स्वप्नों ने
क्या खोया ,क्या पाया
अपने रंग-बिरंगापन पर
क्या खूब इतराया..
खुद को खींच-खींच कर
न जाने कितना
अजूबा क्षितिज बनाया..
वही भाग-भाग कर
हैरत भरी नजरों से
उसे देख भी आया..
जब पकड़ना चाहा तो
कभी पास तो कभी
बहुत दूर पाया....
तब शायद
खुद पर खूब पछताया
सर पर हाथ रख
घुटनों में मुँह छिपाकर
दो-चार आँसू भी बहाया
तो कभी उस क्षितिज को
धक्का दे-देकर
दूर कहीं अपने ही किसी
अन्तरिक्ष में फेंक आया...
जिसे फिर वह
स्व्प्नगत ही पाया....
स्वप्नों ने
खुद को जिलाया तो
कितना कुछ गंवाया
और वो जो
कितना कुछ बचाया तो
अंतत: स्वप्नांत ही पाया .
स्वप्न बस स्वप्न ही रह जाते हैं ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteसपनों में यूँ ही आरम्भ और अंत होता जाता है ...
ReplyDeleteसपने कब पास आते हैं ... कब हाथ आते हैं ... नींद खुलते ही भाग जाते हैं ...
ReplyDeleteसच है (या सपना है?)!
ReplyDeleteखुद को खींच-खींच कर
ReplyDeleteन जाने कितना
अजूबा क्षितिज बनाया..ye panktiya sb kuch vyakhya kr deti hain..
स्वप्नों ने
ReplyDeleteखुद को जिलाया तो
कितना कुछ गंवाया
और वो जो
कितना कुछ बचाया तो
अंतत: स्वप्नांत ही पाया .
वाह ! स्वप्न आखिर स्वप्न मात्र ही तो हैं...
खुद को जिलाया तो
ReplyDeleteकितना कुछ गंवाया
और वो जो
कितना कुछ बचाया तो
अंतत: स्वप्नांत ही पाया .
भरम टूट गया ...यथार्थ जीत गया ...!!जब जड़ें गहरी हों .....सपना टूटने के बाद भी बहुत कुछ बच जाता है ...सुंदर अभिव्यक्ति अमृता जी .....
अंततः स्वप्न ही पाया.....बहुत सुन्दर....अंत तो यही सत्य है |
ReplyDeleteसपनों को सच होने की जद्दोजहद में जीने की जरूरत नहीं
ReplyDeleteजरूरी ये है कि सपने सिर्फ सपने ही रहे...
सपनों की मर्यादा बस इतनी ही तो है...
बहुत अच्छा लिखा है आपने अमृताजी....
swapn ,swapn hee uskaa koi praarambh yaa ant nahee hotaa
ReplyDeletesundar rachnaa
अजूबा क्षितिज बनाया..
ReplyDeleteवही भाग-भाग कर
हैरत भरी नजरों से
उसे देख भी आया..
सपने देख कर अनेकों ने अपने जिन्दगी में कामयाबी भी हांसिल कर लिए ,
इसलिए सपनों का अंत नहीं होना चाहिए.... !!
सपने ही तो अपने...........
खुद को जिलाया तो
ReplyDeleteकितना कुछ गंवाया
और वो जो
कितना कुछ बचाया तो
अंतत: स्वप्नांत ही पाया .
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...स्वप्नों का अंत तो होना ही है...बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteस्वप्न होते ही टूटने के लिए हैं...
अनूठी रचना...
शास्वत की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteस्वप्न आखिर स्वप्न हैं
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .
सपने तो सपने होते है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesadows of dreams are nicely potrated.
ReplyDeleteexcellent end of DREAM.
स्वप्न में गंवाया जो स्वप्न में ही पाया !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteसपने सपने होते हैं, कब अपने हुए हैं...
ReplyDeletesapne.....sapne .....aur sirf sapne....
ReplyDeleten koi astitv....fir bhi apne...
सच ...सपने तो सपने हैं ...उनका क्या ...?
ReplyDeleteसपने तो सपने होते हैं......
ReplyDeleteसपनों के अंत का हासिल स्वपनांत है
ReplyDeleteइस बात से मुझे इनकार नहीं है
लेकिन हकीकत से टकराकर
अगर हमारे ख़्वाब चकनाचूर हो जाएँ
तो ये इंसानी कमजोरी है.
दुनिया और समाज की बेहतरी का ख़्वाब देखने वालों की बदौलत ही बहुत सी सुन्दरता हमारे दौर में भी जिन्दा है.
बहुत कुछ कह जाती है आपकी यह कविता।
ReplyDeleteसादर
sach aisa hi hota aya hai jitna hi hum unke pass we utna hi humse dur hote jaynege
ReplyDelete.umda prastuti
bahut sunder swapn ......kabhi pure bhi hote hai ....kabhi baas yado me hi aate rahate hai . nice poem
ReplyDeleteउत्कृष्ठ लेखन |
ReplyDeleteबढ़िया लेख इसे भी देखे :- http://hindi4tech.blogspot.com
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपकी कविता में सचमुच में बहुत कुछ कह जाती है धन्यवाद |
ReplyDeleteआपकी कविता सचमुच में बहुत कुछ कह जाती है धन्यवाद |
ReplyDeleteसुकून के सपने, भागदौड़ की जिन्दगी..
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteसपने कब अपने होते है,लाजबाब प्रस्तुती,...
ReplyDeletemy new post...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
स्वप्नों की सुन्दर विवेचना.
ReplyDeleteसपने तो सपने होते हैं
ReplyDeleteसपने कब अपने होते हैं
दूर हकीकत से होते हैं
पर सुन्दर सपने होते हैं।
नेता,कुत्ता और वेश्या
ये सपने ही तो अपने नहीं होते ...बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
कृपया पधारें ...आभार .
अमृता जी सपनों का स्वरूप व हश्र अच्छे तरीके से बताया है ।
ReplyDeleteपर सुन्दर सपने देख कर मन कितना आह्लादित होता है और कभी-कभी तो उनकी हल्की सी याद भी बहुत दिनों साथ रह जाती है .
ReplyDeleteस्वप्नांत की कहानी अच्छी है.
ReplyDeleteआपकी सुन्दर शैली को नमन.
स्वप्नांत ही सच है. स्वप्न देखने वाला स्वप्नों से ऊब जाता है और अपने बनाए क्षितिजों को अंतरिक्ष में फेंक आता है. वाह!! बहुत गहन दर्शन का रेखांकन करती कविता.
ReplyDeleteपहली बार आना हुआ, अच्छी रचनाएँ , ढेरों सराहना!
ReplyDeleteस्वप्न जगत भी मरीचिका जैसा ही होता है हाँ आशा जरूर बंधाए रखता है
ReplyDeleteशानदार रचना
स्वप्नांत के बाद की भी एक सुनहले वजूद की दुनिया है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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