खोल रही हूँ खुद को
खाली खोल से
खोल कर
खोखले खोल को ......
ओह !
खोल में कितने खोल ?
खोल पर कितने खोल ?
क्या खोल का खोट है
या खोल ही खोट है ?
आह !
खोट ही खोट
और खोट पर
ये कैसा नोंच खसोंट ?
फिर खसोंट से खून
या खून का ही खून ?
खोज रही हूँ खुद को
या खो रही हूँ खुद को ?
हाँ !
खाली खोल से
खोल रही हूँ खुद को .
खाली खोल से
खोल कर
खोखले खोल को ......
ओह !
खोल में कितने खोल ?
खोल पर कितने खोल ?
क्या खोल का खोट है
या खोल ही खोट है ?
आह !
खोट ही खोट
और खोट पर
ये कैसा नोंच खसोंट ?
फिर खसोंट से खून
या खून का ही खून ?
खोज रही हूँ खुद को
या खो रही हूँ खुद को ?
हाँ !
खाली खोल से
खोल रही हूँ खुद को .
waah....bahut khubsurat....
ReplyDeleteबहुत कष्टप्रद होता है अपने आप को खोलना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
इतनेे दिन बाद।
ReplyDeleteसार्थक और सारगर्भित कटाक्ष! नियमित लिखिए अब ...!!
ReplyDeleteकितना कमाल ....वाह ये तो बहुत ही दिलचस्प शैली है आनंदम आन्दम | लिखती रहें यूं ही आप , शुभकामनायें
ReplyDeleteपरत दर परत हम खोल ओढ़ के जीते हैं...खुद अपनी परतें खोलना सबसे बड़ी चुनौती है...सुंदर रचना...
ReplyDeleteKya baat hai ..... Behad gahan bhav !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteआह !
ReplyDeleteखोट ही खोट
और खोट पर
ये कैसा नोंच खसोंट ?
ओह! क्या कहूँ …………निशब्द कर दिया…
खोज रही हूँ खुद को
ReplyDeleteया खो रही हूँ खुद को ?
अबूझ पहेली !
कितनी परतों के भीतर हम .... और वहां भी हैं कि नहीं यह भी बड़ा सवाल ... खूब लिखा
ReplyDeleteखोल के अंदर खोल- कितनी खोलों में छिपा बैठा है अपना निजत्व !
ReplyDeleteस्वयं को खोजना, खोल से निकालना... मुश्किल तो है ...
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
Its a great composition. Awesome
ReplyDeleteहमेशा की तरह गहन.
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी.
_______________विशाल
हमेशा की तरह गहन.
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी.
_______________विशाल
हमेशा की तरह गहन.
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी.
_______________विशाल
प्याज की परते,,,,आया कंहाँ से रे ,,,,,
ReplyDeleteप्याज की परते,,,,आया कंहाँ से रे ,,,,,
ReplyDeleteपीड़ा भी एक खोल है. खोल खुलते जाते हैं और खोल में होने का अहसास ही असीम होने का अहसास बन छा जाता है. आपका ब्लॉग पर लौटना बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteअच्छी लगी यह शैली.
ReplyDeleteमन को सचमुच खोल देने वाली रचना . वाह .
ReplyDelete'खाली खोल से
ReplyDeleteखोल रही हूँ खुद को' .
बाहर के खोल में खोट और खसोंट
अन्दर की खोज में खुद नजर आये
पोस्टमार्टम सरीखा। बस। . पीड़ा।। वेदना।
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