बातें हैं , बातों का क्या
हवा सी डोलती - फिरती
आड़ी - तिरछी दिशाओं में
उल्टा - सीधा कोण बनाती हुई
ज्यामितीय परिभाषाओं को
तोड़ती-मरोड़ती, बनाती-बिगाड़ती
छूना चाहूँ तो अपने ही केंद्र में
चुपचाप सी दुबकती बातें
पकड़ना चाहूँ तो परिधि पर
घुमती- घामती , नाचती- भागती
मुझे ही लट्टू बनाती बातें
बलात कोई चक्रवात
खींच ले मुझे अपने पाताल में
और उसके परतों का करना पड़े
अध्ययन दर अध्ययन .. ओह !
बातें हैं , बातों का क्या
बादलों की तरह
सर्द होऊं कि बरस जाती है
इतना कि डूबती-उतराती रहूँ और
बनाती रहूँ डोंगी ,नैया ,जहाज
या फिर उसे उलीचती रहूँ
डूबी रहती हूँ पूरी तरह
बातें हैं , बातों का क्या
अटक कर , कुरेदती हुई
बना देती है रिसता घाव
उसे छलनी में डालूँ भी तो
छलनी सी हो जाती है
बात पर जो आऊँ तो
उड़ा देती है अपनी बातों में
बिखरी पड़ी है बरकती बातें
ये भोथरी- बरछी सी बातें
खुलती- गाँठ सी बंध जाती बातें
बातें हैं , बातों का क्या
कितना भी पलट दूँ
फिर भी निकलती हैं बातें .
हवा सी डोलती - फिरती
आड़ी - तिरछी दिशाओं में
उल्टा - सीधा कोण बनाती हुई
ज्यामितीय परिभाषाओं को
तोड़ती-मरोड़ती, बनाती-बिगाड़ती
छूना चाहूँ तो अपने ही केंद्र में
चुपचाप सी दुबकती बातें
पकड़ना चाहूँ तो परिधि पर
घुमती- घामती , नाचती- भागती
मुझे ही लट्टू बनाती बातें
बलात कोई चक्रवात
खींच ले मुझे अपने पाताल में
और उसके परतों का करना पड़े
अध्ययन दर अध्ययन .. ओह !
बातें हैं , बातों का क्या
बादलों की तरह
सर्द होऊं कि बरस जाती है
इतना कि डूबती-उतराती रहूँ और
बनाती रहूँ डोंगी ,नैया ,जहाज
या फिर उसे उलीचती रहूँ
डूबी रहती हूँ पूरी तरह
बातें हैं , बातों का क्या
अटक कर , कुरेदती हुई
बना देती है रिसता घाव
उसे छलनी में डालूँ भी तो
छलनी सी हो जाती है
बात पर जो आऊँ तो
उड़ा देती है अपनी बातों में
बिखरी पड़ी है बरकती बातें
ये भोथरी- बरछी सी बातें
खुलती- गाँठ सी बंध जाती बातें
बातें हैं , बातों का क्या
कितना भी पलट दूँ
फिर भी निकलती हैं बातें .
बातें हैं बातों का क्या....फिर भी आपकी यह बातें बहुत अच्छी लगीं। :)
ReplyDeleteसादर
Baat sirf yahi hai ki---
ReplyDeleteWaah..! kya baat hai...
Natkhat Baaton Ko Bahut Acchi Tarah Paribhashit Kiya Hai Aapne... Regards..
..बहुत मर्मस्पर्शी अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति अमृता जी ..आभार
ReplyDeleteBahutkhoob...Baatein !!!
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
आपकी 'बातें है, बातों का क्या'
ReplyDeleteभी खूब अनबुझ पहेली है.क्यूंकि
'कितना भी पलट दूं
फिर भी निकलती हैं बातें'
सुन्दर अति सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति.........
ReplyDeleteबातों से निकलती हैं बातें
ReplyDeleteबातों ही बातों कट गई रातें
वाह अमृता जी,
ReplyDeleteबिल्कुल अलग अंदाज़ में उम्दा रचना
गाँठें उलझाती हैं बातों को, बातें स्वयं सुलझने में सक्षम हैं।
ReplyDeletebahut sunder ,
ReplyDeleteblog par aane ke liye dhnyvaad
क्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबातें ही हैं जो बहुत कुछ कह देती हैं ... बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी
ReplyDeleteजबर्दस्त बातें -कौन सी बातें तनिक हम भी तो सुने जानें :)
ReplyDeleteबात निकलती है तो सिलाई की तरह उधेड़ती ही जाती है...
