अपनी तरफ से मैंने
कभी कोई पहल नहीं किया
उसने किया भी तो, मैं
अनजान बन गयी
उसी के साथ म्यान में हूँ
अनजाने, अनचीन्हे रिश्ते लिए
और हमेशा बीच में देती रही
अनबन को ज्यादा जगह....
हालाँकि कोई घोषित दुश्मनी
या कोई धर्मयुद्ध है
ऐसा भी नहीं पर हरवक्त
होती रहती है तलवारबाजी...
सम्मानजनित सामंजस्य
सभ्य सुरक्षित वार
घाव भी ऐसे देना कि
प्रतिरक्षण प्रणाली
आप ही कर ले दुरुस्त....
कोई शर्त या बाध्यता नहीं
रण में डटे रहने की
संवेदनशील भावहीनता
भाषा जनित संवादहीनता
संकेतो या तरंगों के बीच भी
अनजानी अर्थहीनता........
बस पुतलियाँ बड़ी- बड़ी कर
एक- दूसरे को घूरना
उबन कम करने के लिए
उबासियाँ ले ले कर
थपकियाँ दे दे कर
एक- दूसरे को जगाते रहना.....
या फिर मुँह फेरकर
अनजाने रिश्ते में
थोड़ी और खटास घोलना.....
मुझपर हावी है वो और
भारी भी पर, मैं भी
कुछ कम तो नहीं.....
ये म्यान मेरा है
उसकी अपनी मजबूरियां है
तो फिर वायदा- कायदा को
तोड़- ताड़ करने में
कुछ जाता भी नहीं है.......
ज्यादा चिढेगा वो, भागेगा
और इस खोखले म्यान को तो
खाक होना ही है
फिर बाँचने वाले बाँचते रहेंगे
खोखले म्यान की
खोखली महिमा .
प्रेम गली अति संकरी तामे दो न समाहीं ...!
ReplyDeleteइस खोखले म्यान को तो
ReplyDeleteखाक होना ही है
फिर बांचने वाले बांचते रहेंगे
खोखले म्यान की
खोखली महिमा ...shaandaar
इस खोखले म्यान को तो खाक होना ही है....
ReplyDeleteशायद आज की ज़िंदगी का यही सच है... बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
waah Amrita ji waah, kitni sukshmata se dekh payi hain aap rishton ke beech se nikal akar ekdam alag khade hokar jaise dekha ho.
ReplyDelete"sabhya surakshit vaar"
"bhasha janit samvadheenata "..."sanketon ya tarangon ke beech bhi...anjaana arth heenata"
kuchh alag hi baat hai.
अमृता जी आजकल तो आप गज़ब कर रही हैं......सुन्दर बिम्बों से शानदार और बेहतरीन पोस्ट.......चौथी बार लगातार हैट्स ऑफ|
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!
ReplyDeleteये म्यान मेरा है
ReplyDeleteउसकी अपनी मजबूरियां हैं
वाह...बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
आक्रोश को मर्यादा की म्यान में छिपा कर रखना सीख गये हैं हम।
ReplyDeleteप्यार में कभी कभी ऐसा भी होता है.... :)
ReplyDeleteरिश्तो का खोखलापन ....ना जाने क्यूँ...जिन्दगी भर ढ़ोने को मजबूर करता है
ReplyDeleteगंभीर बिम्बों को लेकर सार्थक चर्चा...
ReplyDeleteसादर....
खोखले म्यान की
ReplyDeleteखोखली महिमा.
अमृता जी,आपका बयां निराला है जी ?
म्यान की बात से कुछ और भी प्रेषित कर रहीं हैं आप.
सकारात्मकता ही हर बात का जबाब है.
मुझे तो यह गाना बहुत पसंद है
'नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं....'
Saath saath paraspar virodhi shabdo ko rakh k bhi aise goonth dia h maano ek hi daali pe khile the ye phool kabhi.. bahut khoob :)
ReplyDeleteज़िंदगी का सच... भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति जीवन के सत्यो को उजागर करती हुई।
ReplyDeleteजीवन का सास्वत सत्य उतार दिया है दिया है रचना मैं बधाई
ReplyDeleteअधिकार और सहभागिता है तो परस्पर है, अन्यथा नहीं है. केवल खाली म्यान है खोखली महिमा वाली. बदलते समय के बदलते मिजाज़ की सुंदर कविता.
ReplyDeleteखोखले म्यान की खोखली महिमा से पार उतर कर ही सामंजस्य की बात मूर्त हो सकती है!
ReplyDeleteसुन्दर शब्द प्रयोग !
सहज भी.. सलज भी..
ReplyDeleteघाव भी ऐसे देना कि... बहुत ही सुन्दर .......................
