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Sunday, December 13, 2020

हजारों-लाखों चुंबन है .....

 मेरे रोएं-रोएं पर तो तुम्हारा ही वो हजारों-लाखों चुंबन है 

मेरी सांस-सांस पर सुमरनी-सा कसा तेरा ही आलिंगन है 

अब कैसे बताऊं कि तुम उपहार में ही तो मिले हो हमको 

औ' हमारी नस-नस में दौड़ रहा तुम्हारा छिन-छिन संगम है 


हाँ! अब तो चौंकती भी नहीं किसी भी अनजान आहट पर 

लगाम लिए फिरती हूँ पल-पल की उस विरही घबराहट पर

न जानूं कि कैसे अपने-आप उछलती लहरें सरि तल हो गई 

हाय! चकित हूँ ,विस्मित हूँ ,बहकी हुई सी इस बदलाहट पर 

 

सारी छूटी सखियाँ सब अब मुझे, बहुत ही भाने लगी हैं 

हिल-मिल कर हिय-पिय की वो बतिया बतियाने लगी हैं

कैसे कहूं कि मेरी सारी समझ भरी भारी-भरकम बातों पे

सब मिल पेट पकड़-पकड़कर जोर-जोर से ठठाने लगी हैं 

   

 कहती- हमने तो देखा है तेरे हर एक उस पागलपन को

 जल-जल कर जल के लिए मछली की चिर तड़पन को 

 कैसे हम सब तब तनिक भी न भाती सुहाती थी तुझको

 औ' तेरी अंखियांँ तो खोजती थी बस अपने ही प्रीतम को

     

ना जाने किससे , कब और कैसे लग गई तुझे ये प्रेम अगन

सब कुछ भूल-भाल कर तू तो बस प्रीतम में हो गई मगन

पगली ! तब तू बस गली-गली ऐसे मारी-मारी फिरती थी

छोड़-छाड़ कर सब मान-मर्यादा और लोक-लाज का सरम


हम समझाती थी ऐसे मत हो बावली , कुछ तो धीरज धर

प्रीतम तेरा है तेरा ही रहेगा , तिल-तिल कर तू यूं न मर

मिथ्या बोल तब तो थे न हमारे अब जाकर तुमने जाना है

माना कि भूल थी तेरी पर तू क्षमा मांग और कान पकड़


उन्हें कैसे बताऊं कि प्रीत ने ही मुझे तो स्नेही बना दिया

तुम्हारा आँखो से ओझल हो-हो जाना संदेही बना दिया

पर अब संभोगी संगम के चुंबनों और आलिंगनों ने मुझे

रोएं-रोएं को चिर तृप्ति देकर दीपित दिव्यदेही बना दिया


कभी विदेही तो कभी सैदेही मेरा अजब-गजब सा होना है

प्रीतम को पाया तो ही पाया कि क्या पाना है क्या खोना है

प्रपंची अँखियो से अब सखियों में भी प्रीतम ही दिखता है 

उन्हें कैसे बताऊं कि अब बस हँसना है मुझे न कि रोना है .


18 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. अन्तर मन के कोमल भावों को बहुत ही सहज व मधुर रूप में प्रस्तुत किया है आपने । बहुत सुन्दर सराहनीय ।

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  3. प्रेमपगी बेहतरीन रचना।

    हाँ! अब तो चौंकती भी नहीं किसी भी अनजान आहट पर,
    लगाम लिए फिरती हूँ पल-पल की उस विरही घबराहट पर,
    न जानूं कि कैसे अपने-आप उछलती लहरें सरि तल हो गई,
    हाय! चकित हूँ ,विस्मित हूँ ,बहकी हुई सी इस बदलाहट पर....

    क्या बात है 👌👌👌👌👌

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  4. कभी विदेही तो कभी सैदेही मेरा अजब-गजब सा होना है

    प्रीतम को पाया तो ही पाया कि क्या पाना है क्या खोना है

    प्रपंची अँखियो से अब सखियों में भी प्रीतम ही दिखता है

    उन्हें कैसे बताऊं कि अब बस हँसना है मुझे न कि रोना है .
    ....बहुत ही मनोहारी प्रेमगीत..।खूबसूरत सृजन..।

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  5. कभी विदेही तो कभी सैदेही मेरा अजब-गजब सा होना है

    प्रीतम को पाया तो ही पाया कि क्या पाना है क्या खोना है

    प्रपंची अँखियो से अब सखियों में भी प्रीतम ही दिखता है

    उन्हें कैसे बताऊं कि अब बस हँसना है मुझे न कि रोना है .
    बहुत बढ़िया।

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  6. श्रृंगार रस की उम्मदा रचना।

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  7. श्रृंगार रस का अनूठा सृजन ।

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  8. अद्भुत व भावभीनी भावाभिव्यक्ति.. श्रृंगार रस से सम्पन्न अभिनव रचना ।

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  9. श्रृंगार रस से ओतप्रोत, छंदबद्ध कविता मुग्ध करती है - - सुन्दर सृष्टि - - नमन सह।

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  10. अद्भुत।
    लाजवाब।
    'जल जल कर जल के लिए मछली की चिर तड़फन को'

    वाह वाह वाह।

    नई रचना- समानता

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  11. पहले दूर जाना फिर सहज ही निकट आना सबके अथवा तो पहले खोजना फिर सब जगह उसे ही पा लेना दोनों एक ही बात है, बहुत बहुत बधाई !

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  12. वाह!लाजवाब सराहनीय सृजन।

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  13. आपकी लेखन शैली और विचारों के मेल से उत्पन्न
    रचनात्मकता अनूठी है।
    बहुत सुंदर रचना।
    सादर।

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  14. वाह...वाह...वाह...!!!

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  15. मन कहता है इस अंतरंगता पर तू बहिरंग मत होना। चुप रहना, बस देखना।

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  16. शायद तभी तो दिनकर ने कहा था.....लोहे के पेड़ हरे होंगे तू गीत प्रेम के जाता चल.

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