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Friday, March 18, 2016

आँखों में सरसों फूला .....

आँखों में सरसों फूला
फागुन अपना रस्ता भूला
पहुँच गया मरुदेश में
जित जोगी के वेश में 

चिमटा बजाता , अलख जगाता
मस्ती में प्रेम - धुन गाता
प्रेम माँगता वह भिक्षा में
जित जोगिन की प्रतीक्षा में

कभी तो झोली भर जाएगी
जोगिनिया उसकी दौड़ी आएगी
अंबर से या पाताल से
वर लेगी उसे वरमाल से

हरा , गुलाबी , नीला , पीला
प्रेम का रंग हो इतना गीला
सब बह जाए उसी धार में
सुख सागर के विस्तार में

धुनिया का बस एक ही धुन
हर द्वार पर करता प्रेम सगुन
इस फागुन में सब रस्ता भूले
औ' आँखों में बस सरसों फूले .

18 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बंजारा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. नजीर अकबराबादी के शब्दों में ......
    कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे,
    दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे.....

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. धुनिया का बस एक ही धुन
    हर द्वार पर करता प्रेम सगुन

    हर मौसम की एक दीवानगी होती है. कवि की चौकस ऩज़र उसे पहचानती है. "हर द्वार पर करता प्रेम सगुन" उसी दीवानगी की महीन अभिव्यक्ति है.

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  5. अति सुन्दर भाव।

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  6. अति सुन्दर भाव।

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  7. बसंत के रंगों से सजा सुंदर गीत ।

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  8. बहुत सुंदर रचना ।

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  9. सुंदर रचना आपकी।
    जोगी फागुन को है जोगिनिया की तलाश,
    उसके प्रेम से चटख गये सब गुलमोहर और अमलताश।

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  10. wah kya bat hai
    mera blog bhi follw karen

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  11. बहुत सुंदर शब्द रचना.
    निरंतर उत्कृष्ट लेखन.
    आप सच में आज की अमृता प्रीतम हो.

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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