मत पूछो कि
किस भाँति मैंने
निज को लुटाया है
अपने ही बंद झरोखे को
धीरे से खुलते पाया है
मैं न जानूं कौन है वो पर
चुपके से कोई तो आया है....
नींद बड़ी गहरी थी तो
झटके में उसने जगाया है
पसरे चिर सन्नाटे को
हौले-हौले थपकाया है.......
मत पूछो कि
किस भाँति मैंने
मन को लुटाया है
स्फुटित श्वास ,स्तब्ध नयन
हाय ! ये कैसा सौन्दर्याघात है
एक उत्तेजित,उल्लसित किन्तु
स्निग्ध उल्कापात है.....
ढुलमुलायी हवाओं में भी
कोई न कोई तो बात है
क्या ये अतर्कित प्रेम का
उदित,अनुदित उत्ताप है.....
मानो मुंदी-मुंदी रातों में
धूप सा वह उग आया है
मेरे पथरीले पंथों पर
दूब बन कर लहराया है.......
उहूँ ! मेरे विश्व में ये कैसा
संदीप्त सनसनाहट मचाया है
तैर रही हैं लहरें और
सागर को ही डूबाया है......
अब तो ये मत पूछो कि
किस भाँति मैंने
उसको पाया है .
बहुत बढ़िया |
ReplyDeleteसच्चे भाव ||
निज के मिटने पर ही स्वरूप का रसास्वादान होता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,..
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
वाह ...बहुत ही बढि़या शब्द संयोजन ।
ReplyDeleteमानो मुंदी मुंदी रातो में धूप सा लहराया है वाह अमृता जी बहुत मनमोहक प्रस्तुति है
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteउत्तम शब्द संयोजन.....
वज़नदार रचना.............
अनु
ठीक है अमृताजी, नहीं पूछूंगा
ReplyDelete.. पर आपने तो बहुत कुछ बता दिया है जी
बहुत ही सुन्दर पोस्ट....
मन को लुटाया तो उसको पाया !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत एहसास !
बहुत खूब ! रचना के भाव और प्रवाह अपने साथ बहा ले जाते हैं...सदैव की तरह एक सशक्त प्रस्तुति...शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों को आपने कविता में ढाला है!....आभार!
ReplyDeleteस्फुटित श्वास ,स्तब्ध नयन
ReplyDeleteहाय ! ये कैसा सौन्दर्याघात है
एक उत्तेजित,उल्लसित किन्तु
स्निग्ध उल्कापात है.....
यह प्रयोग बहुत ही अच्छा लगा।
सुभानाल्लाह.....बेहद ही खुबसूरत और शानदार मत पूछों कैसे मैंने उसको पाया है ....वाह......हैट्स ऑफ इसके लिए ।
ReplyDeleteअपने ही बंद झरोखे को धीरे से खुलते पाया है...
ReplyDeleteलाजवाब.. अद्भुत भाव ....
जब रातों में धूप खिले और पत्थर पर दूब दिखे तब समझना चाहिए कि कुछ अकल्पनीय घटा है...बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता। स्वागत है।
ReplyDeleteshabdon par aapki pakad, vaakayi, kaabil-e-taarif hai!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
त्रिप्ती का ...सम्पूर्णता का कोमल स्पर्श और ...सुंदर एहसास ...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....!!
तैर रही हैं लहरें और
ReplyDeleteसागर को ही डूबाया है.bahut khoob
शब्द शब्द में एक अलौकिक अनुभव है ...
ReplyDeleteओक्सिमोरोन(विरोधालंकार) का जादू है इस पोस्ट में-लहरे तैर रहीं सागर को डुबाया है .बहुत निजी प्रयोग .
ReplyDeleteअदभुत...
ReplyDeleteबहुत खूब.... सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeletePREMBANDHAN KAA VARNAN BAHUT MAN BHAVAN KIYAA HAI.
Take care
ये पूछने की नहीं, समझाने और महसूस करने की बात है.. निश्छल प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
बहुत सुंदर शब्दों का संयोजन बधाई
ReplyDeleteस्फुटित श्वास ,स्तब्ध नयन
ReplyDeleteहाय ! ये कैसा सौन्दर्याघात है
एक उत्तेजित,उल्लसित किन्तु
स्निग्ध उल्कापात है.....
ढुलमुलायी हवाओं में भी
कोई न कोई तो बात है
क्या ये अतर्कित प्रेम का
उदित,अनुदित उत्ताप है.....
