काफी सुना था हमने आपकी बड़ी-बड़ी बातों को
खुशनसीबी है कि देख लिया आपकी औकातों को
कैसे आप इतना बड़ा-बड़ा हवा महल यूँ बना लेते हैं
और खुद को ही शहंशाहों के भी शहंशाह बता देते हैं
माना कि ये सिकंदरापन होना कुछ हद तक सही है
पर आप में सिकंदर वाली कोई एकबात भी नहीं है
कैसे आप बातों में ही सोने के घोड़ों को दौड़ा देते हैं
और सारी सल्तनतों को यूँ आपस में लड़वा देते हैं
आपके दरबार में अनारकलियों का क्या जलवा है
अकबर भी सलीम मियां का चाटते रहते तलवा है
कैसे आप ख्वाबों, ख्यालों की दुनिया बसा लेते हैं
और खट्टे अंगूरों को भी देख- देख कर मजा लेते हैं
कभी-कभार खुद को इंसान की तरह भी दिखलाइए
ये नाजुक हलक है हमारा ऐसे हड्डियों को ना फँसाइये
कैसे आप सरेआम नुमाइश कर अपना कद बढ़ा देते हैं
और अपने मुखौटों पर भी असलियत को यूँ चढ़ा लेते हैं .
वाह लजवाब ।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ! असलियत को उजागर करती पंक्तियाँ..।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 24 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. तंज की धार चुभती है-
ReplyDeleteकैसे आप सरेआम नुमाइश कर अपना कद बढ़ा देते हैं
और अपने मुखौटों पर भी असलियत को यूँ चढ़ा लेते हैं
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा मंगलवार ( 24-11-2020) को "विश्वास, प्रेम, साहस हैं जीवन के साथी मेरे ।" (चर्चा अंक- 3895) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
वाह ! एक तीर से कई शिकार कर लेती हैं आप, तंज भरी भाषा और तीखा व्यंग्य, बहुत खूब !
ReplyDeleteSahi shot maara hai, bass beech mein koi galat catch na pakad le
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteक्या बात
लाजवाब
सधा लेखन... उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteकैसे आप सरेआम नुमाइश कर अपना कद बढ़ा देते हैं
ReplyDeleteऔर अपने मुखौटों पर भी असलियत को यूँ चढ़ा लेते हैं
वाह!!!!
क्या बात...
बहुत ही धारदार... लाजवाब ब्यंग।
माना कि ये सिकंदरापन होना कुछ हद तक सही है
ReplyDeleteपर आप में सिकंदर वाली कोई एकबात भी नहीं है
कैसे आप बातों में ही सोने के घोड़ों को दौड़ा देते हैं
और सारी सल्तनतों को यूँ आपस में लड़वा देते हैं..
वाह!लाजवाब सृजन।
कैसे आप सरेआम नुमाइश कर अपना कद बढ़ा देते हैं
ReplyDeleteऔर अपने मुखौटों पर भी असलियत को यूँ चढ़ा लेते हैं .प्रभावशाली लेखन - - सामयिक विषयों पर तीक्ष्ण नज़र।
सशक्त लेखन, सुन्दर सृजन !
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है. सामायिक लेखन. बधाई.
ReplyDeleteकैसे आप बातों में ही सोने के घोड़ों को दौड़ा देते हैं
ReplyDeleteऔर सारी सल्तनतों को यूँ आपस में लड़वा देते हैं
एक एक पंक्ति गहन अर्थ रखती है। बेहतरीन रचना । सस्नेह।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना।।
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