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Wednesday, February 1, 2012

स्वप्नांत


स्वप्नों ने
क्या खोया ,क्या पाया
अपने रंग-बिरंगापन पर
क्या खूब इतराया..
खुद को खींच-खींच कर
न जाने कितना
अजूबा क्षितिज बनाया..
वही भाग-भाग कर
हैरत भरी नजरों से
उसे देख भी आया..
जब पकड़ना चाहा तो
कभी पास तो कभी
बहुत दूर पाया....
तब शायद
खुद पर खूब पछताया
सर पर हाथ रख
घुटनों में मुँह छिपाकर
दो-चार आँसू भी बहाया
तो कभी उस क्षितिज को
धक्का दे-देकर
दूर कहीं अपने ही किसी
अन्तरिक्ष में फेंक आया...
जिसे फिर वह
स्व्प्नगत ही पाया....
स्वप्नों ने
खुद को जिलाया तो
कितना कुछ गंवाया
और वो जो
कितना कुछ बचाया तो
अंतत: स्वप्नांत ही पाया .

49 comments:

  1. स्वप्न बस स्वप्न ही रह जाते हैं ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. सपनों में यूँ ही आरम्भ और अंत होता जाता है ...

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  3. सपने कब पास आते हैं ... कब हाथ आते हैं ... नींद खुलते ही भाग जाते हैं ...

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  4. सच है (या सपना है?)!

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  5. खुद को खींच-खींच कर
    न जाने कितना
    अजूबा क्षितिज बनाया..ye panktiya sb kuch vyakhya kr deti hain..

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  6. स्वप्नों ने
    खुद को जिलाया तो
    कितना कुछ गंवाया
    और वो जो
    कितना कुछ बचाया तो
    अंतत: स्वप्नांत ही पाया .

    वाह ! स्वप्न आखिर स्वप्न मात्र ही तो हैं...

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  7. खुद को जिलाया तो
    कितना कुछ गंवाया
    और वो जो
    कितना कुछ बचाया तो
    अंतत: स्वप्नांत ही पाया .

    भरम टूट गया ...यथार्थ जीत गया ...!!जब जड़ें गहरी हों .....सपना टूटने के बाद भी बहुत कुछ बच जाता है ...सुंदर अभिव्यक्ति अमृता जी .....

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  8. अंततः स्वप्न ही पाया.....बहुत सुन्दर....अंत तो यही सत्य है |

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  9. सपनों को सच होने की जद्दोजहद में जीने की जरूरत नहीं

    जरूरी ये है कि सपने सिर्फ सपने ही रहे...

    सपनों की मर्यादा बस इतनी ही तो है...

    बहुत अच्छा लिखा है आपने अमृताजी....

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  10. swapn ,swapn hee uskaa koi praarambh yaa ant nahee hotaa

    sundar rachnaa

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  11. अजूबा क्षितिज बनाया..
    वही भाग-भाग कर
    हैरत भरी नजरों से
    उसे देख भी आया..
    सपने देख कर अनेकों ने अपने जिन्दगी में कामयाबी भी हांसिल कर लिए ,
    इसलिए सपनों का अंत नहीं होना चाहिए.... !!
    सपने ही तो अपने...........

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  12. खुद को जिलाया तो
    कितना कुछ गंवाया
    और वो जो
    कितना कुछ बचाया तो
    अंतत: स्वप्नांत ही पाया .


    बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...स्वप्नों का अंत तो होना ही है...बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति..

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  13. बहुत सुन्दर...
    स्वप्न होते ही टूटने के लिए हैं...

    अनूठी रचना...

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  14. शास्वत की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  15. स्वप्न आखिर स्वप्न हैं
    बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

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  16. सपने तो सपने होते है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  17. sadows of dreams are nicely potrated.
    excellent end of DREAM.

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  18. स्वप्न में गंवाया जो स्वप्न में ही पाया !

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  19. सपने सपने होते हैं, कब अपने हुए हैं...

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  20. sapne.....sapne .....aur sirf sapne....
    n koi astitv....fir bhi apne...

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  21. सच ...सपने तो सपने हैं ...उनका क्या ...?

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  22. सपने तो सपने होते हैं......

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  23. सपनों के अंत का हासिल स्वपनांत है
    इस बात से मुझे इनकार नहीं है
    लेकिन हकीकत से टकराकर
    अगर हमारे ख़्वाब चकनाचूर हो जाएँ
    तो ये इंसानी कमजोरी है.
    दुनिया और समाज की बेहतरी का ख़्वाब देखने वालों की बदौलत ही बहुत सी सुन्दरता हमारे दौर में भी जिन्दा है.

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  24. बहुत कुछ कह जाती है आपकी यह कविता।

    सादर

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  25. sach aisa hi hota aya hai jitna hi hum unke pass we utna hi humse dur hote jaynege
    .umda prastuti

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  26. bahut sunder swapn ......kabhi pure bhi hote hai ....kabhi baas yado me hi aate rahate hai . nice poem

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  27. उत्‍कृष्‍ठ लेखन |

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  28. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  29. आपकी कविता में सचमुच में बहुत कुछ कह जाती है धन्यवाद |

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  30. आपकी कविता सचमुच में बहुत कुछ कह जाती है धन्यवाद |

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  31. सुकून के सपने, भागदौड़ की जिन्दगी..

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  32. स्वप्नों की सुन्दर विवेचना.

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  33. सपने तो सपने होते हैं
    सपने कब अपने होते हैं
    दूर हकीकत से होते हैं
    पर सुन्दर सपने होते हैं।
    नेता,कुत्ता और वेश्या

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  34. ये सपने ही तो अपने नहीं होते ...बहुत खूब

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  35. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
    कृपया पधारें ...आभार .

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  36. अमृता जी सपनों का स्वरूप व हश्र अच्छे तरीके से बताया है ।

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  37. पर सुन्दर सपने देख कर मन कितना आह्लादित होता है और कभी-कभी तो उनकी हल्की सी याद भी बहुत दिनों साथ रह जाती है .

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  38. स्वप्नांत की कहानी अच्छी है.
    आपकी सुन्दर शैली को नमन.

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  39. स्वप्नांत ही सच है. स्वप्न देखने वाला स्वप्नों से ऊब जाता है और अपने बनाए क्षितिजों को अंतरिक्ष में फेंक आता है. वाह!! बहुत गहन दर्शन का रेखांकन करती कविता.

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  40. पहली बार आना हुआ, अच्छी रचनाएँ , ढेरों सराहना!

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  41. स्वप्न जगत भी मरीचिका जैसा ही होता है हाँ आशा जरूर बंधाए रखता है
    शानदार रचना

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  42. स्वप्नांत के बाद की भी एक सुनहले वजूद की दुनिया है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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