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Sunday, October 30, 2011

शून्य दिमाग़ में

शून्य दिमाग़ में
अचानक दौड़ पड़ता है
रेस लगाता घोड़ा
पछाड़ खाकर
गिरता है 
धड़ाम !
शून्य दिमाग में
उग आती है
हरी-हरी घासें 
कहीं से गाय बकरी
आकर चरने लगती हैं
कर देती हैं 
सपाट !
शून्य दिमाग़ में
रेंग पड़ते हैं
असंख्य कीड़े
मुँह मारते , स्वाद लेते
चूसते हुए कर जाते
सड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
अंडे तोड़कर
निकलते हैं मेढ़क
उड़ने की चाह में
फुदकते हुए 
गिरते हैं उसी में
छपाक !
शून्य दिमाग़ में  
प्रेम करते हैं
शेर और शेरनी
एक-दूसरे को
काटते-नोचते हुए
गूँज उठती है उनकी
दहाड़ !
शून्य दिमाग़ में
टकराते हैं बादल
नसें चटकती हैं
बीजली चमक कर
गिरती हैं 
तड़ाक !
शून्य दिमाग़ में
उफनता है समंदर
उठते लहरों को
एक-एक कर
अपने में ही 
कर जाता है
गड़ाक !
 

51 comments:

  1. शून्य दिमाग में सब ओर से विचार घुस आने को उत्सुक रहते हैं।

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  2. कविता के तौर पर बहुत सुंदर है लोकिन अहसास के तौर पर कँपकपी दे गया यह अहसास.

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  3. शून्य दिमाग में
    प्रेम करते हैं
    शेर और शेरनी

    बाप रे बाप!
    क्या शून्य दिमाग सचमुच में है अभिशाप.
    आपने तो सचमुच मेरा बढ़ा दिया है ताप.

    आपके शब्द 'धडाम','सपाट','सड़ाक'
    'छपाक','दहाड़','तडाक','गडाक' तो
    गजब के हैं जी.लगता है हर एक शब्द
    'टन टन' वजन का हो,जो मेरे शून्य दिमाग
    में रह रह कर विस्फोट कर रहा है'फटाक'.
    दीपावली की अच्छी आतिशबाजी करा दी है आपने.

    शानदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई,अमृता जी.

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  4. शून्य दिमाग़ में
    उफनता है समंदर
    उठते लहरों को
    एक-एक कर
    अपने में ही
    कर जाता है
    गड़ाक !

    शून्य दिमाग की यह गड़ाक आपको ना जाने कहाँ ले जाए ........दिमाग का क्या बस सोचना है इसे .....बेहतर रचना ...!

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  5. बहुत खूब लिखा है आपने.
    अपार संभावनाएं है शून्य दिमाग में .
    क्योंकि शून्य ही तो आगाज़ है.

    शून्य दिमाग में
    कभी गिनती हो जाती है शुरू,
    एक दो तीन चार,
    शून्य दिमाग में,
    खुलने लगते हैं
    कभी सपनों के द्वार,
    शून्य दिमाग
    कभी हो जाता है,
    बिलकुल ही शून्य,
    क्योंकि शून्य में
    नज़र आ जाते हो
    तुम .

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  6. सचमुच शून्य दिमाग में कितनी हलचल रहती है...

    अच्छी प्रस्तुति!!

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  7. शून्य पर बहुत अच्छा लिखा है .

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  8. दिमाग किसी भी समुद्र से बहुत बडा है--- विशाल ब्राह्मन्ड जितना।शून्य से ही तो हमे बहुत कुछ सीखने विचार करने को मिलता है।ाच्छी रचना।

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  9. Very true...
    Nicely written...

    www.poeticprakash.com

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  10. शून्य दिमाग में पूरी सृष्टि धमाचौकड़ी मचाती है ...

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  11. बहुत भयंकर है शून्य दिमाग .. होता तो बहुत कुछ है शून्य दिमाग में पर ऐसे बिम्ब नहीं सूझे कभी :)

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  12. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 31-10-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  13. कभी-कभी मस्तिष्क का सूनापन खूब शोरगुल करता है।
    अच्छी कविता।

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  14. शुन्‍य दिमाग सभी समस्‍याओं की जड है !!

