इक झलक तेरी जो मिली
चली आई तेरे द्वार तक
बड़ी देर से साँकल बजा रही
प्राणों से भी खूब थपकाया
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं
जोर - जोर से तुम्हें पुकारा
रुंधा गला तो विवश निहारा
तुमने कैसे मुझे सुना नहीं
या अनसुना कर अस्वीकारा
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं
व्यथा - पुष्पों से सजा कर
वेदना का वंदनवार बनाया
साँसों की वेद - ध्वनि से
आर्तनाद कर तुम्हें बुलाया
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं
आँसुओं का अर्घ चढ़ा कर
नैनों का अखंड दीप जलाया
भावों का ह्रदय - थाल लिए
विरव समर्पण कर मनुहारा
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं
मैं अलबेली हार न मानूं
द्वार पड़ी बस तुझे पुकारूं
इक झलक पाने के लिए
अब तो अपना मान भी वारा
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं
मैं विरहिणी आस न छोडूं
कर तो रही हूँ सारा जतन
रूठे हो क्यूँ मेरे प्रियतम
क्यूँ तुमने है मुझे नाकारा
पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं .
मैं यहीं रहूंगी...तब तक
ReplyDeleteजब तक तुम खोल न दो द्वार
बस यही आस बनी रहे उसका द्वार तो सदा खुला है....... ज़रूर हमारी ही दृष्टि में दोष होता है जो हमे द्वार बंद नज़र आता है......वो तो चारो तरफ से हमे घेरे हुए है......बस हमारी आँख खुलने की ही देर है..........अमृता जी इस मुकम्मल पोस्ट के लिए आपको लगातार तीसरी बार हैट्स ऑफ |
ReplyDeleteविरह की गहरी संवेदना .... अद्भुत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल एहसासपूर्ण रचना ..!
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पे आपका स्वागत है ..!
अमृता जी,बड़े निर्मोही हैं आपके प्रियतम
ReplyDeleteकरती रहिएगा दिल से जतन.
खुद ही आ जायेंगें प्रियतम एक दिन.
आप अलबेली के प्रेम में वे भी तन्मय हैं जी.
कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना ....
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Sundar bhavavyakti...
ReplyDeleteDwar khulne tak khade rehne wali baat chu gayi...sundar
www.poeticprakash.com
पुष्प , अर्घ सब ही चढा दिए ... अब तो ज़िद है की द्वार तो खुलने ही चाहिए ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर भावनाओं से पिरोयी इस प्रार्थना को सुनकर तो द्वार बंद रह ही नहीं सकता... बधाई!
ReplyDeleteआदरणीय अमृता जी,
ReplyDeleteआपकी रचनाएं अलग ही लोक में ले जाती हैं...
अनमोल प्रस्तुति...
सादर बधाई...
आस लगाये रखियेगा,
ReplyDeleteआँख बिछाये रखियेगा,
प्रियतम वापस आ जायेंगे,
प्यास बनाये रखियेगा।
हठ से जीता सब कुछ .. एक प्रियतम के प्रेम के सिवा..
ReplyDeleteबहुत भाव से लिखी गयी भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteप्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
वाह, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
भावपूर्ण रचना.....सुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteआज तो आपने जैसे मेरे ह्रदय की बात कह दी…………प्रेम पुष्प अर्पित करती हूँ बस इसके सिवा कहो और क्या अर्पण करूँ सांवरे।
ReplyDeleteविकलता से भरी गहरी आध्यात्मिक अनुभूति भी जगाती है यह भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteइतनी देर आमतौर पर लगाते नहीं वो ....
ReplyDeleteकुछ बात होगी ... कुछ वो भी इंतज़ार का सुख लेना चाह रहे होंगे !
सोचा कि कोई दो पंक्तियाँ select कर के कुछ लिखूं
ReplyDeleteलेकिन आपने असमर्थ कर दिया हर जगह..किसी एक को चुनुं तो दूसरी के साथ नाइंसाफी होगी...
सारी ही अपने आप में पूर्ण और सुन्दर हैं
बहुत ही खूबसूरत और कोमल एहसास हैं ..
ReplyDeleteअमर प्रेम के नाम सुन्दर समर्पण-गीत...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण ..ढंग से लिखा है
ReplyDeleteआस हठपूर्वक डटा रहे!
