मेरे प्रेम में
लिख सको तो
महाकाव्य लिखना
आसमानी भाव के
अंतहीन पन्नों पर...
कह सको तो
अपने तप के
बादलों को कहना
झूम-झूम कर
बरसता रहे
अनवरत
अमृत धार बनके
और
हर प्रेमाकुल
तप्त ह्रदय को
सींचता रहे
प्रतिपल
पतित-पावन
संस्कार बनके...
जो केवल
शब्दों की शोभा
न बनकर
शंखनाद सा
बजता रहे
बारबार
प्राणों के तारों पर
शाश्वत ओंकार बनके .
लिख सको तो...
इससे कम कुछ नहीं????
ReplyDeleteवाह!!!
अति सुन्दर ....
अनु
बहुत सुन्दर सशक्त रचना...
ReplyDeleteउम्दा भाव संयोजन्।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
बेहद सुन्दर भावों से सजा प्रेमगीत..
ReplyDeleteआभार.
सुंदर कामना... उत्तम सृजन....
ReplyDeleteसादर।
हर एक इंसान को ऐसा महाकाव्य लिखने वाले/वाली की तलाश! :)
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन बढ़िया रचना .....
ReplyDeleteलिख सको तो..
ReplyDeleteमेरे आह की मौन गाथा लिखना
मेरे संतप्त स्वर का राग लिखना
लिख सको तो..
मेरी पवित्र साँसों की
उम्मीद लिखना
जो निराकार है
निर्जन है..
पर..शाश्वत सरोवर में
साधना में लीन है...
हम बहुत हद तक अंदाज लगा सकते हैं कि आपके शब्द कहाँ से जन्म ले रहे हैं.. तारीफ़ के लिए कहाँ से लाये शब्द..
वाह ...बहुत ही बढिया
ReplyDeleteकल 28/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...
मेरे प्रेम को महाकाव्य लिखना......वाह.....बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है, निशब्द हूँ इन भावनाओं की प्रसंशा में
ReplyDeleteबहुत अच्छी कामना... शुभकामनाएं...
ReplyDeleteमेरे प्रेम में
ReplyDeleteलिख सको तो
महाकाव्य लिखना
आसमानी भाव के
अंतहीन पन्नों पर...
ताकि फिर बने इतिहास पद्मावत का , बनो तुम जायसी लिखो महाकाव्य मेरे नाम
बहुत सुन्दर....
ReplyDelete"लिख सको तो
मेरे प्रेम में
महाकाव्य लिखना......."
इससे कम में काम कहाँ चलने वाला है.....
फिर वो ही शाम ,तनहा कुछ-कुछ उदास ,
ReplyDeleteरोज़ कुछ न कुछ खोने का एहसास .
हम मंजिल के मोड़ पे आके .
रुके से हैं ,
मत समझना हम थके हुए से हैं .
सम्पूर्ण बिम्ब हैं /मन के कुन्हासे ही नहीं इरादे भी हैं पक्के .......
बस कुछ लोगों को और साथ ले लें ,फिर चलतें हैं .
एहसासे ज़िन्दगी ही क्या हाइकु है सचित्र .
लिखो गीतगोविन्दम कुछ भी न बनकर...
बहुत अच्छी रचना ...
लिख सको तो लिखो एक 'ढौला मारुरा '
ReplyDeleteगुण सकों तो गुणों बन कबीर निर्गुनिया राम को ...
बेमिसाल ... !! इसके अलावा और कोई शब्द नहीं सूझ रहा ...
ReplyDeleteबहुत खूब, सुन्दर.
ReplyDeleteप्रेम के इस संस्कार को.. शाश्वत ओंकार को.... सादर नमन
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति । धन्यवाद ।
ReplyDeleteखूबसूरत,,,,,,,
ReplyDeleteलेखन हो जो सुख पहुँचाये,
ReplyDeleteसबको सबकी राह दिखाये।
बहुत सुन्दर पोस्ट !
ReplyDeleteयाचना प्रेम की पराकाष्ठा की ....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अमृतमयी अभिव्यक्ति ,अमृता जी ......!!
waah bahut sunder rachna hardik badhai .
Deletemeri nayi post on
http://sapne-shashi.blogspot.com
मधुर कामना है आपकी ... प्रेम में लिखने वाले सच में ग्रन्थ लिख देते हैं... जीवन भी तो एक ग्रन्थ ही है ...
ReplyDeleteलिख सको तो ... ओंकार के बाद शेष कुछ नहीं ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletelikh hi diya...:)
ReplyDeletebahut pyari abhivyakti:)
बस वही आध्यात्म भाव ....कण से ब्रह्मांड तक प्रेम की अनंत यात्रा !
ReplyDeleteजग कल्याण की भावना से लेखन ओंकार का प्रतिबिम्ब सदृश होता है .आप की सिद्धहस्त लेखनी गूढ़ बातों को सहजता से बता जाती है .
ReplyDeleteपहली पंक्ति पढ़ते हुए लगा कि कापी बड़ी चुनौती है। किसी के प्रेम में कोई महाकाव्य लिखना। लेकिन आखिर में आपने ही अपने सवालों का जवाब दिया कि कोई शब्द जो अंतिम सत्य को समर्पित हो। तारीफ करना भी बहुत सामान्य सी बात होगी। आपका यह सफर चलता रहे। आप लिखते रहिए। हो सकता है किसी दिन किसी महाकाव्य की नींव पड़ जाए। काफी उम्मीद जगाती कविता। इस तरह के भावों को अभिव्यक्त करने की आपकी क्षमता ध्यान आकर्षित करती है। बहुत-बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-03 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है
व्यष्टि से समष्टि तक गुंजायमान रहेगी यह रचना ! और वह महाकाव्य समर्पण का अनहद नाद होगा।
ReplyDeleteशाश्वत ओंकार की तरह तरंगित होती रचना !
नमन !
bahut sundar bhaavon se saji sashaqt abhivyakti.
ReplyDeleteसुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसिद्धहस्त रचना
ReplyDeleteकविता के भाव बहुत अच्छे लगे।
ReplyDeleteदु:खों से भरी इस दुनिया में सच्चे प्रेम की एक बूंद भी मरूस्थल में सागर की तरह है।
भाव पूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबड़ी कोमल सी, सुन्दर सी कविता है दीदी!!
ReplyDelete