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Tuesday, February 21, 2012

साबूत


सूक्ष्म  उलझाव  की  गलियों  में
तन-मन   भटक-भटक जाता है
देख उद्विग्न  जगत का उपद्रव
अपने  को  असहाय  ही  पाता है

असंग भाव  में  बह-बह कर भी
संगी-साथी  हिल-मिल जाते  हैं
प्रेम-विरह  के  शाश्वत क्रीड़ा में
ठिठक-ठिठक , रुक  से  जाते हैं

प्राणों  को  कौंधाने  वाली  पीड़ा
क्यूँ   तड़क -तड़क  तड़पाती  है
सह-सह  के मर्माघात अनवरत
किंतु अभ्यस्त कहाँ  हो पाती है

बस  एक बवंडर बन के  धूल का
आँखों  में  यूँ  घिर-घिर आता है
शांत - शिथिल  हो  जाने पर भी
गहरे चिह्न  कोई  छोड़ जाता है

लहक-लहक   कर  आग  उसे तो
पूरी तरह  राख नहीं  कर पाती है
वह  आकाश तो  उड़  ही जाता है
बस एक  बंद मुट्ठी  रह जाती है

छोर  नाप-नाप  थके  पल -छिन
कभी भी, चैन  तनिक  न पाते हैं
बढ़ ग्लानि से  गलबहियाँ कर के
सिसक-सिसक  के  सिसकाते हैं

कई-कई  पर्तों में  वही  एक घाव
उभर -उभर कर  चला  आता  है
कई पाटों  में  पिस-पिस कर भी
साबूत  का  साबूत  बच जाता है  .



50 comments:

  1. सच कहा है अमृता जी .....
    कुछ तो है ...शाश्वत सत्य सा ...जो इस सब के बाद भी ...बच ही जाता है ...
    तभी तो जीवन लहराता है ....

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  2. मन के कुछ कोने ऐसे होते हैं जिनके हिस्से में हमेशा साबूत बने और बचे रहने वाले घाव ही आते है. इंसान इन अस्तित्वगत तकलीफों से जूझते हुए ही प्रकृति,सृजन और लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने का रास्ता अपनाता है.
    लेकिन इसके साथ ही उम्मीद-ए-चिराग की रौशनी भी कायम है जीवन में. यही विरोधभाष तो हमें चकित और हैरान करता है. साथ ही हौसला भी देता है जिंदगी की कठिन-सरल डगर पर चलने के लिए. बेहद सुन्दर रचना.

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  3. कुछ जख्म निशान बनकर सबूत ही रह जाते हैं !

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  4. zakhm hrady par lagte hein jab
    dard karte rahte jeevan bhar

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  5. एक गंभीर...सार्थक रचना..

    बधाई.

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  6. कई-कई पर्तों में वही एक घाव
    उभर -उभर कर चला आता है
    कई पाटों में पिस-पिस कर भी
    साबूत का साबूत बच जाता है .

    उम्दा लेखन का जादू..

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  7. ना जाने कितने घाव , फिर भी चलते जा रहे है . सुँदर .

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  8. शायद अभी मेरी मनःस्थिति कुछ ऐसी ही है ... कई कई परतें कराह रही हैं

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  9. इस कशमकश में भी साबित बच पाना भी बड़ी बात है ना॥

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  10. कई-कई पर्तों में वही एक घाव
    उभर -उभर कर चला आता है
    कई पाटों में पिस-पिस कर भी
    साबूत का साबूत बच जाता है .

    सती को कहती अच्छी रचना .... कितना ही नज़र अंदाज़ करने की कोशिश करो पर घाव हैं कि तीस दे ही देता है ॥

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    1. सती की जगह सत्य पढ़ा जाए .... टाइपिंग की गलती हुई

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  11. lahak lahak kar aag.............bas band mutthi rah jaati hai...jeewan darshan behtarin shabdon me...sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  12. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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  13. कई-कई पर्तों में वही एक घाव
    उभर -उभर कर चला आता है
    कई पाटों में पिस-पिस कर भी
    साबूत का साबूत बच जाता है .

    सही है घाव अपना निशान छोड़ ही जाता है....

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  14. जीवन दुःख की एक लंबी गाथा है...और इसे ऐसा बनाने के पीछे गहरा राज है, दुःख न हो तो इंसान कभी उच्चतम की ओर न जाये, उथले से ही काम चलता रहे, किसी किसी को ही यह दुःख दिखता है...

