सत्यश :
जो जैसा है
समर्पित है
स्वयं सत्य को
बस कोई
पूर्ण प्रमाण
देने वाला चाहिए...
सुना है
रोशनी तो
पलक पर ही
विराजती है
बस कोई
दक्ष दस्तक
देने वाला चाहिए....
गिरि पर
गर्भिणी गंगोत्री में
दिखती नहीं गंगा
बस कोई
सूक्ष्म नयन
देखने वाला चाहिए....
कुछ बूंदें
जैसे-तैसे
हाथ तो लगी है
बस कोई
सागर का
पक्का पता
बताने वाला चाहिए...
कहते हैं
काव्य में
मधुरता और
मादकता होती है
बस कोई
संज्ञा सिद्ध
करने वाला चाहिए....
अभी भी
बस एक
जरा सी कड़ी
खोई-खोई सी है
बस कोई
एक आखिरी बात
जोड़ने वाला चाहिए .
वाह भाई वाह ।
ReplyDeleteकोई बताने वाला चाहिए --
जबरदस्त प्रस्तुति ।
काश कोई हर पग पर ऐसे ही साथ देता रहे।
ReplyDeleteअभी भी
ReplyDeleteबस एक
जरा सी कड़ी
खोई-खोई सी है
बस कोई
एक आखिरी बात
जोड़ने वाला चाहिए . kafi sundar
आहा!
ReplyDeleteहर कार्य की सम्पूर्णता के लिए किसी का साथ ज़रूरी है.. बेहतरीन!
waah atti sunder .......baaten to hai bahut par sunane wala chahiye
ReplyDeletedil ke jajbato ko kalam dwaralikhne wala chahiye
aapne is bar to sab kah diya ......par ab intjar khatm hona hi chahiye ........sunder amrita ji .............:))))))))))))
वाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबस कोई चाहिए पूर्णता को पूर्णता जाननेवाला
ReplyDeletebehad khoobsurat kavita likhi hai.....
ReplyDeletetalash TALASH talash .
ReplyDeletesearch to right person
and search to right object.
very much difficult but if we are
right than it comes to us.
I HOPE YOU MUST FIND THE RIGHT PERSON
WITH RIGHT OBJECT AS PER YOUR DESIRE.
वाह क्या बात कही है ………जरूर मिलेगा आखिरी कडी जोडने वाला परम से मिलाने वाला
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत!!!
ReplyDeleteगिरी पर गर्भिणी गंगोत्री में दिखती नहीं गंगा..
बस कोई सूक्ष्म नयन देखने वाला चाहिए...
लाजवाब...
एक आखिरी बात जोड़ने वाला चाहिए ...इसी एक की प्रतीक्षा में आत्मा ठिठकी हुई है..बस एक पूर्ण घटना !!! :)
ReplyDeleteमनके भी है,
ReplyDeleteमोती भी है,
बस जरा
मन की गांठे खुल जाएँ ,
सिरे जुड जाएँ...
जुड जाए हर कड़ी एक - दूसरे से.
प्रभु आपकी अभिलाषा पूर्ण करे.
आपकी कविता-संग्रह कब प्रकाशित हो रही है ?? अग्रिम शुभकामनायें.
जोड़ने वाला जरूर आयेगा...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत!!!
ReplyDeleteगिरी पर गर्भिणी गंगोत्री में दिखती नहीं गंगा..
बस कोई सूक्ष्म नयन देखने वाला चाहिए...
सौन्दर्य की सार्थकता के लिए दृष्टा भी तो चाहिए ,देखना कितना भला हो ,देखने वाला चाहिए ,हाथ फैले सब खड़े हैं ,दाता एक चाहिए . अच्छी विचार सरणी है .कलकल बहती सरयू सी .
सच है हर चीज की कद्र होती है बस कद्रदान होना चाहिए ...
ReplyDeleteकितना सुँदर है सब कुछ . अद्भुत . अप्रतिम
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
नीरज
बस कोई संज्ञा सिद्ध करने वाला चाहिए....
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर रचना....
सादर.
सकारात्मकता से ही पूर्णता मिलती है ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....अमृता जी ...
सुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteपूर्णता की चाह... अद्भुत भाव...
ReplyDeleteकोई आखरी बात ...!!
ReplyDeletebahut umda...badhiya prastuti..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
कहते हैं
काव्य में
मधुरता और
मादकता होती है
बस कोई
संज्ञा सिद्ध
करने वाला चाहिए....
यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना
ReplyDeleteसुना है रोशनी तो पलक पर ही विराजती है कोई दक्ष दस्तक देने वाला चाहिए ....
ReplyDeleteसब दृष्टि और आत्मबल का खेल है हर काम सिद्ध हो सकता है ..बहुत सुन्दर शब्द संयोजन और भाव
सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवही 'एक ज़रा सी कड़ी' कभी कभी जीवन को पूरी तरह परिभाषित करने में कामयाब हो जाती है ..बशर्ते वह सिरा मिल जाये ....सुन्दर!
