अभी- अभी पूर्णिमा का चांद
आकर मुझसे मिला है
अभी- अभी मेरे भी मौन अँधियारे में
मेरा भी चांद खिला है
आज गगन में फूट रहा है कोई अमृत गागर
मेरे अंतर्गगन में भी फैल गया किरणों का सागर
मधुमयी चांदनी ज्यों बरस रही है
मुझसे भी मेरी ज्योति परस रही है
चकोर- चकोरी एकनिष्ठ हो छुप- छुपकर दहक रहे हैं
वहीं नीरंजन बादल कहीं- कहीं चुपचाप थिरक रहे हैं
मुखर हो रही है मन बांसुरी , शब्द- शब्द झरझरा रहे हैं
भाव- भाव अमर रस को पी- पीकर अनंत प्यास बुझा रहे हैं
सोलह कलाओं से सजी आसक्तियां निखरने लगी है
इच्छाऐं रससिक्त होकर जहां- तहां बिखरने लगी हैं
जैसे ये महत क्षण हो अपनापन खोने का
हर्षोन्माद में भींगने और भिंगोने का
जैसे शीतल सौंदर्य के सुगंध को पहली बार कोई मनुहारा हो
सारी रात सांस रोककर कोई चांद को निर्निमेष निहारा हो
जैसे अभी- अभी मिला कोई नवल वय है
लग रहा है कि मैं सबमें और सब मुझमें ही तन्मय है
बस उत्फुल्ल चांद है , उद्दीप्त चांदनी है , उद्भूत पूर्णिमा है
और अमृत में तन्मय हो रही बहिर्अंतस की उन्मत्त अमा है .
*** देव दीपावली एवं कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ***
शुभकामनायें आपके लिये भी। कोरोना से ध्यान भटकाने के लिये अच्छा है चांद ।
ReplyDeleteसोलह कलाओं से सजी आसक्तियां निखरने लगी है
ReplyDeleteइच्छाऐं रससिक्त होकर जहां- तहां बिखरने लगी हैं...
ये पंक्तियाँ गजब हैं। सुंदर रचना।
बहुत ही सुंदर सराहनीय हमेशा की तरह।
ReplyDeleteसादर
आपकी कविताई की यह शैली कहीं और नहीं देखी. छायावादी कविता में भी नहीं. बहुत सुंदर.
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 2 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत मधुर रचना...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !!!
मंत्रमुग्ध करती हुई सरस रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
ReplyDeleteबेहतरीन मनविभोर करने वाली रचना
ReplyDeleteचाँदनी बिखरी है बाहर और अन्तस् में, कार्तिक पूर्णिमा पर सुंदर भाव आड़ोलन !
ReplyDeleteकहां रहने देती है चन्द्रप्रभा संवेदनशील मानव को कायिक! इसे देखने के बाद वास्तविक जग-जीवन में लौटना कठिन होता है। शुभकामनाएं आपको भी सुंदर गीत, अनुभूति और चन्द्रज्योति के अमृत में भीतर-बाहर तन्मय होने के लिए।
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteदिल को छूती सुंदर रचना।
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ReplyDeleteकविता का यह प्रवाह पुरानी लेखनी की याद दिला रहा है. एक पाठक को मुदितमना जाने योग्य।
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