कहीं ऐसा न हो ....
अत्युक्ति में
सुन्दरतम सत्यों का
कुरूपतम उपयोग
अदम्य अभियान न हो जाए
अतुष्टि से
भाग्य के ढाँचे में
अकर्मण्यता ढलकर
सतत अनुष्ठान न हो जाए
अति स्वप्न में
बड़ी आशा से
छलक कर मनोबल
साश्चर्य ढलान न हो जाए
आत्म प्रवंचना में
सागर का दंभ भर
भ्रमित तालाब सा
ग्रंथित ज्ञान न हो जाए
अति विनम्रता भी
सम्मान पा कर
अहंकार का
सुसज्जित परिधान न हो जाए
किसी वसंत में
खिलेगा कोई फूल
सोच-सोच कर
भविष्य वर्तमान न हो जाए
और अंत में...
सतयुग के आने की
आहट पाकर
कहीं कलयुगी मानव
सयत्न सावधान न हो जाए .
वाह अमृता जी.................
ReplyDeleteनमन करती हूँ आपकी लेखनी को.....
बहुत सुंदर रचना.
सादर.
वाह !!!
ReplyDeletekalamdaan
आत्म प्रवंचना में सागर का दंभ भर
ReplyDeleteभ्रमित तालाब सा ग्रंथित ज्ञान न हो जाए ... जब भी बात खुद तक सिमट आती है , सबकुछ बेमानी शक्ल लिए होता है
कही कलयुगी मानव
ReplyDeleteसयत्न सावधान न हो जाय
वाह!!!सुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
सतयुग आने की खबर पाकर
ReplyDeleteमानव
सावधान न हो जाये--
जी
बदल ही लेगा पाला |
bahut sashakt rachna jitni bhi tareef ki jaye kam hai.badhaai aapko.
ReplyDeleteक्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बहुत बढिया
आत्म प्रवंचना में
ReplyDeleteसागर का दंभ भर
भ्रमित तालाब सा
ग्रंथित ज्ञान न हो जाए
वाह .... कितनी गहन बात सहजता से लिख दी ... और मानव का सयत्न सावधान होना ... गजब की प्रस्तुति
आत्म मंथन को प्रेरित करती खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteअमृता जी, सजगता का बोध कराती, वर्तमान में रहने का संदेश देती सुंदर कविता के लिये बधाई !
ReplyDeleteatm pravanchna me sagar ka dambh bharkar bhramit taalab sa granthit gyan na ho jaaye....ye panktiya to atm chintan ke liye hain...baki panktiyan sachet kartee hai...satyag ke aagaj ka andesha ho jaaye..aaur aadmi badal jaaye...ek rachnakar ke roop me dekha aapka ye swapn poora ho jaaye....aaj to aapki jitni taarif kee jaaye kam hai..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteसयत्न ही सही सावधान तो हो जाए - वरना न भविष्य क्या वर्तमान भी फूल रहित ही है।
ReplyDeleteऔर अंत में सबसे अच्छा लगा...कहीं कलयुगी मानव.....वाह....बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..इतनी गहन बातो को बहुत ही सरलता और सहजता से कह दी..लाजवाब प्रस्तुति..बधाई..अमृता जी..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह ........ खूबसूरत शब्द समायोजन के लिए बधाई कितना सुन्दर लिखा है
ReplyDeleteमानव बुद्धि ऐसी ही अटकलों में जीवन बिता देती है!
ReplyDeleteजबकि है तो सब वस्तुतः माया ही ....
ये संशय तो बने रहेंगे,
ReplyDeleteआस हमारी जीवित है
ati har cheez ki buri hoti hai. sunder gehen gyan deti bate.
ReplyDeleteA varn se kitne hi shabdo ka sunder prayog.
अमृताजी सचमुच बहुत गहराई है आपकी रचना में... बड़ी ही खूबसूरती से कह दी एक गहन बात... सुन्दर शब्द संकलन... आभार
ReplyDeleteअति सर्वत्र वर्जयेत .....जल्दी...जल्दी .... भागते भागते वर्तमान के सुंदर कोमल दृश्य नहीं देख पाते और भविष्य तो किसी ने जाना नहीं ...फलस्वरूप हाथ कुछ आता ही नहीं ......बहुत विचार पूर्ण रचना है ....!!प्रेरणा से लबालब भरी .......
ReplyDeleteशुभकामनायें अमृता जी ....!!
कलयुगी मानव सावधान ना हो जाये...क्या खूब कही...
ReplyDeleteनतमस्तक हूँ इस बार आपकी लेखनी और सृजनशीलता के आगे ! एक लाजवाब कविता दी है आपने !बार-बार पढते भी मन नहीं अघाता इस से !
ReplyDeleteनमन !
