रात बीत गई
तब पिया जी घर आए
उनसे अब हम क्या बोले , हम क्या बतियाये
जब यौवन ज्वाला की छटपटाहट में झुलस रही थी
पिया जी के एक आहट के लिए तरस रही थी
तब पिया जी ने एक बार भी न हमें निरखा
उल्टे आँखों में भर दिया सावन की बरखा
सूनी रह गई सजी- सँवरी सेज हमारी
क्या कहूँ कि कैसे बीती हर घड़ी हमपर भारी
कितनी आस से भरकर आई थी पिया जी के द्वारे
पर जब- जब हमने चाहा, वो हुए न हमारे
अपने रूप पर स्वयं ही इठलाती , इतराती रही
प्रेम- दान पाने को अपनी मृतिका ही लजवाती रही
अब तो सूरज सिर पर नाच रहा है
दिनचर्या व्यस्तता के कथा को
बढा- चढ़ा कर बाँच रहा है
सास , ननद का वही घिसा- पिटा ताना
बूढ़े , बच्चों का हर दिन का नया- नया बहाना
देवर , भैंसुर की दिन- प्रतिदिन बढ़ती मनमानी
देवरानी , जेठानी की हर बात में रूसा- फुली , आनाकानी
दाई , नौकरों का अजब- गजब लीला
हाय ! चावल फिर से आज हो गया गीला
तेल- मसालों से बह रही है चटनी, तरकारी
सेहत को खुलेआम आँख मारे दुर्लभ , असाध्य बीमारी
फिर भी जीवन- मक्खन का रूक न रही मथाई
और सुख सपनों में ही रह गयी सारी मलाई
उधर पिया जी बैठे मुँह लटकाए , गाल फुलाये
रह- रह कर बस हमें ही जलाये , और अपनी चलाये
संझावती की इस बेला में थकान ले रही कमरतोड़ अँगराई
इसी आपाधापी में तो हमने सारी उमरिया गँवाई
बहुत पास से अब टेर दे रहा है निघट मरघट
हाय ! छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट
अरे ! अरे ! साँझ बीत गयी, अब तक जला नहीं दिया
रात हो रही है , फिर से रूठ कर कहीं चले गए पिया .
छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट
ReplyDeleteवाह
सुन्दर :)
वाह..!
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक प्रसंग है ये स्त्री सुलभ मन का..।आपने बहुत ख़ूब वर्णित किया है..।
ReplyDeleteवाह !! घर-गृहस्थी की आपा-धापी का यथार्थ बड़ी सादगी से वर्णित किया है आपने ..अति सुन्दर ।
ReplyDeleteकहने के पीछे बहुत कुछ अनकहा है। हमने कविता में से उसे मथ कर निकाल-समझ लिया है। टीस को कोई समझे तो!
ReplyDeleteकहने के पीछे बहुत कुछ अनकहा है। हमने कविता में से उसे मथ कर निकाल-समझ लिया है। टीस को कोई समझे तो!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteस्त्री की एकांतिकता का सादी भाषा में मार्मिक वर्णन प्रस्फुटित हुआ है.
ReplyDeleteबाकी निःशब्द.
वाह!बेहतरीन सृजन जीवन की गहनता लिए।
ReplyDeleteजब यौवन ज्वाला की छटपटाहट में झुलस रही थी
पिया जी के एक आहट के लिए तरस रही थी
तब पिया जी ने एक बार भी न हमें निरखा..कबीर जी सृजन आँखों के सामने उभर आया।
मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर
विरह को सुंदरता से आध्यात्म की ओर मोड़ता सुंदर सृजन।
ReplyDeleteनारी जीवन की सच्चाई बतलाती सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत पास से अब टेर दे रहा है निघट मरघट
ReplyDeleteहाय ! छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट
जीवन की कटु सच्चाई !
नि:शब्द करती उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteनि:शब्द करती उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteनारी के अंतर्द्वंद को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना |
ReplyDeleteकथा समग्र।
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