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Sunday, January 10, 2021

क्षणिकाएँ .......

आज कल शब्दों में          

अर्थो की अधिकता

यह बताता है कि 

हम कितने 

चतुर और चालाक

हो गए हैं .


*****


शब्दों के अर्थ

जब अनर्थ होने लगे

तो साफ है कि

बाजार ज्यादा से ज्यादा 

घातक हथियारों की 

आपूर्ति चाह रहा है .


*****


शब्द जब-तब

अपशब्दों के सहारे

शक्ति प्रदर्शन करे तो

सोची-समझी रणनीतियां

अपना दांव 

खेल चुकी होती है .


*****


शब्द जब

गणित के सूत्रों को

हल करने लगे तो

अपेक्षित परिणाम

सौ प्रतिशत से

कुछ ज्यादा ही होता है .


*****


अनचाहे शब्द 

पीछे लौटकर

पछताने से इंकार करे तो

उसकी पीठ ठोंकने वालों में

समझदारों का 

हाथ ज्यादा होता है .

*** विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ***

13 comments:

  1. शब्द जब-तब
    अपशब्दों के सहारे
    शक्ति प्रदर्शन करे तो
    सोची-समझी रणनीतियां
    अपना दांव
    खेल चुकी होती है....
    एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएं.. अद्भुत व लाजवाब!!बेमिसाल सृजन।

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  2. अनचाहे शब्द
    पीछे लौटकर
    पछताने से इंकार करे तो
    उसकी पीठ ठोंकने वालों में
    समझदारों का
    हाथ ज्यादा होता है ...
    वाह!!!!
    बहुत सटीक.... लाजवाब क्षणिकाएं।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 11 जनवरी 2021 को 'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. सही कहा है, कहने वाला कहता कुछ है और कहना कुछ और चाहता है, सुनने वाला सुनता कुछ और है समझना कुछ और चाहता है, अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग .. कोई-कोई ही सुहृद होते हैं जो बिन कहे भी सही ही समझ लेते हैं

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  5. "अनचाहे शब्द

    पीछे लौटकर

    पछताने से इंकार करे तो

    उसकी पीठ ठोंकने वालों में

    समझदारों का

    हाथ ज्यादा होता है ."

    बिल्कुल सही कहा आपने।

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  6. शब्दों के विविध प्रयोग व उनके प्रभाव...
    बहुत ही अच्छी लगी। एक विचारणीय तथ्यपरक रचना।

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  7. शब्दों के रूप ऐसे भी ... बहुत अच्छी क्षणिकाएं
    छोटी पर गूढ़

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  8. अनचाहे शब्द

    पीछे लौटकर

    पछताने से इंकार करे तो

    उसकी पीठ ठोंकने वालों में

    समझदारों का

    हाथ ज्यादा होता है .
    बहुत बढ़िया रचना, अमृता दी।

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  9. शब्दों के अर्थ
    जब अनर्थ होने लगे
    तो साफ है कि
    बाजार ज्यादा से ज्यादा
    घातक हथियारों की
    आपूर्ति चाह रहा है.

    यह तो एकदम सटीक है. सामयिक भी है खासकर सोशल मीडिया पर.

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