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Thursday, December 12, 2013

यह अंतर्वेदना कैसी है ? ....

यह अंतर्वेदना कैसी है ?
यह अनुताप कैसा है ?
वाणी-विहीन रंध्रों से फूटता
यह आकुल आर्द्र आलाप कैसा है ?

असाध्य क्लेश सा पीर क्यों है ?
नैन-कोर में ठहरा नीर क्यों है ?
अनमनी व्यथा की छटपटाहट
कुछ विरचने को अधीर क्यों है ?

कौन सी इच्छा भाँवरे भर
ऐच्छिक गति से होती मुखर
हत ह्रदय को मड़ोरता हुआ
क्यों टेर देता है कोई स्वर ?

कसकते हूक को शब्दों में कैसे ढालूं ?
या जी को बहलाने को क्या मैं गा लूं ?
बस मेरा वश मुझे ही बता दे
क्या मेरा है जो आज किसी को दे डालूं ?

विह्वल-सा यह वायु क्यों बहता ?
बिंध-बिंधकर मुझको कुछ कहता
गलबहियां दे उसे रोक जो पाती
क्या बैठ पहर भर मुझ संगति करता ?

क्यों कजरा धो-धोकर होता सवेरा ?
क्यों सूरज भी बन जाता है लूटेरा ?
संझा भी झंझा सी रुककर
क्यों करती दग्ध बाहों का घेरा ?

आज अति शोकित धरा-आकाश क्यों है ?
मलिन मुख में क्षितिज भी उदास क्यों है ?
टूटा-सा प्यारा सुख सपना लेकर
सिर टेके बिसुरती आस क्यों है ?

क्यों असंयत हो दहकता है तन-मन ?
क्यों विरह-प्रपीड़ित है ये दृढ आलिंगन ?
तड़प-तड़पकर ही रह जाता है
क्यों विकल अधर युगल का चुम्बन ?

जब लपट ह्रदय से लिपटी हो ऐसे
तो मूढ़ अगन बुझेगी भी कैसे ?
तब जल का आगार भी आक्रान्त होकर
बढ़ाता संताप है निज वड़वानल जैसे.....

तो भी असम्भव सी आकांक्षा भटकती क्यों है ?
निराशाओं के बीच भी अटकती क्यों है ?
शून्य से सुनहरा चित्र खींचकर
शंकित हो उसे ही तकती क्यों है ?

इतनी दारुण दुर्बल अवस्था में
औ' प्रीत की बलबती भावुकता में
क्यों प्राण भी सहज नहीं छूटता
न जाने किस अक्षय विवशता में.....

फिर विवशता की यह अंतर्वेदना कैसी है ?
फिर विवश सा यह अनुताप कैसा है ?
वाणी-विहीन रंध्रों से फूटता
फिर यह विवश आलाप कैसा है ? 

29 comments:

  1. चिरपरिचित है यह अंतर्वेदना....यह अनुताप...यह विलाप और आलाप भी कितना जाना पहचाना है...क्या इसी ने बार-बार नहीं सताया है, क्या इसे पहली बार हमने जाना है...यह चिर व्यथा मानव की साथी है, इससे ही तो अंतरदीप जलाना है

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  2. समय के हाथ ही ..प्रश्न भी, उत्तर भी.

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  3. ये अंतर्वेदना.ही एक सच्चा साथी है..जो सारी जिन्दगी साथ निभाता है...

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  4. टूटा-सा प्यारा सुख सपना लेकर न जाने कितने प्रीतप्रेमी भ्रमातीत विश्‍व में विचरण कर रहे हैं। ना जाने कौन सी अक्षय विवशता है जो मरते-मरते भी असम्‍भव प्रेमपूर्णता प्राप्‍त करना चाहती है। भावों का असीम विस्‍तार।

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  5. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

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  6. अंतर्वेदना भी इतनी गहन है कि ये शब्दों का झरना फूट पड़ा है ।

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  7. वेदना, प्रश्न, अकुलाहट ... कहाँ है ठोर ... अनंत या स्वयं के अंतरमन में ...
    भावों का झंझावात कहाँ रुकेगा ...

