जरा देखो तो ! ये अचरज
कहीं ठहरा तो नहीं है सूरज
मौन अँधियारे के उस छोर पर
सुन्दर सी सुबह लाने के लिए
अहर्निश,अहैतुक,अक्षय उर्जा को
अहो ! तुममें भर जाने के लिए
सपनों की गहरी सी नींद में
द्वार - दरवाजे सब बंद किये
और करवट बदल - बदल कर
सोया है कौन , उसे जगाओ
कल्पनाओं की छद्म नगरी में
चुम्बकीय मायावी महल को
हीरे - जवाहरातों से जड़ने में
खोया है कौन , उसे जगाओ
बंदी बन बाँगुर में फँसकर
बुद्धि पर चढ़ाए मोटा प्लस्तर
आँखों में स्वयं कील गड़ाकर
रोया है कौन , उसे जगाओ
देखो असंख्य फूल खिल रहे है
अनगिनत खग चहक रहे हैं
निज को दुःख की लड़ियों में
पिरोया है कौन, उसे जगाओ
अब तो जागो ! जाग भी जाओ
आसमानी मन पर सूरज उगाओ
परोक्ष मार्ग से आती पुकार
ये जीवन है अनमोल उपहार
कण - कण का ऋण चुकाकर
कर लो अपनी जय - जयकार.
Behtareen, Adbhut...kya khoob shabd chayan hai
ReplyDeleteek sampoorn kavita..bhav, alankar, pravah benamoon
bahut pasand aayi, dhanyavad
www.poeticprakash.com
आपका यह जागरण नाद अपना प्रभाव अवश्य छोड़ेगा।
ReplyDeleteआशा का संचार करती.......जागने का सन्देश देती ये पोस्ट बेजोड़ और लाजवाब है.......हैट्स ऑफ इसके लिए |
ReplyDeleteआँखों में स्वयं कील गड़ा कर
ReplyDeleteरोया है कौन, उसे जगाओ
अंतर्मन से आती विवेक की स्वर लहरियों को कविता में खूबसूरती के साथ बाँधा गया है. वाह!!
bahut sundar prastuti..
ReplyDeleteअमृता सच में आपके पास शब्दों का भंडार है। छोटे छोटे शब्दों का जिस तरह आप इस्तेमाल कर माला गूथथीं हैं, जितनी भी तारीफ हो, कम है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,
शुभकामनाएं
सोये हुए को जगाया जा सकता है ... जागते हुए को कौन जगायेगा ... अच्छी प्रस्तुति ..गहन चिंतन
ReplyDeleteवाह ! आसमानी मन पर सूरज उगने ही वाला है...प्रभात होने ही वाला है..अब न सोयेंगे न ही सोने देंगे.. अब न रोयेंगे न ही रोने देंगे...बहुत सुंदर आवाहन करती कविता...आभार!
ReplyDeleteअनुपम शब्दों का संगम ...
ReplyDeleteकल 16/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।
धन्यवाद!
वाह ! मन के आसमानी पटल पर सूरज का आगमन होने ही वाला है... प्रभात में अब देर नहीं...बहुत सो लिये और बहुत रो लिये अब न सोयेंगे न सोने ही देंगे और...अब न रोयेंगे न रोने ही दें गे..
ReplyDeleteaasmani mann per koi suraj ugaao ... aashawadi drishtikon
ReplyDeleteबहुत अच्छे विचारों को व्यक्त किया है आपने ।
ReplyDeleteभावपूर्ण कृति !
जागना और सोना किसे कहते हैं , जरा ये भी बता देती | वैसे आप सच में बहुत ही अच्छा लिखती हैं | एक टीस रह जाती है |
ReplyDeleteबहुत प्रेरक और सकारात्मक सोच...बहुत भावमयी..
ReplyDeleteअब तो जागो... जाग भी जाओ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.....
सादर बधाई...
shandar rachna...
ReplyDeletebahut sakaratmak vichar achche gahan bhaav.
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया है आपने । आपके पोस्ट पर आना अच्छा लगा । मेर पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteकवि तो कल्पनाओं की छद्मनगरी में ही सूरज को देखता है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
अब तो जागो , जग भी जाओ
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक और सार्थक विचार हैं
प्रभावशाली कविता ...सुंदर आव्हान
ReplyDeleteप्रेरक!
ReplyDeleteहृदय क्षितिज पर उदित होता ज्ञान का सूर्य...
सुंदर कविता!
जब जागो...तभी सवेरा...
ReplyDeleteप्रेरक और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteउम्मीद भरी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर....
सुबह सुबह इस रचना को पढ़ मन प्रफुल्लित हो उत्साह से भर गया . धन्यवाद .
ReplyDeleteसदा जी की हलचल,कभी न होगी निष्फल
ReplyDeleteसोतों हों को आप निश्चित ही जगा देंगीं
जगा कर उन्हें आप 'तन्मय' भी बना देंगीं.
जग रे जग रे सब दुनिया जागी, जग रे जग रे जग रे
जय हो जय हो ,अमृता जी की जय हो.
सदा जी की जय हो.
बहुत ही प्रेरक कविता।
ReplyDeleteसादर
अब तो जागो ! जाग भी जाओ
ReplyDeleteआसमानी मन पर सूरज उगाओ
भावपूर्ण , सुन्दर रचना...
शब्द चयन और भाव दोनों अप्रतिम ....
'kann-kann ka rin'behad sunder.....
ReplyDeleteNICE POETRY
ReplyDeleteआशा जगाती....जागने का सुन्दर सन्देश देती लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आशावादी दृष्टि की कविता -शब्द संयोजन का तो कोई जवाब ही नहीं !
ReplyDeleteलोकतंत्र के चौथे खम्बे पर अपने विचारों से अवगत कराएँ ।
ReplyDeleteऔचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
राग तोड़ी गा दी आपने ....इतनी मुश्किल राग जब सहजता से गा दी ...
ReplyDeleteकोई सोया हुआ कैसे रह सकता है ....!!हम तो क्या हमारे भाग्य भी जाग गए ....
धन्य हुए आपकी कविता पढ़कर .....
बहुत सुंदर ...
बंदी बन बाँगुर में फँसकर
ReplyDeleteबुद्धि पर चढ़ाए मोटा प्लस्तर
आँखों में स्वयं कील गड़ाकर
रोया है कौन , उसे जगाओ....
YE AAPKA KAAM HAI ..AUR KAUN KISKO JAGA SAKTA HAI
PRANAAM !
very beautiful poem
ReplyDeleteसुंदर शब्दों के संयोजन से रची रचना अच्छी लगी आभार
ReplyDeleteकर लो अपनी जय-जयकार।
ReplyDelete..सुदंर दर्शन पिरोया है आपने इस कविता में। ..वाह!
बंदी बांगुर में .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव संयोजन
समय मिले तो मेरे एक नए ब्लाग "रोजनामचा" को देखें। कोशिश है कि रोज की एक बड़ी खबर जो कहीं अछूती रह जाती है, उससे आपको अवगत कराया जा सके।
ReplyDeletehttp://dailyreportsonline.blogspot.com
आपकी कविता पढकर मुझे अच्छा लगा रचना पसंद आई..
ReplyDeleteनए पोस्ट पर स्वागत है ,..
वह अमृता जी बहु अच्छा लिखती है आप
ReplyDeleteaashaon se bhari sundar rachna...bahut acha likha aapne..
ReplyDeleteबसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाये |
माँ शारदे को समर्पित मेरे ब्लॉग में १००वीं पोस्ट पर जरुर पधारें |
हे ज्ञान की देवी शारदे