ReplyDeleteबस कड़ी जुड़ जाए तो सब बात पूरी है चाहे वह “बस कोई” ही क्यों न हो।
ReplyDelete...ज़रा सी कड़ी खोई है कहीं...
ReplyDeleteइतने अछे आत्म-मंथन से निसंदेह वो भी मिल जाएगी :)
बहुत ही सुन्दर भाव हैं, अनुपम रचना है!
ReplyDelete♥
.
बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने.
बधाई !
.
ReplyDelete♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
वाह क्या कहने ..एक अमर रचना ..
ReplyDeleteयाद रहेगी बजूद रहने तक की ...
किसने रचा ली आपसे यह ?
यह मानव के वश की तो नहीं ..जैसे वेद अपौरुषेय कहे गए हैं ..
यह रचना देवत्व की देहरी छूती है ...अनिर्वचनीय ..साधुवाद !
इनाम देने का मन हो आया ! क्या दूं?
बहुत ही सुन्दर भाव ----------नवरात्री की शुभकामनायें
ReplyDeleteकिसी का साथ मिल जाये तो हर ख़ुशी दुगुनी हो जाती है....
ReplyDeleteसुकोमल भाव,बेहतरीन अभिव्यक्ति....
गूंगे के गुड सी अनिवर्चनीय है यह रचना बस कोई समझने वाला चाहिए .........यहाँ वहां कितना कुछ बिखरा है बस कोई समेटने वाला पात्र चाहिए .कृपया यहाँ भी कर्म फरमाएं -
ReplyDeleteram ram bhai
बुधवार, 21 मार्च 2012
गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteइस आख़िरी कड़ी को जोडने वाला ही तो चाहिए...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteअभी भी
ReplyDeleteबस एक
जरा सी कड़ी
खोई-खोई सी है....
बस कोई
एक आखिरी बात
जोड़ने वाला चाहिए...
खोई सी कड़ी को जोड़ने वाला ही आखिर तक याद किया जाएगा...
आपने नि:संदेह सुन्दर शब्दों की कड़ी पिरोई है...
वाह बहुत ही सुन्दर थोडा सा और कोई सहारा मिल जाये तो सब कुछ हो जाये।
ReplyDeleteबस कोई आखरी बात जोड़ने वाला चाहिए ... वाह !!
ReplyDeleteअदभुत है आपका चिंतन,अनुपम है आपका लेखन.
ReplyDeleteपढकर मन गदगद हो जाता है.
बहुत बहुत आभार,अमृता जी.
bahut khoob ...bahut badhiya kaha AApne Amrita....main bhi aise hi khuch pal dhoondh raha hun....kuch aaj dhoondh raha hun...air kuch kal dhoondh raha hun....
ReplyDeletePar milta nahi wo "Nayaab"....fir dhoondhte rahiye aur likhte rahoye...ek ek shabd nayaab...umda...bahut umdaa...
अभिनव शब्द प्रयोग और अर्थ का एक नाम है अमृता तन्मय .
ReplyDeleteआपकी चर्चा आज यहाँ भी है -
क्वचिदन्यतोSपि...
अर्थात मेरे साईंस ब्लागों से अन्य,अन्यत्र से भी ....
Saturday, 24 March 2012
चिट्ठाकार चर्चा की नीरवता को तोड़तीं अमृता तन्मय!
http://mishraarvind.blogspot.in/
मौलिक कथ्यों की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteयह अमृता तन्मय के मुहावरे की कविता है. दार्शनिक भी और काव्यात्मक भी. आजकल ऐसी कविताएँ कम ही लिखी जाती हैं.
ReplyDeleteक्या कमाल की कड़ी ढूंढी है, 'आखिरी बात' में! ..लाज़वाब।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति और बहुत ही सामायिक भी.
ReplyDeleteअद्भुत रचना .... बहुत गहनता से लिखी है ...
ReplyDeleteकाव्य में मधुरता और मादकता सिद्ध कर दी आपने.बधाई.....
ReplyDeleteएक ज़रा सी कड़ी ही तो जिंदगी का सत्य है, बस उतना सा कोई जोड़ दे फिर तो जीवन सफल, बहुत सुन्दर और सशक्त रचना. बधाई.
ReplyDeleteव्यक्त-अव्यक्त औऱ प्रत्यक्ष-परोक्ष के बीच के संबंधों की पड़ताल करती कविता। महसूसने वाले मन की जरूरत को रेखांकित करती हुई। लेकिन जो प्रत्यक्ष दिख रहा है। उससे भी तो मुख नहीं मोड़ा जा सकता। उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। आपकी बाल सुलभ सहजता और अधीरता सजीव हो उठी है। परियों के इंतजार वाली कविता जैसा आत्मविश्वास नजर आता है। अज्ञेय को जानने और परिभाषित करने की मानवीय जिजीविषा को शब्द देती कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लेकिन जैसा कि आपने कुद कहा है कि कोई आखिरी कड़ी, कोई अंतिम बात आनी बाकी है। तो आपने अगली कविता में उसे मूर्त रूप देने की कोशिश की है कि अगर लिख सको तो...महाकाव्य लिखना। स्वागत है।
ReplyDelete:) :)
ReplyDelete