अद्भुत शब्दों का संयोजन और गहन प्रेम की अभिव्यक्ति .... सुंदर रचना
your picturisation of feelings of eternity flowing through mandane to spirit and internal external expressions takes away to a very real world of super bliss endowed to human as love and compassion.unfortunately we have confined our feelings to matter, where as you have opned a window to peep into the bliss inside.congrutulation .
ReplyDeleteThe way you have expressed for a very abstract human feelings flowing eternally from the plane of matter to spirit in the form of love and compassion the goal and pursuit of all human beings in all his efforts for happiness.it needs no mentioning that this poetry is unique in this sense.wishing all good for you.
ReplyDeletebirendra.
बहुत सुन्दर भावों के अंतर्मन का व्यक्तिकरण .
ReplyDeleteहम जब डूबते है . तब शायद ऐसा ही महसूस होता है .
ईर्ष्या होती है मै कभी जीवन के इतने करीब क्यों
नहीं पहुँच पाया .प्रणाम स्वीकारें .
भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteउलझे हुए मनोभावों को मन की तलहटी से पन्ने पर उतारने वाली आपकी अद्भुत लेखनी को नमन
ReplyDeleteजब मैं था तब तू नहीं ,जब तू हैं मैं नाहिं ,
ReplyDeleteसब अँधियारा मिट गया ,जब दीपक देखा माहिं !- कबीर
अनुभूति के क्षणों में सब मन-भावन लगता है .
मन, मन है
ReplyDeleteBahut sundar .....khubasurat anubhuti....Amrita ji....
ReplyDeleteस्फुटित श्वास ,स्तब्ध नयन
ReplyDeleteहाय ! ये कैसा सौन्दर्याघात है
एक उत्तेजित,उल्लसित किन्तु
स्निग्ध उल्कापात है.....
ढुलमुलायी हवाओं में भी
कोई न कोई तो बात है................behtarin shabd sanyojan...sahityik bhasha...bahti hui shandaar bhabavyakti...aisa lagta hain jaise koi apne dekhe hue sapne ko shabdon kee chitrakaari se hoobahu shaklabanakar saamane khada kar de..sadar badhayee
सुन्दर सृजन , बधाई.
Deleteकृपया मेरी १५० वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें , अपनी राय दें , आभारी होऊंगा .
प्रेम सरोवर में डुबकी लगवाती पोस्ट .गहन अनुभूतियों का स्पर्श करवाती पोस्ट .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मनोभाव ..सुन्दर गेय रचना
ReplyDeleteस्फुटित श्वास ,स्तब्ध नयन
ReplyDeleteहाय ! ये कैसा सौन्दर्याघात है
एक उत्तेजित,उल्लसित किन्तु
स्निग्ध उल्कापात है.....
ढुलमुलायी हवाओं में भी
कोई न कोई तो बात है
क्या ये अतर्कित प्रेम का
उदित,अनुदित उत्ताप है.....
शब्द व भाव चयन रचना को गगन की ऊँचाइयों तक ले गया. लेखन शैली में शीर्षस्थ कवियों की स्मृति हो आई
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteपथरीले पंथों पर डूब सा लहराया है ...
ReplyDeleteवाकई आपने ईश्वर का आशीष पाया है ...
मैं फुर्सत के उन पलों को तलाश रहीं हूँ जब आपकी रचनाओं को डूबकर कई कई बार पढ़ पाउंगी इलेक्ट्रोनिक मीडिया शायद वो किताब जैसी तसल्ली नहीं दे पाता
श्रृंगार की अभिव्यक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगती है और आपकी यह कविता तो श्रृगार रस में ही सनी पगी है ...
ReplyDeleteयादगार रचना ....
इसमें मन का क्या कसूर...
ReplyDeleteसुंदर भावनात्मक प्रस्तुति.
Bahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.
ReplyDeleteawesome :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteउहूँ ! मेरे विश्व में ये कैसा ...
ReplyDeleteसंदीप्त सनसनाहट मचाया है ....
तैर रही हैं लहरें और ,
सागर को ही डूबोया है ......
अद्धभुत भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति .... !!
सुन्दर भावों को आपने शब्दों में ढाला है
ReplyDeleteप्रगाढ़ प्रेम से उद्भूत रचना ,स्थूल से सूक्ष्म की और प्रयाण ....
ReplyDeleteरविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा
वाह ! बहुत सुन्दर अमृताजी
ReplyDeleteगहन भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती हुई.
पूरी कविता में प्रकाश की ओर ले जाती यात्रा का छिपा भाव सन्निहित है. बहुत ही सुंदर कविता.
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