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Wednesday, February 8, 2012

गरीबी - रेखा


गरीबी के अंतिम दुर्भाग्य से
पूरी तरह कुचला हुआ
न जाने किस सपनीली उम्मीद पर
हताशा के आखिरी छोर पर भी
मजबूती से टिका हुआ
लिपटे कफ़न में भी जिन्दा गरीब...
चुटकी भर नमक से भी सस्ती
अपनी जान को चुटकी में दबाये
गरीबी के नशे में लड़खड़ाता हुआ
क्यों दिखता है न हमें आपको हर जगह...
जिनके लिए हमने -आपने तो
बिल्कुल ही नहीं ....तो
कहीं इस काल-कुचक्र ने तो नहीं
जबरन खिंचवा रहा है हमसे -आपसे
वही एक रेखा - गरीबी रेखा......
हाँ ! उसी लक्ष्मण रेखा की तरह
हम-आप बातें करते हैं उसे उठाने की
उठ आते हैं कितने ही भाव चुपके से
हमारे ह्रदय के मरघटी कोने में...
जब निकलता है संवेदना के बोल तो
अपने लिए धन्यवाद ज्ञापन उपरवाले को
उनके लिए दिखाते-भींचे ओठ के पीछे
दबा लेते हैं हम राहत की मुस्कान..
चेहरे पर बनाई गयी चिंता-रेखा पर
गुलाबी सुगंध से फड़कते हमारे नथुने..
उपहासी नजरों से खाई को देखना
पुल बनाने का आडम्बर करना
जिसे अँधेरे में गिरा भी देना
इतना काम कम है क्या
अपनी पीठ थपथपाने के लिए....
साथ ही गरीबी-विमर्श से हम
चालाकी से छुपा लेते हैं उस
मारामारी के प्रतिस्पर्धात्मक डर को
जो रेखा मिटने से हो जाएगा बेकाबू
हाँ ! समय बदल गया है
और समय से ज्यादा हम.....
उस रेखा के उस पार हैं वे गरीब
और इस पार हम आधुनिक रावण जो
हरण सा कुकृत्य भला क्यों करने लगे
बस उन्हें थोड़ा खींच कर
उसी गरीबी रेखा पर खड़ा करके
उन्हें यूँ ही जलते देखे .


एक सवाल खुद से ही---- कि हम गरीबी रेखा बढ़ाने के लिए क्या कर रहे हैं ?
 

49 comments:

  1. सार्थक रचना...

    प्रश्नचिंह है ये हमारे प्रयासों पर..

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  2. तीखा और करार प्रहार.....गहन संवेदनशील पोस्ट.....हैट्स ऑफ इसके लिए|

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  3. दबा लेते हैं हम राहत की मुस्कान..
    चेहरे पर बनाई गयी चिंता-रेखा पर
    गुलाबी सुगंध से फड़कते हमारे नथुने..
    उपहासी नजरों से खाई को देखना
    पुल बनाने का आडम्बर करना
    जिसे अँधेरे में गिरा भी देना....bahut hi khoobsurti se aapne prastut ki hai rachna . sarthk satye ko prabhavshali kalam ke saath . bhadhai.

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  4. गरीबी - चुटकी भर नमक से सस्ती स्थिति ... बहुत गहराई से लिखा है

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  5. थोड़ा इधर व थोड़ा उधर, पीड़ा तो उतनी ही है।

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  6. यथार्थ को बयां करती हुई प्रभावी रचना ...

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  7. सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  8. सार्थक शब्दों का संगम...

    आपको पढ़ने के बाद सब ख़त्म हो जाता है....

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  9. विचारणीय प्रश्न है।

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  10. कफ़न से लिपटा गरीब.... बस एक सांश की दूरी है जीवन मरन में ॥

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  11. कल 09/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  12. उसी गरीबी रेखा पर खड़ा करके
    उन्हें यूँ ही जलते देखे .
    expression of love towards BPL
    nice lines. thanks alot.

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  13. कल रात फिर
    कोई सौ का नोट
    दे गया
    बेटी को साथ
    ले गया
    अंधा,अपाहिज था
    खून खौलता रहा
    पेट के खातिर
    चुप रहा
    रात भर रोता रहा
    जान देना चाहता था
    बेटी के खातिर
    खामोशी से सहता
    रहता
    उसकी गरीबी
    और लाचारी का
    मज़ाक उड़ता रहता
    बेटी निरंतर बाप के
    खातिर
    शरीर बेचती रहती
    हवस का शिकार
    होती रहती
    मर मर कर
    जीती रहती

    जीने की तमन्ना
    दोनों को मरने
    नहीं देती
    06-07-2011
    1146-30-07-11

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    1. तेला जी...बहुत ही मर्मिक चित्रण कर दिया...ज़िन्दगी रहेगी तो शायद सँवर जाए...इसी आस में मौत से बदतर जीवन जीने को अभिशप्त हैं...बहुत लोग...