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  8. इतनी गहन वेदना और अंतर्व्यथा जो शब्दों से भरा झलकती है । शानदार और शानदार |

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  9. आज अति शोकित धरा-आकाश क्यों है ?
    मलिन मुख में क्षितिज भी उदास क्यों है ?
    टूटा-सा प्यारा सुख सपना लेकर
    सिर टेके बिसुरती आस क्यों है ?

    प्रकृति नटी भी इतनी उदास क्यों हैं ,

    क्या प्रीत किए दुःख होय?

    सुन्दर रचना है।

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-2013) "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1461 पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  11. ऐसी कविता कैसे लिख लेती हैं आप?....मन की अकूलाहट को शब्द देना आसान नहीं...किसी कारीगर की महीन कारीगरी की तरह आप शब्दों को बुनना जानती हैं....अपने से शब्दों को बुना नहीं जाता...

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  12. बहुत सारे सवालों का जवाब निर्मम वक़्त के पास भी नहीं होता.. और कुछ सवालों का जवाब तो है ही नहीं... मेरा मानना है कि ईश्वर अंतर्वेदना, अनुताप व असाध्य अनमनी व्यथा जैसे हीरे सबके ह्रदय में नहीं टाँकता...
    नतमस्तक हूँ.....

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  13. ANTARMAN SE FUTATI SAMWEDANA KA PRASFUTAN

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-13) को "वो एक नाम (चर्चा मंच : अंक-1461)" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!!

    - ई॰ राहुल मिश्रा

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  15. विह्वल-सा यह वायु क्यों बहता ?... ??

    हर शब्द जैसे मन की विकलता को उछाल कर रहा है ! शब्दों के जाल में घिरे रहे हम तो !
    बहुत बढ़िया !

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  16. यह अंतर्वेदना निरंतर है ,सनातन है ,समय ,स्थान के अनुसार रूप बदलता है .......सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट विरोध
    new post हाइगा -जानवर

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  17. अंतर्वेदना के दर्द... मुखरित हो रहे ... बेहतरीन !!

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  18. वेदना ही राह निकालती है।

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  19. This comment has been removed by the author.

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  20. ''इस करुणा कलित हृदय मे
    क्यूँ विकल रागिनी बजती
    क्यूँ हाहाकार स्वरों मे
    वेदना असीम गरजती
    अकुलाती वेदना .....जयशंकर प्रसाद की 'आँसू 'याद आ गई ...बहुत सुंदर रचना अमृता जी ...

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  21. क्यों असंयत हो दहकता है तन-मन ?
    क्यों विरह-प्रपीड़ित है ये दृढ आलिंगन ?
    तड़प-तड़पकर ही रह जाता है
    क्यों विकल अधर युगल का चुम्बन ?

    जब लपट ह्रदय से लिपटी हो ऐसे
    तो मूढ़ अगन बुझेगी भी कैसे ?
    तब जल का आगार भी आक्रान्त होकर
    बढ़ाता संताप है निज वड़वानल जैसे.....

    सुंदर रचना..विरह के ताप को प्रदर्शित करती उत्तम अभिव्यक्ति।।।

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  22. aaj ke haalat par achhi parstuti hai amrita ji, aap gahrai me jakar likhti hain, bhut achha

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  23. गूढ़ अभिव्यक्ति

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  24. सहज ही तादात्म्य स्थापित करती ह्रदय को बेधती संघनित वेदना

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  25. वाणी-विहीन रंध्रों से फूटता
    यह आकुल आर्द्र आलाप कैसा है ?…

    उत्कृष्ट,बेजोड़।

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  26. कोमल भावों वाली इस कविता को पढ़ कर छायावादी कविता की याद हो आई. किसी अज्ञात को रेंखाकित करने की प्रबल लालसा कविता में दिखाई देती है. कविता में प्रयुक्त 'भी' और 'ही' उसी अज्ञात के साक्षी हैं.

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