ReplyDeleteबात फिर बात है, बोलेगी खुद ही.
ReplyDeleteबातें अच्छी कर ली आपने तो इस कविता के माध्यम से ॥
ReplyDeleteअटक कर कुरेदती हुयी
ReplyDeleteबना देती हैं रिश्ता घाव ...
गजब की पंक्तियाँ और विचारणीय भाव ....सुन्दर गहन अभिव्यक्ति लिए रचना
भ्रमर ५
बातों का कहाँ अंत है...बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबातें है बातों का क्या...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने.
बना देती है रिसता घाव
अर्थपूर्ण .....
जब बात निकल ही गयी है...तो अब ये दूर तलक जाएगी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबातों ही बातों में गहरी बातें कर दीं आपने।
ReplyDeleteसुंदर...
बेहतरीन....
आभार...........
ये भोथरी- बरछी सी बातें
ReplyDeleteखुलती- गाँठ सी बंध जाती बातें
बातें हैं , बातों का क्या
कितना भी पलट दूँ
फिर भी निकलती हैं बातें .
बातों-बातों में आपने बहुत गहरी बात कह दी, लाजवाब !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बात कह दी आपने.....
ReplyDeletenikli hai aaj jo baat ye dur talak jayegi,
ReplyDeletechalegi jab aapki baat to yaaden bhi aayengi....
bahut hi badhiya rachna..
jai hind jai bharat
सारा खेल इन बातों में ही तो समाया है .......
ReplyDeleteबातों से निकलती हैं बातें
ReplyDeleteबातों ही बातों कट गई रातें
भाव-प्रवण कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर रचना... अलग अंदाज़...
ReplyDeleteसादर बधाई....
बातों-बातों में इतनी गहरी बातें... लाजवाब रचना
ReplyDeleteबातों-बातों में उलझती-सुलझती....सुनती -सुनाती ....रूठती-मानती ...लच्छेदार-गुच्छेदार ...उम्दा बातें.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर घुमावदार रचना ....!!!
बातें तो निकलती ही रहती हैं...
ReplyDeleteखूब लिखी है बातों की बात!
गहरी बात ....जीवन कभी सुलझाती कभी उलझाती बातें ....
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
सही अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबातें ही तो हैं जो बना देती हैं ना जाने कितनीबातें…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeletejust one word awasome .............bahut pasand aayi aapki ye kavita
ReplyDeleteबहुत अच्छे भावों को शब्दबद्ध किया है आपने !
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
Amrita,
ReplyDeletePHIR DER HUYI PER SAB KAVITAYEN PARHI. BLOG JAGAT BILKUL SAHI KAHAA AAPNE. TANMAY BAHUT ACHCHHI LAGI. BAATEIN TO BAATEIN HI HAIN AUR SAB KUCHH PALAT PHER KAR DETI HAIN MAGAR.
Take care
बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
एक सराहनीय सृजन सम्मान योग्य सृजन , शुक्रिया जी
ReplyDeleteये बातें...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावमयी रचना.
बहुत खूब आप मेरी रचना भी देखे ...........
ReplyDeleteबातों ही बातों में, बातों का मर्म समझा दिया आपने।
ReplyDeleteबातें निकलती हैं तो दूर तलक जाती हैं ...
ReplyDeleteपर बातें तो हैं सिर्फ बातें , बातों का क्या ...
सच कहा आपने !
वाह,सुंदर रचना.
ReplyDeleteबातें जीवन का सच है..दर्पण हैं.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
अमृता जी बाते है..बहुत सुन्दर रचना बधाई...
ReplyDeleteमेरे पोस्ट में आपका स्वागत है
बाते हैं बातों का क्या ..............बहुत सुन्दर, शानदार और बेहतरीन पोस्ट........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteवाह! बातों पर आपने कितनी बातें कह डालीं...फिर भी आपके भीतर हैं अब भी हजार बातें...
ReplyDeleteबातें....बातें....और सिर्फ बातें....!!
ReplyDeleteऔर न जाने कितनी बातें.....!!
बातों से हि हर चीज कि शुरुआत होती है|
ReplyDeleteबहुत हि बेहतरीन रचना|
bahut sundar rachana hai..
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/
badi sundar batein hai.pyari rachna...
ReplyDeleteबातें हैं, बातों का क्या :) :)
ReplyDeleteअवसम :)
waah...bat ki baat men baat kahan tak aa pahunchi..bahut sarthak baaten..
ReplyDeleteमुझे प्रतापनारायण मिश्रा की "बातें " आलेख याद आया . अब बात चल पड़ी है तो दूर तलक जाएगी .
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