क्या तुम
सबके वमन किए विष को
प्रेम से पी - पी कर
सच में हर हो गए ?
या अभिन्न होने के लिए
हर एक अंश के नीचे होकर
यथातथ हर हो गए ?
हो न हो , कहीं तुम
आधार और आधेय में
संबंध बनाते - बनाते
सबके बीच के
प्रयोगी पर हो गए
या कि लगातार - लगातार
हर बाद में लग - लग कर
पूरी तरह से
प्रसक्त पर हो गए ....
हाँ , कहीं ऋण रूप में
तो कहीं धन रूप में
कोने - कोने में बस
तुम्हारी ही
कहन और कहानी है
जो तुम पानी बचाते हो तो
पाहनों से भी
परसता पानी है
या स्वयं तुम
इतिहास में इसतरह से
अमर होने के लिए
कर्मतत्पर , कर्मपूरक और कर्मयोगी
हो रहे हो और
वर्तमान से कहला रहे हो कि
तुम वरणीय वर हो गए ......
ऐसे में तुम तो
अमर हो गए ....
तब तो दुधारी दंड से
साम , दाम , दंड , भेद को ही
भूचाली भेदिया की तरह
भेद - भेद कर तुम
इस कलुषित कलियुग में भी
युगपत् द्वापर हो गए .....
हाँ ! तुम तो
अमर हो गए ........
अब तनिक
त्रेता के त्रुटियों को भी
अभिमंत्रित करके
कुछ तो असार कर दो
वो पूर्ण रामराज्य
न आए न सही
कम - से - कम एक
प्रचंड पूर्य हुंकार भर दो ....
देखते ही देखते
अशंक आशाओं के
तुम अगिन लहर हो गए
अरे ! तुम तो
अमर हो गए ....
सब सुंदर सपनों को
सब आँखों में भर दो
शिव - शक्ति को
सब पाँखों में जड़ दो
सत्य है , सत्य है
तुम स्नेहिल , स्तुत्य सा
सतयुगी डगर हो गए
अहा ! तुम तो
अमर हो गए ....
अब तुम भी
अपना सत्य कहो
कि सच में तुम
अमर होना चाहते हो
या समय ने है तुम्हें चुना ?
दिख तो रहा है कि
तुम्हारे लिए ही
बहुत महीनी से
महीन - महीन
ताना - बाना है बुना.....
तब तो
चारों युगों के समक्ष
तुम सम्मोहक समर हो गए....
सच में , तुम तो
अमर हो गए .
सबके वमन किए विष को
प्रेम से पी - पी कर
सच में हर हो गए ?
या अभिन्न होने के लिए
हर एक अंश के नीचे होकर
यथातथ हर हो गए ?
हो न हो , कहीं तुम
आधार और आधेय में
संबंध बनाते - बनाते
सबके बीच के
प्रयोगी पर हो गए
या कि लगातार - लगातार
हर बाद में लग - लग कर
पूरी तरह से
प्रसक्त पर हो गए ....
हाँ , कहीं ऋण रूप में
तो कहीं धन रूप में
कोने - कोने में बस
तुम्हारी ही
कहन और कहानी है
जो तुम पानी बचाते हो तो
पाहनों से भी
परसता पानी है
या स्वयं तुम
इतिहास में इसतरह से
अमर होने के लिए
कर्मतत्पर , कर्मपूरक और कर्मयोगी
हो रहे हो और
वर्तमान से कहला रहे हो कि
तुम वरणीय वर हो गए ......
ऐसे में तुम तो
अमर हो गए ....
तब तो दुधारी दंड से
साम , दाम , दंड , भेद को ही
भूचाली भेदिया की तरह
भेद - भेद कर तुम
इस कलुषित कलियुग में भी
युगपत् द्वापर हो गए .....
हाँ ! तुम तो
अमर हो गए ........
अब तनिक
त्रेता के त्रुटियों को भी
अभिमंत्रित करके
कुछ तो असार कर दो
वो पूर्ण रामराज्य
न आए न सही
कम - से - कम एक
प्रचंड पूर्य हुंकार भर दो ....