राहुल
म्यान का बिम्ब बहुत सुंदर है। कविता के भाव भी।
ReplyDelete*
दो बातें पहल और म्यान दोनों ही स्त्रीलिंग शब्द हैं।
Behad gambheer aur arthpoon abhivyakti. Ek aise rishte ka khokhalapan dikhati jise aksar mahimamandit kiya jata hai chahe dharatal par uski vastavikata kitni hi thothi ho.
ReplyDeleteIs sargarbhit aur pur-asar rachna k liye saadhuvad!
sunder shabdo ka sunder samavay ............badhai
ReplyDeleteKabhi koi majboori .. Kabhi koi chahat Mayan mein rahne ko vivash karti hai ... Yahi to jeevan hai ..
ReplyDeleteम्यान का प्रयोग और सामंजस्य का प्रश्न ..... सार्थक रचना
ReplyDeleteमुश्किल हो रहा है जान पाना कि कविता में तलवारबाजी है या तलवारबाजी में कविता .. :)
ReplyDeleteकभी रौद्र रस की कवितायें मेरी भी प्राथिमिकता थीं मगर अब तो शांत स्नेह रस में ही सरोबार और आकंठ डूबा रहना चाहता हूँ ......वैसे भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं आ सकती हैं ...जबरदस्ती पर किसी एक तलवार या म्यान को ही खतरा हो सकता है ....इसमें किसी द्वंद्वी को बुद्धिमानी दिखाते हुए पैर वापस खींच लेना चाहिए -अभी भी युद्ध न वापस होने वाले आख़िरी बिंदु तक नहीं पहुंचा है ...
अरे अरे यह तो भाष्य लिखने लग गया आपकी कविता का -क्या करें स्वभाव से मजबूर हूँ ...ये कुछ वे विचार थे जो अकस्मात मन में कौंध से गए कविता पढ़ते पढ़ते ....
अमृता जी,
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत बिम्ब.
सार्थक सृजन.
तुम तलवारों की बात करते हो,
हमें म्यानों से भी लगने लगा है डर.
myan ko bimb bana kar kahi gahan bat....sundar rachana..
ReplyDeleteमन के अंतर्द्वंद्व को तलवारों की धार और म्यानों के कवच से समझने का बिम्ब -
ReplyDeleteयह टिप्पणी अच्छी लगी -तलवारों की तो बात दूर मुझे अब तो म्यानों से ही डर लगता है :)
I don’t even know how I finished up here, however I thought this submit was once great. I don’t know who you’re however definitely you’re going to a famous blogger in case you are not already Cheers!
ReplyDeleteFrom everything is canvas
गहन विचार लिए रचना |बधाई |
ReplyDeleteआशा
गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुतिकरण।
जिंदगी का सच यही है,...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना ..
नए पोस्ट पर आपका इंतजार है ///
nice poem
ReplyDeletegahari baat kahi aapne
एक म्यान में दो दलवारें किसी तरह रह भी जांय। मामला तो तब बिगड़ता है जब छूरे और कटारियाँ भी आ धमकती हैं:-)
ReplyDeleteअच्छी रचना,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
अच्छी रचना के लिए आपको बधाई । आप हमेशा सृजनरत रहें और मेरे ब्लॉग पर आपकी सादर उपस्थिति बनी रहे । धन्यवाद ।
ReplyDeleteउम्दा रचना!!
ReplyDeletegahan chintan...myan ko pratik banakar likhi shashakt rachna..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteभावपूर्ण विचारों की सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteमोल करो तलवार की..पड़ा रहने दो म्यान....कबीर की बात याद आ गई.....म्यान में एक ही तलवार समा पाती है....चाहे जैसी हो..ढोते रिश्तों की भी यही हालत होती है..म्यान खाक ही हो जाए तो बेहतर....अच्छी कविता
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति | मेर नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । निमंत्रण स्वीकार करें ।
ReplyDeletebahut khub...
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
अंतर के अंतर्द्वंद्व को अद्भुत बिंब से उकेरना आसान है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अमृता जी।
सस्नेह।
कविता दो अर्थ दे रही है पर दोनों ही लाजवाब अमृता जी ।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन।
सम्मानजनित सामंजस्य
ReplyDeleteसभ्य सुरक्षित वार
घाव भी ऐसे देना कि
प्रतिरक्षण प्रणाली
आप ही कर ले दुरुस्त....
दुश्मनी और वार वह भी सम्मानजनक
वाह!!!
अद्भुत।
इस म्यान और तलवारबाजी के बिना जीवन में रोमांच कहाँ सम्भव है प्रिय अमृता जी!गृहस्थी और दुनियादारी इसके बिना चल नही पाती।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteम्यान को प्रतीक बना जीवन संदर्भ पर गहन रचना ।
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