कंपकंपाते अधरों पर , तुमसे कहने को
कितनी  ही  बातें  हैं ,    सर्द   राते    हैं
बादल के गीतों पर ,चाँदनी थिरकती है
ओस की बूंदे , जलतरंग  सी  बजती  हैं
हवाओं की थाप से तारे झिलमिलाते हैं
कितनी   ही  बातें  हैं ,    सर्द   राते    हैं
धीरे से कोहरा अपनी चादर फैलाता  है
थरथराते वृक्ष-समूहों को  ढक जाता  है
पत्ते की ओट लिए फूल सिमट जाते हैं
कितनी  ही   बातें   हैं ,   सर्द   राते    हैं
हिलडुल कर झुरमुट कुछ में बतियाते हैं
दूबों को झुकके बसंती कहानी सुनाते  हैं
जल-बुझ कर जुगनू  कहकहा लगाते  हैं
कितनी   ही   बातें   हैं ,   सर्द   राते    हैं
थपेड़ों को थपकी में,नींद उचट जाती है
बिलों में सोई ,  जोड़ियाँ कसमसाती  हैं
नीड़ों में दुबके , पंछी  भी  जग जाते  हैं
कितनी   ही  बातें  हैं ,   सर्द    राते    हैं
ठिठुरी सी नदियाँ ,सागर में समाती  हैं
लहरों के मेले  में ,   ऐसे   खो जाती  हैं
उठता है ज्वार  और  गिरते  प्रपातें   हैं
कितनी   ही   बातें   हैं  ,   सर्द  राते   हैं
कोई नर्म  बाहों का  , घेरा  बनाता   है
गर्म पाशों में,  सर्द और उतर आता  है
घबराते, सकुचाते ,  नैन झुक जाते  हैं
कितनी  ही  बातें  हैं ,    सर्द   राते   हैं
तुमसे  कहने को  ,   जो  भी  बातें    हैं
इन अधरों  से ही ,क्यों लिपट जाते   हैं .