तृषा जावै न बुंद से
प्रेम नदी के तीरा
पियसागर माहिं मैं पियासि
बिथा मेरी माने न नीरा
सहज मिले न उरबासि
आसिकी होत अधीर
घर उजारि मैं आपना
हिरदै की कहूँ पीर
दीपक बारा प्रेम का
विरह अगिन समाय
तलहिं घोर अँधियारा
किन्हुं न पतियाय
जो बोलैं सो पियकथा
दूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय
सुमिरन मेरा पिय करे
कब आवै ऐसों ठाम
पिय कलपावै आतमा
पियहद ही बिसराम .
प्रेम नदी के तीरा
पियसागर माहिं मैं पियासि
बिथा मेरी माने न नीरा
सहज मिले न उरबासि
आसिकी होत अधीर
घर उजारि मैं आपना
हिरदै की कहूँ पीर
दीपक बारा प्रेम का
विरह अगिन समाय
तलहिं घोर अँधियारा
किन्हुं न पतियाय
जो बोलैं सो पियकथा
दूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय
सुमिरन मेरा पिय करे
कब आवै ऐसों ठाम
पिय कलपावै आतमा
पियहद ही बिसराम .
http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/1.html
ReplyDeleteजो पुकारे रातदिनि, पिया उसी में बासे
ReplyDeleteचुप हो जाये पल भर जो, तभी वो बाहर झांके
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 21 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयह विरह वेदना!!......कैसे इससे पार होंं!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2016) को "एक खत-मोदी जी के नाम" (चर्चा अंक-2472) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जो बोलैं सो पियकथा
ReplyDeleteदूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय- वाह
सुन्दर शबद जैसे ही शब्द!
ReplyDeleteजो बोलैं सो पियकथा
ReplyDeleteदूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय
आर्त उदगार
पुकार आर्त होगी तो आरती होगी
आरती में ही पिय अवश्य प्रगट होंगे अमृता जी
जो बोलैं सो पियकथा
ReplyDeleteदूजा सबद न कोय
सबद- सबद पियहिं पुकारिं
पिय परगट न होय
आर्त उदगार
पुकार आर्त होगी तो आरती होगी
आरती में ही पिय अवश्य प्रगट होंगे अमृता जी
इतनी ,,,,,,,अद्भुत भाव सोच ,,,,सोच कर भी कुछ लिखा नहीं जा रहा है। भावों को शब्दों का रूप देकर इस कविता के लिए कुछ भी लिखना मेरे बस की तो नहीं ही है
ReplyDeleteइस कविता के माध्यम आध्यत्म ' और प्रेम का अद्भुत संगम ओस रचना को कल जयी बना देगी।
इतनी ,,,,,,,अद्भुत भाव सोच ,,,,सोच कर भी कुछ लिखा नहीं जा रहा है। भावों को शब्दों का रूप देकर इस कविता के लिए कुछ भी लिखना मेरे बस की तो नहीं ही है
ReplyDeleteइस कविता के माध्यम आध्यत्म ' और प्रेम का अद्भुत संगम ओस रचना को कल जयी बना देगी।
पीड़ा के काँटे से पीड़ा का उच्छेदन करना इसे ही कहते हैं. बोलचाल की भाषा में बहुत ही सुंदर लिखा है आपने.
ReplyDeleteपिया की चाह और उठती हुयी वेदना को बाखूबी बयान किया है ...भाव को शब्द का रूप दिया है ...
ReplyDeleteये क्या भाई ?
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