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Wednesday, November 18, 2020

रात बीत गई तब पिया जी घर आए ........

रात बीत गई 

तब पिया जी घर आए

उनसे अब हम क्या बोले , हम क्या बतियाये

जब यौवन ज्वाला की छटपटाहट में झुलस रही थी

पिया जी के एक आहट के लिए तरस रही थी

तब पिया जी ने एक बार भी न हमें निरखा

उल्टे आँखों में भर दिया सावन की बरखा

सूनी रह गई सजी- सँवरी सेज हमारी

क्या कहूँ कि कैसे बीती हर घड़ी हमपर भारी

कितनी आस से भरकर आई थी पिया जी के द्वारे

पर जब- जब हमने चाहा, वो हुए न हमारे

अपने रूप पर स्वयं ही इठलाती , इतराती रही

प्रेम- दान पाने को अपनी मृतिका ही लजवाती रही

अब तो सूरज सिर पर नाच रहा है

दिनचर्या व्यस्तता के कथा को

बढा- चढ़ा कर बाँच रहा है

सास , ननद का वही घिसा- पिटा ताना

बूढ़े , बच्चों का हर दिन का नया- नया बहाना

देवर , भैंसुर की दिन- प्रतिदिन बढ़ती मनमानी

देवरानी , जेठानी की हर बात में रूसा- फुली , आनाकानी

दाई , नौकरों का अजब- गजब लीला

हाय ! चावल फिर से आज हो गया गीला

तेल- मसालों से बह रही है चटनी, तरकारी

सेहत को खुलेआम आँख मारे दुर्लभ , असाध्य बीमारी

फिर भी जीवन- मक्खन का रूक न रही मथाई

और सुख सपनों में ही रह गयी सारी मलाई

उधर पिया जी बैठे मुँह लटकाए , गाल फुलाये

रह- रह कर बस हमें ही जलाये , और अपनी चलाये

संझावती की इस बेला में थकान ले रही कमरतोड़ अँगराई

इसी आपाधापी में तो हमने सारी उमरिया गँवाई

बहुत पास से अब टेर दे रहा है निघट मरघट

हाय ! छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट

अरे ! अरे ! साँझ बीत गयी, अब तक जला नहीं दिया

रात हो रही है , फिर से रूठ कर कहीं चले गए पिया . 


16 comments:

  1. छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट
    वाह
    सुन्दर :)

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  2. बहुत ही मार्मिक प्रसंग है ये स्त्री सुलभ मन का..।आपने बहुत ख़ूब वर्णित किया है..।

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  3. वाह !! घर-गृहस्थी की आपा-धापी का यथार्थ बड़ी सादगी से वर्णित किया है आपने ..अति सुन्दर ।

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  4. कहने के पीछे बहुत कुछ अनकहा है। हमने कविता में से उसे मथ कर निकाल-समझ लिया है। टीस को कोई समझे तो!

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  5. कहने के पीछे बहुत कुछ अनकहा है। हमने कविता में से उसे मथ कर निकाल-समझ लिया है। टीस को कोई समझे तो!

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. स्त्री की एकांतिकता का सादी भाषा में मार्मिक वर्णन प्रस्फुटित हुआ है.
    बाकी निःशब्द.

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  8. वाह!बेहतरीन सृजन जीवन की गहनता लिए।

    जब यौवन ज्वाला की छटपटाहट में झुलस रही थी
    पिया जी के एक आहट के लिए तरस रही थी
    तब पिया जी ने एक बार भी न हमें निरखा..कबीर जी सृजन आँखों के सामने उभर आया।
    मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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  9. विरह को सुंदरता से आध्यात्म की ओर मोड़ता सुंदर सृजन।

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  10. नारी जीवन की सच्चाई बतलाती सुंदर रचना।

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  11. बहुत पास से अब टेर दे रहा है निघट मरघट

    हाय ! छूँछा का छूँछा रह गया यह जीवन- घट

    जीवन की कटु सच्चाई !

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  12. नि:शब्द करती उत्कृष्ट रचना

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  13. नि:शब्द करती उत्कृष्ट रचना

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  14. नारी के अंतर्द्वंद को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना |

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