क्या पता कि मैं आदमी ही झक्की हूँ
या अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
सुखरोग टाइप बीमार हूँ
फ्री में मिलती सहानुभूति की शिकार हूँ
सबके सामने बस अपना दुखड़ा रोती हूँ
नई बीमारियों को अपने लम्बे लिस्ट में पिरोती हूँ ....
मुझपर रिसर्च करते कई - कई डॉक्टरों की टीम है
और हाथ साफ करते बड़े - बड़े नीम - हकीम हैं
मेरा घर ही जैसे कोई बड़ा अस्पताल है
पर सुधार से एकदम अनजान मेरा हाल है .....
नींद आती है तो मजे से सो जाती हूँ
आँख खुलती है तो जग जाती हूँ
पैर बढ़ाती हूँ तो चलने लगती हूँ
रुकती हूँ तो रुक जाती हूँ ........
मुँह खोलती हूँ तो बोलने लगती हूँ
बंद करती हूँ तो चुप हो जाती हूँ
भूख लगती है तो भरपेट खा लेती हूँ
प्यास लगती है तो भर मन कुछ पी लेती हूँ
हद है , हँसती हूँ तो हँसने लगती हूँ
जो रोती हूँ तो रोने लगती हूँ .......
और तो और , सही करती हूँ तो सही होती हूँ
जो गलत करती हूँ तो गलत होती हूँ
आखिर कैसी ये मेरी बीमारी है ?
जिसे समझने में , सब समझ भी हारी है ......
वैसे उटपटांग हरकतों से मैं कोसों दूर हूँ
शायद आदमी ही होने के लिए मजबूर हूँ
जब लोगों को देखती हूँ , वे मुझे भरमाते हैं
जो मेंटल हेल्थ प्रूफ दिखा , क्या से क्या हो जाते हैं ......
डॉक्टर बार - बार मेरा सारा टेस्ट करा रहे हैं
पर हाय ! मेरी बीमारी को ही लापता बता रहे हैं
ई.सी.जी. , एम.आर.आई. , अल्ट्रासाउंड , सी.टी. स्कैन
सब मेरा बॉयकाट कर , मुझपर लगा दिए हैं बैन
मेडिकल साइंस इसे एक क्रिटिकल केस बता रहा है
और मुझपर लगातार बीमारी का दौरा आ रहा है .....
क्या पता कि मैं आदमी ही झक्की हूँ
पर अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
अब अपना इलाज मुझे खुद ही करना है
या तो ठीक होकर जीना है या फिर मरना है
इसलिए किसी भी कीमत पर बीमारी का पता लगाना है
हाँ , अपनी आँखों के आगे अपना ही पोस्टमार्टम कराना है .
या अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
सुखरोग टाइप बीमार हूँ
फ्री में मिलती सहानुभूति की शिकार हूँ
सबके सामने बस अपना दुखड़ा रोती हूँ
नई बीमारियों को अपने लम्बे लिस्ट में पिरोती हूँ ....
मुझपर रिसर्च करते कई - कई डॉक्टरों की टीम है
और हाथ साफ करते बड़े - बड़े नीम - हकीम हैं
मेरा घर ही जैसे कोई बड़ा अस्पताल है
पर सुधार से एकदम अनजान मेरा हाल है .....
नींद आती है तो मजे से सो जाती हूँ
आँख खुलती है तो जग जाती हूँ
पैर बढ़ाती हूँ तो चलने लगती हूँ
रुकती हूँ तो रुक जाती हूँ ........
मुँह खोलती हूँ तो बोलने लगती हूँ
बंद करती हूँ तो चुप हो जाती हूँ
भूख लगती है तो भरपेट खा लेती हूँ
प्यास लगती है तो भर मन कुछ पी लेती हूँ
हद है , हँसती हूँ तो हँसने लगती हूँ
जो रोती हूँ तो रोने लगती हूँ .......
और तो और , सही करती हूँ तो सही होती हूँ
जो गलत करती हूँ तो गलत होती हूँ
आखिर कैसी ये मेरी बीमारी है ?
जिसे समझने में , सब समझ भी हारी है ......
वैसे उटपटांग हरकतों से मैं कोसों दूर हूँ
शायद आदमी ही होने के लिए मजबूर हूँ
जब लोगों को देखती हूँ , वे मुझे भरमाते हैं
जो मेंटल हेल्थ प्रूफ दिखा , क्या से क्या हो जाते हैं ......
डॉक्टर बार - बार मेरा सारा टेस्ट करा रहे हैं
पर हाय ! मेरी बीमारी को ही लापता बता रहे हैं
ई.सी.जी. , एम.आर.आई. , अल्ट्रासाउंड , सी.टी. स्कैन
सब मेरा बॉयकाट कर , मुझपर लगा दिए हैं बैन
मेडिकल साइंस इसे एक क्रिटिकल केस बता रहा है
और मुझपर लगातार बीमारी का दौरा आ रहा है .....
क्या पता कि मैं आदमी ही झक्की हूँ
पर अपने इरादे की पूरी पक्की हूँ
अब अपना इलाज मुझे खुद ही करना है
या तो ठीक होकर जीना है या फिर मरना है
इसलिए किसी भी कीमत पर बीमारी का पता लगाना है
हाँ , अपनी आँखों के आगे अपना ही पोस्टमार्टम कराना है .
इस स्थिति में शुभकामनाएं काश मेरी काम आएं
ReplyDeleteआप स्वस्थ हों और रोग आप से दूर भाग जाएं
इतनी खास बीमारी खास खास लोगों को ही नसीब होती है। बड़ भागी हैं आप।इतनी तीमारदारी और सहानूभूति बटओऱ कर नामचीन लोगों की लिस्ट में आप भी।
ReplyDeleteवाकई लाइलाज बीमारी है यह..आदमी अगर आदमी होने के लिए मजबूर है, यहाँ तो आदमी आदमी न रहकर सबकुछ हो जाना चाहता है
ReplyDeleteसोचिये मत - बीमारी बढ़ जाती है सोचने से ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी बीमारी है, इसने सब डॉक्टरों की पोल खोल दी है !
ReplyDeletepratibha ji ne bilkul sahi keha...soch ki koi prakashtha nahi hoti
ReplyDeleteया तो ठीक होकर जीना है या फिर मरना है...... हाँ ऐसा ही होना है। .
ReplyDeleteअतुल्य, अप्रतिम ...
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