मन के
हस्तिनापुर में
हमेशा बिछी रहती है
द्यूत - बिसात ..
तार्किक अड़चनों में
उलझा अर्जुन
चुप है
हारे हुए हर दाँव की
लगती ऊँची बोली पर
और शातिर के
पक्ष में घोषित
शापित परिणाम पर ...
फिर भी
इस द्वन्द-युद्ध में
गांडीव उठाकर
कर रहा है वह
कृष्ण की प्रतीक्षा
जो कहीं मगन है
अपने ही रासलीला में .
द्यूत---जुआ
मन के अन्दर तो शह मात चलती रहती है ...पर जब द्द्युत के पासे फेंके जाते हैं तो सारथी के वचन याद आते हैं
ReplyDeleteकान्हा बेशक मगन थे...मगर द्रौपदी की पुकार तो उन्होंने ही सुनी ना...
ReplyDeleteमहाभारत की पृष्ट भूमि का खुबसूरत अंकन द्युत क्रीडा
ReplyDeleteसराहनीय .
man aur prashn
ReplyDeletecholee daaman kaa saath
ek hal ho doosraa khadaa ho jaataa
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई
ReplyDeleteयह लीला तो ना जाने कितने रूपों में चलती रहती है ...कभी हम अनुभव करते हैं कभी नहीं ....? बस इतना सा फर्क है .....!
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसादर.
bahut sundar rachna
ReplyDeletejab har sahara toot jaata hai tab bhee uska sahara jarur rahta hai...likhne wale se sahi likha tha dukhdu
ReplyDeleteme sumiran sab kare,,,,s............to dukh keahe ko hoy...acchi rachna ke liye sadar badhayee
उस घटना ने पूरी महाभारत की दिशा बदल दी...सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteइस मन के द्वंद्व को तो हृदय रूपी कृष्ण ही थाम सकता है॥
ReplyDeletebahut sunder shabdo mein sanjoi hai rachna....
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।.. धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रतीक चयन प्रशंसनीय है
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअनिर्णय की घड़ी में किसी मार्गदर्शक की प्रतीक्षा तो रहती है.
ReplyDeleteसुन्दर एवं सराहनीय रचना......
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
बहुत सुंदर अभिव्याक्ति
ReplyDeleteफिर किशन ने कहा अर्जुन से , मत प्यार जता दुश्मन से . विचारो की तन्मयता, आपकी कविता की पंक्ति दर पंक्ति बढती जाती है . सुँदर प्रभावशाली रचना .
ReplyDeleteकविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.
ReplyDeleteवो कहीं मगन रहें मगर फिर भी साथ ही रहते हैं।
ReplyDeleteमन के कुरुचेत्र का सटीक और सजीव चित्रण कमाल की अभिब्यक्ति .हाँ हार तो उसकी होती है जंहाँ कृष्ण नहीं होते.कृष्ण तो हाथे पसारे राह देख रहे हैं .उनके भरोसे निर्भय होकर चले .कहा भी है निर्भर तो निर्भय .प्रसंशा के लिए शब्द नहीं हैं ,
ReplyDeleteउस कृष्ण की जो कहीं मगन है अपनी ही रासलीला में..........क्या कहूँ निशब्द कर दिया आपने.....हैट्स ऑफ ।
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
कोई तर्क की दुनिया में फंसा है तो कोई भावनाओं की रासलीला में मगन है.दोनों के बीच समन्वय स्थापित करने में समर्थ व्यक्ति ही सहज हो सकता है. कृष्ण की सारथी वाली भूमिका इसी समन्वय को मूर्त रूप देती है.अच्छी रचना जो हमारे जीवन के द्वंद को शब्द देती है.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमन ऐसा ही होता है...सोचता कुछ और है और रोचता कुछ और...गंडदेव उठाने की हिम्मत किसी में नहीं होती...आज हर जगह जब भी द्रौपदी छली जाती...क़ृष्ण आते नहीं वस्त्र उढ़ाने उसे...कहते हैं ये तो होता ही रहता है....द्यूत क्रीडा में निमग्न समग्र देश भूल जाता ही की हर व्यक्ति को अपने भीतर के सारथी को जगाना होगा जो उसके रथ को सही दिशा दे...
ReplyDeleteअमृता,पुनः झकझोरने के लिए धन्यवाद।
गहरे भाव।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
यह खेल तो जन्म-जन्मांतर ऐसे ही चलता रहेगा. तार्किक और संवेदनशील प्रस्तुति.
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति .........
ReplyDeletebahut sunder abhivyakti ........yeh to kkel aise hi chalta rahata hai .........sarthak post .badhai
ReplyDeleteज़िंदगी को जुआ हमने बनाया और फिर कृष्ण का इंतज़ार भी करते हैं ...बहुत सुंदर चित्रण
ReplyDeleteबहुत दूर तक प्रहार करती उम्दा सोच....
ReplyDeleteवाह!!!!!अमृता जी बहुत अच्छी प्रस्तुति, भावपूर्ण सुंदर रचना,....
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
तार्किक अड़चनों में
ReplyDeleteउलझा अर्जुन!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सादर
वाह! बहुत गहन चिंतन और उसकी प्रभावी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...हारा जुआरी हर बार ऊँचा दांव लगत जाता है...वो भी भगवान के भरोसे...सुन्दर भाव...
ReplyDeleteजहां अर्जुन वही कृष्ण ..बिना इस संयोग के संसृति का विस्तार कहाँ ?
ReplyDeleteअर्जुन क्या प्रतीक्षा ही करता रहेगा...बिन बुलाए कान्हा नहीं आते...
ReplyDeleteयदा यदा ही धर्मस्य ....
ReplyDeleteकृष्ण पहुंचेंगे ही यथासमय ....
अद्भुत रचना ....
कृष्ण तो रास लीला में भी चौकन्ने रहते हैं ... बस अर्जुन के मन की पुकार सुनना चाहते हैं ...
ReplyDeleteमन के हस्तिनापुर का एड्रेस मिल सकता है क्या, हम भी जाकर देखें ज़रा :P
ReplyDeleteजोक्स अपार्ट,
वंडरफुल कविता!!!