सही आशंकाएं ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सदियों से कवि और मनिसियों ने अपने प्रबुध ज्ञान से मानव समाज की भावधारा को एक नए दिशा देते आये है.संसयराहितऔर निर्भीक वाणी से सदा कर्तब्य और अकर्तब्या का बोध करते रहे हैं.ब्याक्तिमन और समस्तिमन उर्द्वा दिशा में बदती रहे तदनुरूप एक लक्ष्य भी सामने रख देते हैं.और अपनी ओजपूर्ण वाणी विचारों का ऐसा प्रवाह निर्माण करते हैं जो सरे जीवन फूलों की भाति सदिओं तक सुरभित किये रहती है.परमात्मा किसी किसी को ही यह काब्य बरदान देते हैं.आप धन्य है की परमात्मा ने आपको भरपूर ही यह आशिर्बाद दे रखे हैं.भरपूर उपयोग कीजिये .परमात्मा से मेरे यही प्रार्थना ही.
ReplyDeleteरचना बहुआयामी है .....निश्चित रूप से प्रसंशनीय भी .......!
ReplyDeleteवाह क्या बात है ... और अगर ऐसा हो गया तो काय कल्प हो जायगा ... सार्थक चिंतन है ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब रचना, बधाई
ReplyDeleteवाह अमृताजी ....कितना सुन्दर लिखा है ...शत शत नमन आपकी लेखनी को ....!
ReplyDeleteवाह क्या बात है ..लाजबाब !!!!
ReplyDeleteमनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति!....बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुत कुछ कहते हुए भी संभावनाओं के कपाट खोलकर खामोश हो जाती है कविता। शेष पाठक की सहज कल्पना पर छोड़ देती है। सुंदर प्रयोग। स्वागत है।
ReplyDeletewaah bahut badhiya ....................hardik badhai
ReplyDeletemeri post harsingar 1
harsingar -2
yah pal wah manjar par aapka intjar hai
htp://sapne-shashi.blogspot.com
lajbab abhivykti ...badhai
ReplyDeleteआशंकाओ के बदल घुमड़ रहे है , उम्मीद है जल्दी ही छटेंगे. . प्रभावपूर्ण
ReplyDeletechalak kar manobal, sacharya dhalan na ho jaaye. bahut hi sundar rachna.
ReplyDeleteUtkarsh
www.utkarsh-meyar.blogspot.com
अति सदैव दुखदायी होती है.. लाज़वाब सारगर्भित प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
jo bhi hoga accha hoga.....
ReplyDeletebahut sundar .badhai
ReplyDeleteLIKE THIS PAGE AND WISH INDIAN HOCKEY TEAM FOR LONDON OLYMPIC
Amrita,
ReplyDeleteMEIN " ATI VINAMRATA BHI....." AUR " SATYUG KE AANE...." KE SAATH POORI TARAH SAHMAT HOON.
Take care
किसी वसंत में
ReplyDeleteखिलेगा कोई फूल
सोच-सोच कर
भविष्य वर्तमान न हो जाए
और अंत में...
सतयुग के आने की
आहट पाकर
कहीं कलयुगी मानव
सयत्न सावधान न हो जाए .
BEAUTIFUL LINES WITH DEEP THOUGHT AND EMOTIONS.
WHY AND TO WHO THANKS JUST PRANAM TO YOU.
BEAUTIFUL LINES WITH EMOTION AND FEELINGS.
ReplyDeleteSUPERB LINES.
:) :)
ReplyDeletesatya vachan Amrita...aksar aise hi hota hai...satyug ka intezar to ham kab se kar rahe aur dhara kaliyug ke taap se jal rahi....pata nahi is yug ki saandhy bela kab aayegi...
ReplyDeleteaapki kavita man ki batein bakhoobi bayan karti aur ascharyajanka roop se unme jo prawah hai wah kabhi badhit nahi hota...bahut khoob.
अति विनम्रता भी .....
ReplyDeleteसभी बंध सोचने पर मजबूर करते हैं
क्या हो क्या न हो
ReplyDeleteप्रश्न भी और संशय भी..
शीघ्र अपने देश लौटने वाला हूँ....
व्यस्तता के कारण इतने दिनों ब्लॉग से दूर रहा.
नयी रचना समर्पित करता हूँ. उम्मीद है पुनः स्नेह से पूरित करेंगे.
राजेश नचिकेता.
http://swarnakshar.blogspot.ca/
जिसकी आशंका होती है, वह संभव होता है. सावधानी निराकरण कर सकती है. रचना कई बिंदुओं को छूती है.
ReplyDeleteवाह अति सुंदर रचनाएँ ....बधाई |
ReplyDeleteपिछली टिप्पणी मे दिनांक की की गलत सूचना के लिए क्षमा करें---
ReplyDeleteकल 24/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!