सबका अपना तबेला
सबकी अपनी दौड़
लँगड़ी मारे लँगड़ा
लड़बड़ाये कोई और
अब्दुल्ला का ब्याह
बेगाने माथे मौर
बारूद मारे माचिस
धुँधुआये कोई और
कोई बजाये पोंगली
कोई फाड़े ढोल
पोंगा बढ़कर बाँचे
खालिस पंडिताऊ बोल
कोई चटाये चूना
कोई चबकाये पान
कथ्था मारे कनखी
थूक फेंके पीकदान
कोई दबाये कद्दू
कोई बढ़ाए नीम
पिटारा भर बीमारी
चुप्पी साधे हकीम
कोई कबूतर झपटे
कोई उड़ाये बाज
छिछला छुड़ाये छिलका
गुदा छुपाये राज
आजादी माँगे आजादी
जंजीर पहने जंजीर
नट भट मिलकर
खेले एक खेल
इसकी उसकी डफली
बस अपना राग
कोई मनाये मातम
कोई फैलाये फाग .
सबकी अपनी दौड़
लँगड़ी मारे लँगड़ा
लड़बड़ाये कोई और
अब्दुल्ला का ब्याह
बेगाने माथे मौर
बारूद मारे माचिस
धुँधुआये कोई और
कोई बजाये पोंगली
कोई फाड़े ढोल
पोंगा बढ़कर बाँचे
खालिस पंडिताऊ बोल
कोई चटाये चूना
कोई चबकाये पान
कथ्था मारे कनखी
थूक फेंके पीकदान
कोई दबाये कद्दू
कोई बढ़ाए नीम
पिटारा भर बीमारी
चुप्पी साधे हकीम
कोई कबूतर झपटे
कोई उड़ाये बाज
छिछला छुड़ाये छिलका
गुदा छुपाये राज
आजादी माँगे आजादी
जंजीर पहने जंजीर
नट भट मिलकर
खेले एक खेल
इसकी उसकी डफली
बस अपना राग
कोई मनाये मातम
कोई फैलाये फाग .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भाखड़ा नंगल डैम पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete:):) यही हो रहा है ... अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग .
ReplyDeleteयही उलबासियाँ सब ओर देखने को मिल रही हैं.
ReplyDeleteहमें इन स्थितियों को बदलने का कारक नहीं बनना चाहिए?
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...वाह!
ReplyDeleteऐसे ही अंतर्विरोधों में आजकल हम सभी जी रहे हैं. उलटबाँसियाँ उस बात को कह रही हैं.
ReplyDeleteआजकल के माहौल का कटाक्षपूर्ण काव्यात्मक वर्णन ।
ReplyDeleteकितना अंतर्विरोध हो गया है आज देश में ... सब अपनी अपनी ढपली बजा रहे हैं ... सटीक प्रहार ...
ReplyDeleteहर जगह यही हालात बनते जा रहे हैं.. लेकिन एक उम्मीद तो कहीं न कहीं पनप ही जाती है...
ReplyDeletearee waaah ye bhi jbrdast hai .... khooob !!!!!
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