ReplyDeleteप्रेम का समर्पण और प्रेम का हठ द्वार को तोड़ लेगा. सुंदर कविता.
ReplyDeletebhaavpurn rachna....
ReplyDeleteजब उपरवाला एक दरवाज़ा बंद कर देता है तो दूसरा खोल देता है...गलत दरवाजे पर ज्यादा देर प्रयास नहीं करना चाहिए...नया दरवाज़ा तलाश लेना चाहिए...आपकी रचना ने प्रेरित किया ये सब लिखने को...
ReplyDeleteबडा संगदिल है जी वो तो....
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण |
ReplyDeleteआशा
विरहिणी की वेदना का सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteगहरे भाव....
ReplyDeleteउम्मीद का दामन कभी न छोडें.....
intzar to karna hi hoga......
ReplyDeleteप्रेम रस में डूबी हुई , बहुत ही प्यारी कविता .
ReplyDeleteदिल से बधायी .
sundar bhavabhivyakti
ReplyDelete"मैं अलबेली हार न मानूँ .....पर द्वार तुम्हारा खुला नहीं!"
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं।
सादर
विरह भारी रचना ...सशक्त लेखनी
ReplyDeleteवेदना की भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन
ReplyDeleteप्रेम की राह में ...उन कछु और ही ठानी ...मधुकर प्रीत किये पछितानी ...याद आ रहा है ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना ...अमृता जी ....!!
सुन्दर भावपूर्ण रचना !! आस न छोड़ने की बात कहके आपने कितनों की हिम्मत बढ़ा दी है.
ReplyDeleteअम्रता जी नमस्कार,भाव पूर्ण रचना्।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पोस्ट बधाई...
ReplyDeleteनई पोस्ट में स्वागत है
Amrita,
ReplyDelete4 KAVITAYEIN PARHI. SARDI KAA PARH KAR AANKHON KE SAAMNE CHALCHITRA AA JAATAA HAI SARDI KAA. YEH KAVITA SE LAGTAA HAI KI MEERA KRISHAN SE ULHAANAA KAR RAHI HAI KI DWAR KYOON NAHI KHOLAA.
Take care
इस्ट के लिए कोई द्वार नहीं सिर्फ जूनून j
ReplyDeleteऔर दीवानगी तबतक जबतक वह हो नहीं जाना है.राधा या कृष्ण एक दुसरे में समाहित नहीं हो जाते .द्वार तो अपने ही विचारों से निर्मित स्व का बंधन है.गहन संकल्प से ही समर्पण और पर्यवसान संभव .
फिर भी यह कविता उस परम चैतन्य की और इंगित करती हुई और उस परम प्यार को पाने की इच्छा को रह देती हुई मानव मात्र को सन्देश दे रही है .मानव आजीवन प्यार के उसी आनंद को पाने के लिए जीवन भर इसी सिमित में उस असीमित को खोजते रह जाते हैं .आपके हम आभारी है की आपने उस और इंगित तो कार रही हैं.
पर कितने देर कोई बैठा रहे किसी के इंतज़ार में, न खुले द्वार...आगे तो बढ़ना ही है..:)
ReplyDeleteI likewise think so , perfectly written post!
ReplyDeleteFrom everything is canvas
Amrita, kshamaprarthi hun...mahino ke baad neend khuli...Kumbhkaran ki neend thi na jaane kab tak besudh para raha....kuch mahine ast tha...kuch mahine vyast tha...aur shayad khud se trast bhi...
ReplyDeletebeech me kayi baar man kiya ki khud ko fir se khojun....par nakab ke peeche ka charitra jyada balwan ho gaya tha....apne aap ko punarjeewit karne ki koshish me fir aa khara hua hun yahan...
Itni samvedan sheel pranay yachna maine virle hi dekhi hai...bhala aisi rachna ko padh kar apna mantavya kaise na deta....
Bedna jab vandwar sajati...to fir kaun sa priyatam hai jo rootha rah sakta...saanso ki ved dhwani mukharit ho chuki....use ansuni nahi kar sakta...kitna bhi nirmohi kyun na ho ...
Bahut achha laga...koshish karunga ki saari padh lun aapki rachna...idhar likh bhi na paaya...khud ko paane ki koshish kar raha hun...aapki har rachna padh pahle mantavya doonga...