आनंद का सहज स्फूर्त पुलक उठ कर
व्याप्त हो गया है लोक-लोकांत में
विराट अस्तित्व आज फिर से
श्रृंगारित हुआ सृष्टि के दिग-दिगांत में
निज अनुभूतियाँ फिर से प्राण पाकर
प्रकाशधार में बलक कर बह रही है
चौंधियायी आँखों से अंधकार की
कृतज्ञता झुक कर कुछ कह रही है
हर कान में फुसफुसा रहा है हर हृदय
सुन प्रणय की इस मधुर मनुहार को
अपने-अपने संचित उत्साह से सफल करें
कल के विफलता की हर एक पुकार को
आओ इस दीपोत्सव में सब मिलकर
अपने करूण दीपों को फिर से जलायें
जग की विषमता को आत्मसात करके
हर कसकते घावों को सदयता से सहलायें .
*** दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ***
वाह।
ReplyDeleteदीपोत्सव की मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप सभी को पावन दिवाली की शुभकामनाएं......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
15/11/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
शुभ दीपावली🌻
ReplyDeleteआओ दीप जलाएं ... सुंदर आवाहन !
ReplyDelete"अपने करूण दीपों को फिर से जलायें"
ReplyDeleteदीपावली पर यह बात केवल अमृता ने कही है. यह दीप श्रंखला का नव अर्थ है.
आओ इस दीपोत्सव में सब मिलकर
ReplyDeleteअपने करूण दीपों को फिर से जलायें
जग की विषमता को आत्मसात करके
हर कसकते घावों को सदयता से सहलायें .
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.. बधाई व शुभकामनाएँ.
निज अनुभूतियाँ फिर से प्राण पाकर
ReplyDeleteप्रकाशधार में बलक कर बह रही है..।सुंदर अभिव्यक्ति..।
दीपोत्सव के आलोक में नव भावभूमि विकसित हुई। इसमें बलखा रहे आनन्द,बलकता,ऊर्जा,करुणा और अन्य अनुभूतियाँ किंचित अति विचारणीय हैं। इनसे बरबस सहानुभति होती है।
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