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  15. इसी लिए तो कहते है,
    खाली दिमाग शैतान का,
    कुछ न कुछ करते रहना चाहिए,
    नयी सोच की रचना सुंदर पोस्ट,...बधाई

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  16. आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  17. shi amrita ji shuny dimag me naa jaane kya-kya chalta rahta hai...

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  18. शून्य दिमाग में उमड़ता है कितना कुछ!

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  19. अद्भुत लेखन....
    सादर...

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  20. सुन्दर प्रस्तुति, बधाई........

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  21. शून्य दिमाग में ही तो प्रवेश हो सकता है : विचार

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  22. वाह-शून्य पर अच्छी रचना.

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  23. शून्य............सब खाली खाली सा .......विचार की धमाचौकड़ी .......बहुत खूबसूरती से लिख डाला है आपने

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  24. शून्य दिमाग में .. अच्छी रचना.

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  25. सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.

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  26. शून्‍य दिमाग में उमडते विचारों का बेहतर प्रस्‍तुतिकरण।
    आभार।

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  27. 'फटाक'. 'फटाक' होते होते
    मेरे शून्य दिमाग में 'ऊं' का गुंजन हो उठा.
    गुंजन पर जब ध्यान किया
    तो मैं 'तन्मय' हो गया जी.
    तन्मय मे अमृत का अहसास हुआ
    तो मुझे ज्ञात हुआ
    कि 'अमृता तन्मय'यूँ ही नही हुआ जाता.
    'शून्य दिमाग' के बिना.

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  28. शुन्य को लेकर आपने बहुत सुन्दर कविता लिखा है ! बहुत बहुत बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  29. Wonderful Post once again... congratulation

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  30. शून्य दिमाग में भी इतना कुछ चलता रहेगा अमृता जी तो फिर उसे शून्य कहना क्या उचित होगा ? :-)

    जहाँ तक मुझे लगता है शून्य का मतलब तो स्थिर है .............खैर नयी तरह की नयी पोस्ट.........पसंद आई|

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  31. शून्य दिमाग नहीं होता तो इतने विस्फोट -गडाक सटाक तड़ाक आदि को संभाल नहीं पाता ... शुन्य्पन में गुंजाइश थी मेंढको को चलने के लिए समुन्दर को मचलने के लिए ... और उन अनुभूतियों को उस शून्य दिमाग ने कितनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ कविता रूप में प्रस्तुत करा दिया .. बहुत अच्छी लगी ये शून्य दिमाग की कथा

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  32. शून्य दिमाग में जब इतनी हलचल तो जाग्रत दिमाग का क्या हाल होगा ....बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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  33. Bahut hi umda rachna.. Bilkul alag se bhi alag tarah ki rachna.. Aabhar...

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  34. बेहतरीन प्रस्तुती....

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  35. शून्य दिमाग भी क्या क्या गुल खिलाता है :)

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  36. सचमुच शून्य दिमाग में बड़ी हलचल होती रहती है...जाने क्या-क्या चलता रहता है...
    सुन्दर रचना...

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  37. शून्य दिमाग में तो क्या कुछ हो गया ...
    बेहतरीन

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  38. गहन भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति देती प्रवाहमयी रचना ..

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  39. शून्य दिमाग एमिन क्या क्या हो सकता है ... उन्दा रचना है ...

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  40. 0 par apko milta hai
    10/10
    jai hind jai bharat

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  41. जो तुमने कहा और फ़ैज़ ने जो फ़रमाया है,
    सब माया है, सब माया है (इब्ने इंशा)

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  42. शून्य दिमाग अब तो शून्यता से उबर गया होगा?:) बड़ी हाहाकारी कविता !

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  43. मेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...

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  44. वाह ....बहुत खूब ।

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  45. अमृता तन्मय जी बहुत सही शून्य दिमाग में बहुत कुछ होता है बहुत सुन्दर कल्पना आप की
    खाली दिमाग तो शैतान का घर भी कहा गया है

    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    अपना समर्थन और सुझाव हमें भी देती रहें

    शून्य दिमाग़ में
    टकराते हैं बादल
    नसें चटकती हैं
    बीजली चमक कर
    गिरती हैं
    तड़ाक !
    शून्य दिमाग़ में
    उफनता है समंदर
    उठते लहरों को
    एक-एक कर
    अपने में ही
    कर जाता है
    गड़ाक !

    ReplyDelete