चकित हूँ / चिंतित भी
कलम - कागज़ के बीच
कसमसाती सृजनशीलता को देखकर
जी करता है हरवक्त उसे
हौले - हौले सहलाती रहूँ
विवशताओं की कमजोरियों को
अक्षरों से गुदगुदाती रहूँ........
अब तो इस कलम के सहारे
छोटे - बड़े हर पहाड़ को
जड़ से ही काट लेती हूँ
भूगर्भीय भूकंप के झटकों से
फिर बनते पहाड़ों को भी
झटके में भांप लेती हूँ........
माना कि गेंद बनाकर
शब्दों से खेलते रहना
कोई खूबसूरत शगल नहीं है
पर चोटील दर्द के डर से
चुप्पी की खाई में गिरकर
घुटनों पर घिसटते रहना भी
कोई खुशगवार हल नहीं है......
मन तो ललचता ही है कि
आँखों में जरा खुमार भरकर
सर पर कई-कई पाँव धरकर
अकल्पित/ अपरिचित ओर-छोर को
इस छोटी सी कलम की
छोटी सी नोक से नापती रहूँ
और अति यत्न से संचित
उत्साह को बेझिझक /बेवजह
बस बेहिसाब बांटती रहूँ........
मुझे क्या पता था कि
ये उत्सुकता / आकर्षण ही
सृजन बेल सी लतर जायेगी
और काँटों पर भी ललककर
खुद ही अपना आशय बताएगी .
भावों की अभिव्यक्ति करने से बड़े बड़े बोझ उतर जाते हैं ह्रदय के...
ReplyDeleteकलम कभी रुके ना....
नोंक कभी घिसे ना....
सादर.
haa kuch yesa hi hota hai .... sabdsh satya .. bahut hi sundar ...
ReplyDeleteये उत्सुकता/आकर्षण ही
ReplyDeleteसृजन बेल सी लतर जायेगी
उत्सुकता और आकर्षण ही तो हैं सृजन बेल की जड़े
सृजन बेल ऐसे ही फैलती रहे और उसकी लतिकाएँ हमेशा हरी भरी रहे . सुँदर रचना .
ReplyDeleteअमृता जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.......अद्भुत भावाभिव्यक्ति. हरेक भावों को बहुत सुंदर और सटीक शब्द दिए हैं..बधाई!
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
अभिनव भाव अभिव्यंजन सुन्दर मनोहर रचना .
ReplyDeleteअमृता जी, आपका उत्साह बना रहे और औरों के जीवन को भी इसी तरह छूता रहे आपकी सृजन लता न केवल आपकी भव बाधा हरे अन्यों के जीवन पथ को भी सरस करे...
ReplyDeleteसृजन-शीलता दे जला, तन-मन के खलु व्याधि ।
ReplyDeleteबुरे बुराई दूर हों, आधि होय झट आधि ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत सुंदर और सटीक शब्दों की प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
aap yun hi likhti rahe .. yahi dua hai .
ReplyDeleteअब तो इस कलम के सहारे
ReplyDeleteछोटे - बड़े हर पहाड़ को
जड़ से ही काट लेती हूँ
लेखनी के प्रति आपकी यह आस्था हमेशा बनी रहे । रचना आपके अपराजेय मन का पता देती है। अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
कल 15/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
एक कलम की छोटी नोंक में पूरा विश्व छिपा है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल 15/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-819:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
Bachpan mein padha tha...do mein se tumhe kya chahiye kalam ya ki talwar....sach puchho to us waqt kalam ki takat ko naapne ki kshamta na to hammein thi aur na hi samrthya hi...par aaj uski takat ka hamein pata hai...aur agar kalam aapke hathon ki shobha badha raha ho Amrita, to fir uski takat dwigunit ho jaati hai...pahar choota ho ya bara...kat hi jayega...sankat ka samadhan hona hi hai...
ReplyDeletebahut khoob...
aapne Asooryampashya ki sarahna ki...shayad Artnaad miss kar gayi dekhna aap...aur aaj Man ki aankhein nam ki painting v upload kee hai maine...to dekhna na bhooliyega..
punah...aapke kalam ko sadhuvaad aur aapko bhi...
your expression of emotions and feelings keep me waiting your new post so please keep it.
ReplyDeleteNO THANKS JUST PRANAM.