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  15. बहुत सुन्दर और शानदार भाव......मुझे लगता है शायद 'साबुत' होता है ।

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  16. अनुपम भाव संयोजन लिए
    कल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है !
    '' तेरी गाथा तेरा नाम ''

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  17. घाव कब भरते हैं पीडा कब मिटती है बस मन बहलाने को भरम कायम करना जरूरी होताहै।

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  18. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।

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  19. कई पाटों में पिस-पिस कर भी
    साबूत का साबूत बच जाता है .

    सच कहा आपने... सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर बधाई..

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  20. बहुत सी बातें गहरे में उतर जाती हैं और वाही अपना निशाँ छोड़ जाती हैं ...

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई आपको ||

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  22. मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....

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  23. गहन सोच,सार्थक रचना...

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  24. क्या बात है...बंद मुट्ठी में राख़ का होना...पतों के बीच रह कर भी सबूत बच जाना...भाव असंग और प्रेम विरह ...सब कष्ट कारी...दुखदायी...और घाव रिस्ते हैं परतों में और उन परतों के बीच से नए कोंपल जीवन के एक नयी परत ले कर निकलती है...बहुत अच्छा लिखा है आपने....बिल्कुल दार्शनिक ....प्रयोगवदी कविताएँ इतनी गूढ़ को कर निकलती है आपकी कलाम से की मैं हतप्रभ रह जाता हूँ...समय निकाल कर पढ़ रहा आपको और आपके आदेश की अवहेलना भी नहीं कर रहा....प्रयास कर रहा हूँ लिखने का...
    धन्यवाद अमृता...मेरी लेखनी और खास कर नवीनतम कविता को ड्सरहने के लिए...ये भाव सिर्फ एक बैठक और धाराप्रवाह विचारों के सूक्ष्म उद्गम के माध्यम से प्रवाहित हुये...पसंद आया उसके लिए प्रसन्नता अपनी व्यक्त नहीं कर सकता क्यूंकी शब्द शायद न तो उपयुक्त मिलें मुझे और न ही उनमे वो भाव दल सकूँ...पर आपकी सराहना ताकत देती है और लिखने को प्रेरित भी करती।

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  25. छोटी छोटी बातें मन चूर कर देती हैं...पर फिर उठता हूँ...

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  26. कई पाटों में पिस-पिस कर भी
    साबूत का साबूत बच जाता है .
    सुन्दर विचार कविता .अमृताजी ताबूत होता है साबूत नहीं वह साबुत होता है ,जो पिस नहीं पाता.

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    1. मैंने जो शब्दकोष देखा है उसमें साबूत है जिसका अर्थ अखंड है .. साबुत कोई शब्द नहीं है. आपका आभार ध्यान इस ओर आकर्षित करने के लिए..

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    2. Md.thanks for yr information .It is oxford Hi-Eng Dic
      sabut(conn.H.Sabit,Sabut)adj.corr.sound,undameged ,whole.
      मेडम! तब क्या यह माना जाए ,'साबुत' और 'साबूत 'पर्याय वाची हैं .'दो पाटों के बीच में साबुत बचा न कोय 'प्रचलित भाषिक स्तर पर साबुत है ,साबूत नहीं .ऑक्सफोर्ड हिंदी से अंग्रेज़ीशब्दकोश में 'साबूत 'शब्द को स्थान नहीं मिला है .मेरे पास इस शब्दकोश का ३७वा संस्करण २०१०,का है .पृष्ठ १०६ पर है 'साबुत ' .आपने किस शब्द कोष का हवाला दिया है ?

      चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय.

      दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय .
      मेडम! तब क्या यह माना जाए ,'साबुत' और 'साबूत 'पर्याय वाची हैं .'दो पाटों के बीच में साबुत बचा न कोय 'प्रचलित भाषिक स्तर पर साबुत है ,साबूत नहीं .ऑक्सफोर्ड हिंदी से अंग्रेज़ीशब्दकोश में 'साबूत 'शब्द को स्थान नहीं मिला है .मेरे पास इस शब्दकोश का ३७वा संस्करण २०१०,का है .पृष्ठ १०६ पर है 'साबुत ' .आपने किस शब्द कोष का हवाला दिया है ?

      चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय.

      दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय .

      आपने 'साबुत 'को कैसे बहिष्कृत कर दिया ?

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    3. सिर्फ शब्दों को पकड़ लेने से ही नहीं वरण शब्दों के संयोजन और प्रतिबिंबित भावों के विकाश और संचरण के लिए भी आवशयक मात्राओं का उपयोग किया जाना चाहिए .इस से भावों का ध्वनात्मक प्रयोग कहना ही उचित होगा .

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  27. sundr rchna hai bdhai swikar kren
    antha n len deshj shbdon se bcha jye to uchit hai sabut ke sthan pr poorn shbd bhi mere vichar me upyukt hai aur upnishd kii prmpra se jud jayega om poorn md .....mntr se smbdh ho jayega ek hi shbd se
    dr. ved vyathi
    09868842688
    dr.vedvyathit@gmail.com

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  28. nhi yhan taboot ka koi mel nhi hai saboot shbd poorn ko vykt kr rha hai main is pr phle kh chuka hoon yhi bhrtiyta ki poorn me se poorn jane pr bhi poorn hi bchta hai yh poorn sty hai

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    1. बृहत् हिंदी शब्द कोष में साबूत शब्द प्रयोग है जिसे विशेषण बतलाया गया है 'साबित' का यह शब्द उर्दू से हिंदी में आया है .जैसे साबित से सबूत भी बना हिंदी में चल पड़ा .साबूत शब्द समूचे के रूप में प्रचलित हो गया .कविता में वैसे भी मात्रिक छूट होती है. साबुत और साबूत इस प्रकार पर्याय वाची समझे जा सकतें हैं .इसीके साथ मैं अपनी तरफ से इस चर्चा को पूर्ण विराम देता हूँ .

      वेड व्यथित जी आपने मेरा आशय गलत समझा है मैं ने केवल साबूत और ताबूत की समान गेयता के रूप में ताबूत का उल्लेख किया था ,मैं जानता हूँ इसका अर्थ शव पेटी होता है .अमरीकी coffin,कास्केट,कास किट भारत में सजावटी संदूकची को भी कहतें हैं .

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  29. है कोई प्राणेर व्यथा जो रह रह घनीभूत हो उठती है -भावपूर्ण!

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  30. गहरे भाव लिए सुंदर रचना।

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  31. बढ़िया। मेरे ख्याल से भी साबुत होना चाहिए था.. इस प्रश्न को किसी विशेषज्ञ के सामने रखा जाए और बहस हो। ताकि हमें सही शब्द पता चले।

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  32. गहन पीड़ा से छितराई मन:स्तिथि की सार्थक अभिव्यक्ति !

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  33. OXFORD UNIVERSITY PRESS ,Oxford ,HINDI-ENGLISH Dictionary describes a-khand
    अखंड : a-khand(S),.१.unbroken,undivided,entire,unlimited.2.uninterrupted,continuous.3.indivisible,indestructible.

    यहाँ भी 'साबूत 'का कहीं उल्लेख नहीं हैं .

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  34. बहुत बढ़िया,बेहतरीन अच्छी रचना,.....

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  35. कल 25/02/2012 को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  36. बहुत भावपूर्ण रचना |
    आशा

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  37. बहुत सुन्दर गहरी बात ..शेष बचे से भी कुछ अच्छा निकल आएगा ..सुन्दर गीत अलंकारों के साथ

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  38. we should keep our self in grammer and suppose it missed no problem sorry.it happens sometime.
    NICE LINES WITH DEEP FEELINGS.

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  39. पल-पल झुरते जीवन में कुछ बच जाता है. उसके अहसास को इंगित करती सुंदर कविता. बहुत खूब.

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  40. संवेदना की गहरी अभिव्यक्ति ...

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  41. लहक लहक कर आग उसे तो

    पूरी तरह राख नहीं कर पाती है

    वह आकाश तो उड़ ही जाता है......



    अब मेरे पास शब्द नहीं है अमृताजी....

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  42. बेहतरीन सार्थक रचना,
    इंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।

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  43. आपकी पोस्ट और उस पर हुई टिप्पणियों
    को पढकर बहुत आनंद आता है और सीखने को भी मिलता है.
    कविता का असल गहन भाव तो कवि ही
    अधिक समझ सकता है.

    प्रस्तुति के लिए आभार.

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