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    2. जीने की तमन्ना
      दोनों को मरने
      नहीं देती

      lanat hai aisi zindgi par....zillat ki zindgi se maut kahi behtar hai.......bahut sundar hai aapki post|

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  14. Badhiyaa saarthak rachnaa likhnaa bhool gayaa

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  15. खूबसूरत भाव...मर्मस्पर्शी रचना...

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  16. उपहासी नजरों से खाई को देखना
    पुल बनाने का आडम्बर करना
    जिसे अँधेरे में गिरा भी देना
    इतना काम कम है क्या
    अपनी पीठ थपथपाने के लिए....

    सच्चाई बयां करती रचना !!!!

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  17. सत्य है, पूर्णतः सहमत हूँ.

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  18. बेहद मार्मिक तरीके से आपने गरीबी को रेखांकित किया है .....!

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  19. सार्थक ...प्रभावशाली रचना अमृता जी ...!!

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  20. इस समस्या का त्तकाल हल न भावनाओं से संभव है न अर्थशास्त्रियों की इसमें रुचि है. मार्मिक रचना.

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  21. चुटकी भर नमक से भी सस्ती है गरीबों की जिंदगी...विचारणीय तथ्य...मार्मिक भाव...

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  22. आप अपनी लेखनी से इनके जीवन भर दे .सशक्त और सबल बिचार और जिन्हें आप निर्बल और निरीह कह रही है, वे अपने खुद का इतिहास लिख लेंगे,संसार की साडी क्रांति इन्ही बेबस लोगो द्वारा लिखी गयी है ,आप इतना तो कीजिये बहुत कुछ बदल जायेगा .

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  23. बस उन्हें थोड़ा खींच कर
    उसी गरीबी रेखा पर खड़ा करके
    उन्हें यूँ ही जलते देखे ........

    बेहद खूबसूरत से लिखी गई लेखनी
    हालात कल भी ऐसे ही थे ,आज भी वैसे ही हैं...पर कल का पता नहीं ..कि आने वाला कल इन लोगो के लिए कैसा होगा ?

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  24. बहुत ही गहन एवं विचारणीय अभिव्यक्ति ....

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  25. चुटकी भर नमक से भी सस्ती
    अपनी जान को चुटकी में दबाये

    सार्थक प्रश्न उठाती रचना ... सरकार कहती है कि ३२ रूपये रोज कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है ... हकीकत कहती है कि आज मध्यम वर्गीय भी गरीबी कि चपेट में आ रहा है ..

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  26. हाँ ! समय बदल गया है
    और समय से ज्यादा हम.....
    उस रेखा के उस पार हैं वे गरीब
    और इस पार हम आधुनिक रावण जो
    हरण सा कुकृत्य भला क्यों करने लगे
    बस उन्हें थोड़ा खींच कर
    उसी गरीबी रेखा पर खड़ा करके
    उन्हें यूँ ही जलते देखे

    इस कविता के माध्यम से आपने अपनी अभिव्यक्ति को नया आयाम दिया है जो किसी भी संवेदनशाल व्यक्ति को अधीर कर देने में सार्थक सिद्ध होगी । मेरे नए पोस्ट "जय प्रकाश नारायण" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  27. सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  28. हाँ ! उसी लक्ष्मण रेखा की तरह
    हम-आप बातें करते हैं उसे उठाने की
    उठ आते हैं कितने ही भाव चुपके से
    हमारे ह्रदय के मरघटी कोने में...

    is senstivity ka koi test nahin hota....!

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  29. मार्मिक संवेदनशील रचना...

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  30. अच्छी कविता अमृता जी नमस्ते !

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  31. उस रेखा के उस पार हैं वे गरीब
    और इस पार हम आधुनिक रावण जो
    हरण सा कुकृत्य भला क्यों करने लगे
    बस उन्हें थोड़ा खींच कर
    उसी गरीबी रेखा पर खड़ा करके
    उन्हें यूँ ही जलते देखे .

    ....सच गरीब को गरीबी रेखा के अन्दर ही रखने की पूरी कोशिश, क्यूंकि तभी तो वे सर झुकाये रहेंगे नेताओं के सामने...बहुत मर्मस्पर्शी और सटीक रचना...

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  32. गरीबी एक अभिशाप है इस तथ्य से इंकार भला कैसे किया जा सकता है .भावो को अनुपम शब्द दिए है .

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  33. इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें.

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  34. जब निकलता है संवेदना के बोल तो
    अपने लिए धन्यवाद ज्ञापन उपरवाले को

    'ऊपर' वाले कर लें अमृता जी .बेहद सशक्त रचना रावणी अर्थ - व्यवस्था पर कटाक्ष करती जो गरीबी रेखा को नहीं गरीबों को ही इस धरती से उठाने के इंतजाम कर रही है .

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  35. यथार्थ एवं मार्मिक चित्रण.......

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  36. सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई......

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  37. सुन्दर भाव..मर्मस्पर्शी रचना...

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  38. गरीबी की यह रेखा न जाने कब मिटेगी !
    प्रभावशाली कविता।

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  39. मर्मस्पर्शी और यथार्थपरक रचना सोचने पर विवश करती है. बधाई.

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  40. पर दुःख कातरता का भावपूर्ण उदगार !

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