फिसलन भरी
हर ढलान पर
बस मुस्कुराते हुए तुम
मेरे अनाड़ी किन्तु
अटल अभिमान पर...
हर रुत में मुझसे
करके बाँहाँ-जोड़ी
हलके से उठाकर
मेरी लटकी ठोड़ी
और माथे को चूमकर
तुम कहते हो - यही प्यार है..
संदेह के परे
बड़ी-बड़ी फैलती
भौचक्क मेरी आँखे
देखती है तुम्हें अपलक
और बिजली की गिरती
हर कौंध में
छिटकती है तुमसे
बस मेरी ही झलक...
तुम्हारी मनमोहक निश्छलता
अचंभित करती दृढ़ता
थामे है मुझे
उस ढलान पर भी
जिसपर फिसल रहा है
समय पर सवार जीवन
व सुख-दुःख का हरक्षण.....
अनायास कई बार
उन्हें लपकने को
बढती है मेरी चपलता
पर हर बार
रोक लेती है मुझे
तुम्हारी तीक्ष्ण सतर्कता...
फिर माथे को चूमकर
कहते हो मुझे - यही प्यार है
उसी ढलान पर .
अद्भुत रचना...
ReplyDeleteसादर.
उन्हें लपकने को
ReplyDeleteबढती है मेरी चपलता
पर हर बार
रोक लेती है मुझे
तुम्हारी तीक्ष्ण सतर्कता...
हाँ वाकई यही प्यार है जो थम लेता है हर ढलान पर
haan....
ReplyDeleteyahi pyaar hai.....!
khoobsoorat aur romantic...
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट भीष्म साहनी पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
ReplyDeleteआभार
पर हर बार
ReplyDeleteरोक लेती है मुझे
तुम्हारी तीक्ष्ण सतर्कता...
फिर माथे को चूमकर
कहते हो मुझे - यही प्यार है
उसी ढलान पर .
MAY BE THIS IS REAL
DEVOTION AND DEDICATION OF LOVE.
NICE TOUCHING FEELINGS.
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteजी हाँ यही तो है प्यार!
ReplyDeleteढलानों पर व्यक्त सम्हालने की बातें..
ReplyDeleteकई बार उसी ढलान पर...
ReplyDeleteहाथ छूट जाते हैं..
ये कहने से पहले...
क्या यही------- है....
कई बार उसी ढलान पर...
तारें बिखर जाते हैं
रात के आने से पहले
...बेहतरीन ... काफी दिलकश....
प्यार !.................क्या है ? तुम भी कहो
ReplyDeleteसकारात्मकता से लबरेज़ ....अद्भुत समर्पण भाव ...अमृता जी ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ....!!
chaahe chadhaayeee par
ReplyDeletechaahe dhalaan par
jab bhee wo thodee ko upar uthaaye
nazron se nazrein milaaye
aur lalat ko choom le
wo hee pyaar hotaa hai
kshamaa karnaa kuchh zazbaat jodne ke liye
यही प्यार है...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ...
ReplyDeleteसंभालना ...साथ देना , प्रेम के सही अर्थ ...सुंदर रचना
ReplyDeleteयकीनन यही प्यार है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ये उम्दा पोस्ट पढ़कर बहुत सुखद लगा!
ReplyDeleteप्रेम दिवस की बधाई हो!
हम तो बस भावो के ज्वार में उतरा रहे है . चाहे ढलान हो या चोटी. बस मिल जाए किनारा . अद्भुत भाव प्रवाह .
ReplyDeleteअनायास कई बार
ReplyDeleteउन्हें लपकने को
बढती है मेरी चपलता
पर हर बार
रोक लेती है मुझे
तुम्हारी तीक्ष्ण सतर्कता..aise hee raaston ke dhalaano par prem parwan chadhta hai..hamesh kee tarah shandar..aapki garibi rekha aaaur mrig marichika par likhi rachna bhee behad shandaar haai..hardik badhayee aaur amantran ke sath
वाह|||
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ,सुन्दर रचना है....
सुभानाल्लाह....हाँ हाँ बस यही प्यार है.......बहुत ही सुन्दर ....हैट्स ऑफ इसके लिए |
ReplyDeleteकिसी ने कभी भी लिखा था किसी कवि की कविता आज आपकी कविता पड कर बरबस यद् aa गयी .
ReplyDeleteतुम्हारा नाम मैंने हमेशा ,
लिखा ध्यान के कमलपर्णों पर ,
चिर सिंचित स्नेह की तुलिका से
लगाया सर आँखों पर ,
और विभोर हो गया.
सदा ऐसे ही भाव बिभोर करते चलिए .आज तो खाश ही दिन है.
happy valentine day
ReplyDeleteऔर क्या????यही तो है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बहुत ही सुन्दर भाव हैं ...बेहतरीन रचना
ReplyDeleteवाह...अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
WAH AMRITA JI .....JI HAN YAHI HAI...PREM DIWAS PR MUBARAKBAD.
ReplyDeleteसुन्दर रचना, सरल एवं भावपूर्ण
ReplyDeleteअभिव्य़क्ति। आपकी तन्मयता
का अभिनन्दन।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास
बहुत सच...यही प्यार है..बहुत सुंदर प्रेममयी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteहाँ यही प्यार है,..
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति
MY NEW POST ...कामयाबी...
फिसलन भरी ढलान पर कोई साथ हो...तो...क्या बात हो...
ReplyDelete▬● आपकी रचनाओं को मैंने हमेशा ही आकर्षक पाया है... शुभकामनायें...
ReplyDeleteदोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइये...
● Meri Lekhani, Mere Vichar..
● http://jogendrasingh.blogspot.in/2012/02/blog-post_3902.html
.
अल्हड़पन और सतर्क भावों के बीच ढलान पर खड़ी एक अद्भुत अंदाज़ की कविता. बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteek naya andaaz ... khoobsurat ahsaaso ke saath ..
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteचपलता और तीक्ष्ण सतर्कता मिलकर ही दोनों का प्रेम पूर्ण होता है ...
ReplyDeleteसुन्दर !
अद्भुत..सुन्दर रचना..
ReplyDeleteyahi pyaar hai,, very nice..
ReplyDeleteअति सुन्दर...भावपूर्ण...अद्भुत...
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति का अपना ही अंदाज है.
और टिपण्णी करने का भी.
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं,और आपने अपनी
टिपण्णी से भी मन्त्र मुग्ध कर दिया.
बहुत बहुत हार्दिक आभार,अमृता जी.
प्यार की मधुर प्रस्तुति पर बहुत हृदयस्पर्शी कविता !
ReplyDeleteरामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
बहुत ही सुन्दर एवम भाव पूर्ण रचना लिखी है अपने ....अमृता जी सादर बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन एवं भावपूर्ण प्रस्तुति......सराहनीय.....
ReplyDeleteप्यार की पावनता से भरी सरस अभिव्यक्ति के लिए अमृता जी आपको बधाई !
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना है. आपकी इस कविता में उपजी प्रेम की अभिव्यक्ति से बहुत सारे लोगों की सहमति है "हाँ यही प्यार है".यह बात इसकी विविधता को एक सीमा में बांधती है. लेकिन प्रेम तो कई सारी सीमाओं के दायरे को तोड़कर बाहर निकलता है.जो समाज से इसकी टकराहटों में अभिव्यक्ति पाता है.
ReplyDeletekavitaa ka abadhit prawaah yah dikhataa hai kee saadhanaa behatar hai . badhaaiyaan!
ReplyDeleteप्रेम की ढलान पे उतारते जाना उतारते जाना उतारते जाना .... बस यही तो जीवन है ...
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