गर्मी का उत्ताप
धरा करे विलाप
पड़ गयीं दरारें
सूखे ओंठ सारे
उड़ रहीं धूल
मूर्झा गये फूल
पीड़ा सी हूकी
कोयल जब कूकी
अमिया है उदास
बुझ रही आस
मन विकल खग
बाट जोहे जग
घिर बदरा कारे
आ रे आ रे आ रे !
अँखियाँ न मींचो
प्राणों को सींचो
कर बूँदा - बाँदी
तृप्ति की आँधी
शीतल हो अगन
भींगे तन - मन
बगिया में बहार
यौवन का खुमार
मंगल बेला आये
घट - घट गाये
तेरे संग झूले
सब दुःख भूले
घिर बदरा कारे
आ रे आ रे आ रे !
बहुत बढ़िया गीत रचा है आपने!
ReplyDeleteगुरुवर के आदेश से , मंच रहा मैं साज ।
ReplyDeleteनिपटाने दिल्ली गये, एक जरुरी काज ।
एक जरुरी काज, बधाई अग्रिम सादर ।
मिले सफलता आज, सुनाएँ जल्दी आकर ।
रविकर रहा पुकार, कृपा कर बंदापरवर ।
अर्जी तेरे द्वार, सफल हों मेरे गुरुवर ।।
शनिवार चर्चा मंच 842
आपकी उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत की गई है |
charcamanch.blogspot.com
कर बूंदा बांदी
ReplyDeleteतृप्ति की आंधी ...
शुभ हो.....
बरखा की बाट जोहती गीत मई सुंदर प्रस्तुती ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबिना संयोग के राग मल्हार ?
ReplyDeletesunder shabdo ki sunder tukbandi........
ReplyDeleteबहुत उम्दा गीत है बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteवाह,
ReplyDeleteक्या कहने
छोटे छोटे
शब्दों की
अद्भुत माला
है।
Amrita,
ReplyDeleteVARSHAA KO PUKAAR ITNI SUNDAR DHANG SE KI HAI YEH BATATE HUE KI AB AUR PRATIKSHA NAHIN HO SAKTI.
Take care
बहुत सुन्दर रचना................
ReplyDeleteमगर मनुहार करने में बड़ी जल्दी की....
चलिए अर्जी तो लगा दी...... सुनवाई हो ही जाये .
सस्नेह
अनु
कविता पढ़ने के बाद गर्मी फूल फैलेज आ गई है...बस थोड़ी बहुत कसर रह गई है....सावधान औऱ याद दिलाने के लिए शुक्रिया कि बादलों को भी बुलाना है..वरना न्यौता नहीं मिलने पर बादल नाराज हो जाते और आते नहीं..अगर आते भी तो बिना नीचे आए मिले ऊपर-ऊपर ही चले जाते।
ReplyDeleteअभी तो गर्मी का ताप इतना नहीं चढ़ा है फिर भी उस स्थिति को सोचते हुये बहुत सुंदर गीत रचा है ...
ReplyDeleteनन्ही-नन्ही बूंदों जैसे सुन्दर शीतल शब्द... सुन्दर रचना...
ReplyDeleteचिर बदरा कारे कारे ,
ReplyDeleteआ रे आरे ,आरे ,
तपती धरती आग बुझा रे ....
बिछड़ों को एक बार मिला रे ....
गा रे गा रे ,उड़ जा रे ...
बहुत सुन्दर बंदिश बयार सी ,बहे प्यार सी .
मन को तृप्त करती रचना... अति सुन्दर!
ReplyDeleteइच्छा हुई कि ये दो शब्द रखूँ...
विकल ये मन
चाहे नव सृजन
अमृत बरसा रे
आ रे आ रे आ रे!
सादर
सुखद .. शीतल एहसास की रचना
ReplyDeleteफुहार महसूस होने लगी
ReplyDeleteयह धरती और तप्त चिदाकाश की प्रार्थनाएँ हैं. सुंदर काव्य.
ReplyDeletebeautiful and ful of emotions .
ReplyDeletenice lines based on nature.
uttam
ReplyDeleteवाह! वास्तविक चित्र, मधुर अनुरोध! बहुत बढिया!
ReplyDeleteकुछ देर बरस जा
ReplyDeleteचिलचिलाती धूप में कारे-बदरवा की शीतलता , मन की अगन तो बुझा ही देगी . इंतजार रहेगा मेघ महाराज का .
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteवाह!!!!!!बहुत सुंदर गीत,अच्छी प्रस्तुति........
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
bahut sundar likhti hain aap, aapki pichhli rachnayen bhi padhi.....behtareen abhivyaktie!
ReplyDeleteतपती धूप, छाँह मागें सब..
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति|
ReplyDeleteठंडी फुहारसी ...भिगोती रचना...बहुत सुन्दर अमृताजी
ReplyDeleteशब्द और भाव का अनूठा संगम है इस रचना में...वाह...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar. mere blog par aapka swagat hai
ReplyDeletewww.utkarsh-meyar.blogspot.com
सुन्दर भाव!!
ReplyDeleteप्रकृति का सुंदर चित्र खींचा है आपने।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ये कविता।
मनमोहक कविता।
ReplyDeleteकविता का शिल्प इतना बढिया है कि पढते वक़्त लगता है टप-टप बूंदें पड़ रही हों।
ReplyDeleteगर्मी का उत्ताप
ReplyDeleteधरा करे विलाप
पड़ गयीं दरारें
सूखे ओंठ सारे
उड़ रहीं धूल
मूर्झा गये फूल
पीड़ा सी हूकी
कोयल जब कूकी
अमिया है उदास
बुझ रही आस
मन विकल खग
बाट जोहे जग
घिर बदरा कारे
आ रे आ रे आ रे !
बेहद सुंदर आह्वान है बादल से ....!
वहाँ तो बारिश टाईप का मौसम किया हुआ है न, और दिल्ली में गर्मी बढती जा रही है!! :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteLearnings: पथ मेरा आलोकित कर दो !
अति सुंदर...आगमन जब पावस का मन पलाश हो जाये....अग्निशिखा सा मन मेरा उन्मत्त हुआ जाये...बहुत अच्छा भावों का सम्प्रेषण अमृता...अति सुंदर...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
ReplyDeleteशीतल हो अगन
ReplyDeleteभींगे तन-मन...
आपकी रचनाओं पर कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं बचते.
बहुत ही बेहतरीन...
jab itne pyar se bulaya hai to badra jarur aayega...
ReplyDeleteगर्मी से बचने का बेहतरीन उपाय खोजा है आपने। मन को बारिश का दिलाशा देना। एक दिन मेघ भी घिरेंगे, बारिश भी होगी। इसलिए गर्मी से इतना घबराने की जरुरत नहीं है।
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