सृजन के अपने कष्ट हैं...अपने और दूसरों के झंझावातों को झेलना...कठिन प्रक्रिया है...पर सृजन की संतुष्टि भी मिलती है...
ReplyDeleteजीवन के मसलों को उसके निर्माण की नींव खोंद कर क्रूरता को बाहर निकाल लाने वाली सृजानात्मक ऊर्जा इस कविता में दीखता है। इसी उर्जा ने तो लिखवाया है ...
ReplyDeleteआंखों में ...
... नापती हूं ..
सृजन बेल यूं ही लहलहाती रहे ... सुंदर रचना
ReplyDeleteयह उत्सुकता यह आकर्षण ही तो सृजन बेल का आसरा हैं ..जिनके सहारे वह फलती फूलती है .....अमृता जी आपकी सृजन बेल हमेशा लहलहाती हुई हमें यूहीं मंत्रमुग्ध करती रहे
ReplyDeleteसृजन बेल यूं ही बढती रहे ...इसे फलती ...फूलती देख कर बड़ा हर्षित होता है मन ....
ReplyDeleteशुभकामनायें अमृता जी ....
बहुत ही सुन्दर.....आपकी कलम हमेशा चलती रहे यही दुआ है हमारी ।
ReplyDeletekhoobsurat rachna !
ReplyDeleteकलम कागज़ के बी ह का अंतर दूर करना चाहिए और सर्जन करना चाहिए नए नए शब्दों का ... उनके अर्थों का ...
ReplyDeleteबेल की हरियाली ने जो काटों को अवगुंठित कर लिया है तो ऐसे ही बने रहने दो.....
ReplyDeleteजा तन की झाईं परे श्याम हरित दुति होय !
बहुत ख़ूबसूरत रचना...यह सृजन बेल यूँ ही सदा लहलहाती रहे...
ReplyDeleteखूबसूरत भावो से सजी सुंदर कविता.
ReplyDeleteसादर.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति... एकदम मन से सीधी उतरी हुई सी...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति... एकदम मन से सीधी उतरी हुई सी..
ReplyDeleteछोटी सी कलम की छोटी सी नोक से उकेरे शब्द भीतरी हाहाकार या प्रसन्नता को व्यक्त तो करते हैं , कुछ ना करे तब भी !
ReplyDeleteबढ़िया !
माना कि गेंद बनाकरशब्दों से खेलते रहना खूबसूरत शगल नहीं है
ReplyDeleteपर चोटिल दर्द के डर से चुप्पी की खाई में गिर कर घुटनों के बल घिसटते रहना भी कोई खुशगवार हल नहीं है........वाह !!!!!!! जीवन के यथार्थ का इससे खूबसूरत शब्द चित्र और भला क्या हो सकता है.मेरी पंक्तियाँ याद आ गईं-
जीवन है एक कठिन प्रश्न तो
बड़ा सरल ही उसका हल
जितना गहरा दु:ख का कुँआ
उतना ही मीठा सुख का जल.
ये उत्सुकता/आकर्षण ही
ReplyDeleteसृजन बेल सी लतर जायेगी
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
srujan bet falti foolti rahe..bahut pyara likhti hain aap...
ReplyDeleteअनकहे को शब्द देकर चाहतों के गुम्बद बनते हैं , अपनी बात कह जाने का सुकून सृष्टि निर्माण से कम नहीं
ReplyDeleteआपके पास जो शब्द एवं भाव हैं वे आपकी कविता को सुदर बना देते हैं । एक अच्छी कविता सदा मन में स्थान बना लेती है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteहो रहा सृजन बढ़ती बेल है और बढ़ती बेल सृजन का स्वरूप है. रचना बहुत ही खूबसूरत है.
ReplyDeletesunder prastuti ...kalam kare srajan , kabhi na thake uske kadam .........badhai .:)
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteएक छोटी सी कलम की नोक, तलवार से ज्याजा प्रभाव कारी होती है।
ReplyDeleteयही करवती हैं क्राँतियाँ, सत्ता परिवर्तन होता है, इन्हीं नन्हीं कलमों की नोंको से....सुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति.....
सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteचोटिल दर्द के डर से ......
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना
अच्छा लगा.. बधाई स्वीकार करें
ReplyDelete