एक तो भीषण मानवता का वीभत्स सत्य
और विचलित करने वाला दुर्निवार दर्द
जिसका विशेषीकरण करने के क्रम में
संभ्रमित संवेदनाओं का पुट तो ठीक है
पर लगाए गये जोरदार छौंक से
जो उठता है दमघोंटू धुँआ
घुस जाता है नथुनों से फेफड़ों में
मरोड़ने लगता है पूरा कलेजा
उलझ जाती है अतड़ियाँ और भी
आने लगती है उबकाई पर उबकाई
नसों में दौड़ता विद्रोही ख़ून भी
रुकने लगता है जहाँ - तहाँ
तापक्रम के अति चरम पर
खलबलाने लगता है खूब
अपनी ही नदियाँ बहाने के लिए
उताड़ू रहता है बात बात पर
कितना भी समझाया- बुझाया जाए
उल्टा करने लगता है शास्त्रार्थ
अपने सवालों के बवंडर में
कोमल भावनाओं को फँसा कर
तिरोहित कर देता है
इन्द्रधनुषी तृष्णा व तृप्ति को
सहज , सुन्दर आकर्षण को
जीवन के सारे तारतम्य को
जो आकाश-कुसुम सा खिला रहता है
जिलाए रखता है हमें और हम
उसी को ताकते - ताकते
कृत्रिम सुगंधों से ही सही
भरते रहते हैं प्राण - वायु
अपने अस्तित्व के तुरही में...
दर्द और संवेदना जरुरी है
खुशियों का मोल समझने के लिए
पर अति क्यूँ इति सा लगता है ..
सभी इन्द्रियों से तुरही को सुनने पर
संवेदना का स्वर तो निकलता ही है
साथ ही खुशियों-आशाओं का
ऐसा मधुर गीत भी निकलता है कि
दुर्निवार दर्द बन जाता है
भरपूर जीने की प्रेरणा और शक्ति .
और विचलित करने वाला दुर्निवार दर्द
जिसका विशेषीकरण करने के क्रम में
संभ्रमित संवेदनाओं का पुट तो ठीक है
पर लगाए गये जोरदार छौंक से
जो उठता है दमघोंटू धुँआ
घुस जाता है नथुनों से फेफड़ों में
मरोड़ने लगता है पूरा कलेजा
उलझ जाती है अतड़ियाँ और भी
आने लगती है उबकाई पर उबकाई
नसों में दौड़ता विद्रोही ख़ून भी
रुकने लगता है जहाँ - तहाँ
तापक्रम के अति चरम पर
खलबलाने लगता है खूब
अपनी ही नदियाँ बहाने के लिए
उताड़ू रहता है बात बात पर
कितना भी समझाया- बुझाया जाए
उल्टा करने लगता है शास्त्रार्थ
अपने सवालों के बवंडर में
कोमल भावनाओं को फँसा कर
तिरोहित कर देता है
इन्द्रधनुषी तृष्णा व तृप्ति को
सहज , सुन्दर आकर्षण को
जीवन के सारे तारतम्य को
जो आकाश-कुसुम सा खिला रहता है
जिलाए रखता है हमें और हम
उसी को ताकते - ताकते
कृत्रिम सुगंधों से ही सही
भरते रहते हैं प्राण - वायु
अपने अस्तित्व के तुरही में...
दर्द और संवेदना जरुरी है
खुशियों का मोल समझने के लिए
पर अति क्यूँ इति सा लगता है ..
सभी इन्द्रियों से तुरही को सुनने पर
संवेदना का स्वर तो निकलता ही है
साथ ही खुशियों-आशाओं का
ऐसा मधुर गीत भी निकलता है कि
दुर्निवार दर्द बन जाता है
भरपूर जीने की प्रेरणा और शक्ति .
दर्द का अच्छा वर्णन किया है आपकी कविता हृदयस्पर्शी है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है !
कुछ शब्द नहीं है इसके बारे में कहने के लिए.....मन को भा गयी आपकी लेखनी.
ReplyDeleteसत्य जब कटु होने लगता, जीवन असहजता की ओर बढ़ जाता है।
ReplyDeleteजो आकाश-कुसुम सा खिला रहता है
ReplyDeleteजिलाए रखता है हमें और हम
उसी को ताकते - ताकते
कृत्रिम सुगंधों से ही सही
भरते रहते हैं प्राण - वायु
अपने अस्तित्व के तुरही में...