देखते ही देखते
अशंक आशाओं के
तुम अगिन लहर हो गए
अरे ! तुम तो
अमर हो गए ....
सब सुंदर सपनों को
सब आँखों में भर दो
शिव - शक्ति को
सब पाँखों में जड़ दो
सत्य है , सत्य है
तुम स्नेहिल , स्तुत्य सा
सतयुगी डगर हो गए
अहा ! तुम तो
अमर हो गए ....
अब तुम भी
अपना सत्य कहो
कि सच में तुम
अमर होना चाहते हो
या समय ने है तुम्हें चुना ?
दिख तो रहा है कि
तुम्हारे लिए ही
बहुत महीनी से
महीन - महीन
ताना - बाना है बुना.....
तब तो
चारों युगों के समक्ष
तुम सम्मोहक समर हो गए....
सच में , तुम तो
अमर हो गए .
मरा कोई ? अमर होना अच्छा है बिना किसी के मरे हुए । यहाँ कौन मरता है ?
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ReplyDeleteजो आपके पद्य अभिनेता के बारे में उसकी कर्मशीलता, धर्मभीरुता तथा देशभक्ति के लिए आपने रचा, वह अत्यंत विस्मित करनेवाला है। अभी तो मैं आपकी इस कविता को अनेक बार पढ़ूंगा और आपके इस उद्दात्त दर्शन को अत्यंत (आपकी ही तरह) समझूंगा।
Deleteकिंतु वामियों-कामियों-खांग्रेसियोंं-आपियों-पापियों-सापियों-बसपापियों और न जाने कितने ...यों को आपने अपने इस महान रचनाकर्म से अपना दुश्मन बना लिया है, इस हेतु आप अशंक नहीं?
विकेश जी , आपने इस तरह प्रश्न किया कि उत्तर देना आवश्यक हो गया । अन्यथा .....
Deleteमैं पूर्णतः अशंक हूँ और तटस्थ भी । ये लेखनी भाट अथवा चारण नहीं है और न ही किसी राजनीतिक दल से है ।उसने तो परिस्थिति जनित एक विशेष चरित्र को वर्तमान के विरोधाभासों में बस इंगित करने का प्रयास भर किया है । आगे .... आभार आपका ।
वर्तमान तो हमेशा ही विरोधावाश से घिरा ही रहता है पर समालोचना या आलोचना रचनाधर्मिता का स्वाभविक गुण उसे उकेरना भर हो होता है।किसी दल। या ब्यक्ति की विचारधारा में होना आवश्यक नहीं।आपने रचना धर्म का ही पालन किया है।
Deleteबहुत अच्छी बात।
Deleteक्या बात -२ !! खुबसूरत रचना.
ReplyDeleteअसल में बहुत समय बाद एक ऐसा चरित्र उभरा है जो देश को दिशा देने में सामर्थ है ... विरोधाभास अपने समय में जितने कृष्ण के हुए हैं उतने मोदी जी के तो शुरू भी नहीं हुए ... आम इंसान से नायक बनने की कहानी और फिर महानायक के चरित्र को सकारथ कर सकें ... इश्वर मोदी जी को साहस दे ...
ReplyDeleteप्रभावी कविता
ReplyDeleteसादर
आपने जो कहा है वह आपका तनिक दार्शनिक दृष्टि से किया गया सुंदर काव्यात्मक आकलन है. शेष रही बात मूल्यांकन की तो वह कार्य दीर्घावधि में काल की छननी करती है.
ReplyDeleteइस कविता में आपकी मौलिक रचना शैली फिर उभर कर दिखी है. :)
आपकी भावनाओं का तन्मय और उत्क्रष्ट प्रस्तुतिकरण चकित करता है.
ReplyDeleteआभार
अमर होना शेष है.. क्योंकि समर शेष है...
ReplyDeleteआप भी सदैव अमर रहेंगी. आपकी रचना श्रेष्ठ है
ReplyDeleteसादर प्रणाम