हवा के झझकोरे से
बिखरे पत्तों को देखकर
बच्चों की भाँति
ठिठक जाता है - भीरु मन
और चलने से मना करता है
एक भी कदम...
फिर उसी हवा के झोंके में
देखता है भर अचरज - मन
कोरा कोंपल -कलियन
कि प्रस्तुत होता है अप्रस्तुत मन
पूरे अकड़ और जकड़ के साथ...
मजबूर करता है सामने पड़े
धारणाओं के चट्टानों को
मजबूती से परे लुढकाने को...
अपने तले कुचल कर
आती सारी अड़चनों को...
भुलाकर अबतक की सभी
भूलों और पछतावों को
व्यर्थ की शंकाओं एवं दुष्कल्पनाओं को..
अचानक से इसी पल में
न जाने कहाँ से
आ जाती है इतनी शक्ति कि
घुमावदार मोड़ों पर भी
आत्मबल का लेकर छाँव
सीधे पड़ने लगते हैं टेढ़े पाँव....
सधने लगती है दृष्टि भविष्योन्मुख
विषम संघर्ष से अनुभावी सुख.....
शांत हो कहता है - मन
-- यही है जीवन
भला रुकी है हवा किसी क्षण...
माना कि है
अनुभवों का बीहड़ वन
पर इसी में एक दिन
खिल उठते है
अति सौरभ बिखेरता हुआ
अति सुन्दर अनागत कुसुम .
वाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
आशाओं से भरी रचना.....
अनु
समय नहीं ठहरता न रूकती है हवा - लगती हैं चुप सी , पर चलती है ............ मैं भी चल रही , भय अन्दर है , हौसला और मुस्कान भरी उर्जा बाहर
ReplyDeleteविषम संघर्ष से अनुभावी सुख...
ReplyDeleteशांत हो कहता है – मन
- यही है जीवन।
सुंदर रचना....
सादर।
BEAUTIFUL OPTIMISTIC LINES FUL OF EMOTIONS AND
ReplyDeleteDEEP THOUGHT
वाह||
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना,
सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना है।बधाई।
ReplyDeletebeautiful....
ReplyDeleteemotional.....
वाह बहुत उपयोगी प्रस्तुति!
ReplyDeleteअब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग-दौड़ में लगा हूँ!
बृहस्पतिवार-शुक्रवार को दिल्ली में ही रहूँगा!
Amrita,
ReplyDeleteAAJ MAINE NISHCHAY KAR LIYAA HAI KI MAIN EK DIN BHEE ANUUPSTHITH NAHIN REH SAKTAA. ITNI GOORH KAVITAYEN EK SAATH PADNE PAR MAN BETAAB HOTAA HAI.
Take care
प्रेरक कविता। सबसे पहले हमारे पास जो है, उसके लिए संतोष का भाव होना चाहिए, और जो नहीं उसके लिए कोशिश होनी चाहिए। सिर्फ असंतुष्ट रहने का कोई मतलब नहीं है।
ReplyDeleteविरोधों में भी उग आने की क्षमता है इनमें।
ReplyDeleteबचपन के प्रकृति से संवाद का आपने सहज चित्र खींचा है कि कैसे एक पल में हमको डराने वाली चीजें आकर्षक लगने लगती हैं। हम अपना खोया हौसला फिर से पा लेते हैं। तमाम बाधाओं के बावजूद बढ़ चलते हैं आगे... बेफिक्री से लड़खड़ात हुए भी चलने की कोशिश करते बच्चे की तरह। जो सहज ही लांघ जाता है पुराने अनुभवों के बीहड़ बन को क्योंकि उसे प्राप्त है......सहज विस्मृति का अद्भुत वरदान। इन नवागत कुसुमों को हार्दिक स्वागत है। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteमजबूर करता है सामने पड़े
ReplyDeleteधारणाओं के चट्टानों को
मजबूती से परे लुढकाने को...
अपने तले कुचल कर
आती सारी अड़चनों को...
नवीनता की ओर अग्रसर होने के लिए अवधारणा तो तोड़नी ही होंगी ॥सुंदर रचना ...
अमृताजी,आपकी यह रचना तो किसी के जीवन में नया उत्साह ही नहीं वरण ऐसे ओज का निर्माण कर देगी जो मन द्वारा कल्पित और सृजित अवरोधों को तोड़ सकने में सक्षम होगी.साथ ही ऐसी उत्क्रिस्ट रचना आगत कुसुम सा सौरब बिखेरता निर्झर की भांति मानव मन को उल्लास से भर देगा,आपको अत्यंत बधाई,मेरी उस परम चैतन्य से निवेदन है आपके अन्दर से ऐसी ही प्रेरणा निरंतर प्रवाहित होती रहे .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरणादायक अनुभूति!
ReplyDeleteअचानक इस पल में कहाँ से शक्ति आती है ....
ReplyDeleteसचमुच यह अजूबा ही है ....
अच्छी लगी कविता !
बहुत बढिया रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता बधाई |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमन में ही है ...सभी कुछ ...
ReplyDeleteसारगर्भित ...आज की रचना ...!!
आशाओं और संभावनाओं का कमल खिलने लगा है .....तन्मयता को भंग करने और अमृत का संचार करने .....
ReplyDeletebahut acchi rachana....
ReplyDeleteव्यर्थ की शंकाओ और मिथ्या कल्पना से बाहर आकर खुद को सिद्ध करने के लिए एक पल ही काफी है . आशा धर्मिता छलक पड़ी है .
ReplyDeleteविषम संघर्ष से अनुभावी सुख
ReplyDeleteशांत हो..कहता है मन
यही है जीवन
उम्मीदों से लबरेज जिन्दगी को नया ख्वाब दिखाती है आपकी शब्दों की दुनिया... काफी उम्मीदें है आपसे
बहुत सुन्दर सार्थक और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .
आत्म बल को झकझोरती यह हवा बहुत सुखद है
ReplyDeleteएक प्यारी सी कविता ,, जो जीवन में आशा का संचार करती है.. दिल से बधाई ...यूँ ही लिखो ...बस !
ReplyDeleteभला रुकी है हवा किसी क्षण , यही तो है जीवन । आँधियाँ और अड़चनें आत्मबल की परीक्षा होती हैं । सुंदर रचना !
ReplyDeleteस्वागत 'अनागत कुसुम' का
ReplyDeleteसुन्दर रचना
लकीर से हटकर चलने की सोच विशम्ताओंसे भरी है ....लेकिन संकल्पों की ताक़त .....पार लगा देती है ....बहत सुन्दर सकारात्मक सोच !
ReplyDeleteजीवन इसी को तो कहते हैं ... मन में हिम्मत होनी चाहिए ...
ReplyDeleteजीना इसी का नाम है......
ReplyDeleteपतझड़ के बाद आती नई कोंपलों-कुसुमों को समर्पित-सी यह कविता मन का मौसम भी बदल देती है.
ReplyDeleteवाह!!! Beautiful!! :)
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