आँखों में सरसों फूला
फागुन अपना रस्ता भूला
पहुँच गया मरुदेश में
जित जोगी के वेश में
चिमटा बजाता , अलख जगाता
मस्ती में प्रेम - धुन गाता
प्रेम माँगता वह भिक्षा में
जित जोगिन की प्रतीक्षा में
कभी तो झोली भर जाएगी
जोगिनिया उसकी दौड़ी आएगी
अंबर से या पाताल से
वर लेगी उसे वरमाल से
हरा , गुलाबी , नीला , पीला
प्रेम का रंग हो इतना गीला
सब बह जाए उसी धार में
सुख सागर के विस्तार में
धुनिया का बस एक ही धुन
हर द्वार पर करता प्रेम सगुन
इस फागुन में सब रस्ता भूले
औ' आँखों में बस सरसों फूले .
bahut sundar kavita...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बंजारा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteBahut sundar kavita
ReplyDeleteनजीर अकबराबादी के शब्दों में ......
ReplyDeleteकुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे,
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे.....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteधुनिया का बस एक ही धुन
ReplyDeleteहर द्वार पर करता प्रेम सगुन
हर मौसम की एक दीवानगी होती है. कवि की चौकस ऩज़र उसे पहचानती है. "हर द्वार पर करता प्रेम सगुन" उसी दीवानगी की महीन अभिव्यक्ति है.
अति सुन्दर भाव।
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव।
ReplyDeleteबसंत के रंगों से सजा सुंदर गीत ।
ReplyDeleteअति सुन्दर अमृता
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeletebehad sundar
ReplyDeleteसुंदर रचना आपकी।
ReplyDeleteजोगी फागुन को है जोगिनिया की तलाश,
उसके प्रेम से चटख गये सब गुलमोहर और अमलताश।
bahut accha
ReplyDeletewah kya bat hai
ReplyDeletemera blog bhi follw karen
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द रचना.
ReplyDeleteनिरंतर उत्कृष्ट लेखन.
आप सच में आज की अमृता प्रीतम हो.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।