क्षोभ के बाद भी जीने की प्रेरणा से भरी रचना अच्छी लगी
एक तीव्र मानवीय संवेदना को लेकर लिखी गई इस कविता का कैनवास बहुत बड़ा है. शब्द कहीं अधिक कह जाते हैं. वाह!! बहुत ही सुंदर.
ReplyDeletesach... geet bhi dard ban jata hai
ReplyDeleteबेहतरीन विचार।
ReplyDeletebhashaa ,bhaaw aur prawaah !
ReplyDeleteIs adbhut oprahvaan rachna ke liye badhai swiikaren
ReplyDeleteNeeraj
gahan chintan karwaati rachna....
ReplyDeleteकहतें है 'दर्द' प्रकृति की ओर से दिया गया वरदान है.
ReplyDeleteजिसके सदुपयोग से व्यक्ति बन सकता महान है.
आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति हमको दे रही सुन्दर ज्ञान है.
प्रेरणा और शक्ति से ही तो जीवन में आ जाती शान है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई,अमृता जी.
सम्वेदना के बिना जीवन कैसा
ReplyDeleteसुन्दर रचना
oh...
ReplyDeletejabardast!!
Geet Kabhi Dard Mere, Dard Kabhi Meet Mere..
ReplyDeleteBahut hi umda rachana.. Aabhar..
khubsurat bhav .........aisa geet nikalta hai .....wah .badhai amrita ji nayi rachna ke naye bhav .........kahin jyada kah gaye .
ReplyDeletehttp/sapne-shashi.blogspot.com
meri last post par aapka khamosh comments pasand aya . thanks .nayi p[ost par swagat hai ..:) :)
ReplyDeleteअमृता जी सुन्दर अभिव्यकित ..बहुत सुन्दर ब्लॉग आप का कोलाहल से दूर ..रचनाएं मन में घर कर जाती हैं
ReplyDeleteभ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण --में आप का स्वागत है -हो सके तो अपना सुझाव और समर्थन भी दें
अद्भुत रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई....
दर्द प्रेरणा बन जाए तो राहें सरल हो जाती हैं!
ReplyDeleteसुन्दर भाव!
अमृता जी...क्या लिखा है आपने...बहुत खूब...लाजवाब।
ReplyDeleteवीभत्सता है जीवन में भी तो करुणा और प्यार भी कुछ कम नहीं -हाँ हम अवसर अक्सर खो देते हैं ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं चिंतनीय आलेख के लिये बधाई !
ReplyDeleteशब्दों का अनूठा समिश्रण ...!
छौंक से परहेज जरूरी है।
ReplyDeleteसच है खुशियों का मोल समझने के लिए दर्द और संवेदना जरुरी है... जीने की प्रेरणा से भरी सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुन्दर रचना,आभार.
ReplyDeleteati sundar.... abhar..
ReplyDeletehardaysprshi rachna....
ReplyDeletesubhkaamnayrn..
jai hind jai bharat
samvedna aur bhaavna ka atiuttam sangam.
ReplyDeleteयही तो होता है- दिल दिया द्रद लिया
ReplyDeleteदर्द और संवेदना जरूरी है खुशियों का मोल समझने के लिये..बहुत संवेदनशील और गहन दर्शन से परिपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिल..रिश्ते ...मानवीय भावनाएं ...सब दर्द की चपेट में कब और कैसे आ जाते हैं पता ही नहीं चलता ............भावपूर्ण लेखनी
ReplyDeleteआशा सुख जी जननी है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता।
बेमिसाल......संवेदना के भाव लिए रचना
ReplyDeleteसंवेदनाओं का संसार सब कुछ सामने रख देता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
दिल को छू लेने वाली रचना आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteआशा
अपने अस्तित्व की तुरही में दर्द और संवेदना जरुरी है.. अमृता जी सहमत हूँ आपसे.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
बहुत ही अच्छा लिखा है .
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील और गहन रचना..
ReplyDeleteसच है अमृता जी.......दर्द कई बार बहुत कुछ देता है.......दुःख के बिना सुख का मोल पता नहीं चलता.........बहुत सुन्दर पोस्ट...........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteबहुत संवेदन शील रचना
ReplyDeleteआपका शब्द समायोजन कमाल का है
बहुत बहुत बधाई