यह एक निर्मम प्रहार है और खुद के लिए चेतावनी भी.. सुन्दर लगा.
ReplyDeleteशब्दों से न सजाया जाए तो कविता कैसे बनेगी. अपनी कविता के गालों पर बहुत अधिक और औघड़ रंग मलने वालों को क्षमा दान मिले. उनकी कोशिश को कोशिश की मान्यता मिले :))
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