फूल भी तुम्हारा
चरण भी तुम्हारा
शीश जो चढ़ाऊँ
शरण भी तुम्हारा
चलूँ तो तुममें
बैठूँ तो तुममें
रूक जाऊँ तो
ऐंठूँ भी तुममें
खाऊँ तो तुम्हें
पियूँ तो तुम्हें
श्वास भी लूँ
तो जियूँ तुम्हें
चुप तो तुम
बोलूँ तो तुम
रूठूँ तुम्हीं से
मानूँ तो तुम
ओढ़नी भी तू
बिछौनी भी तू
सोऊँ तो उसमें
मिचौनी भी तू
आकाश भी तेरा
सागर भी तेरा
मिट्टी का सब
गागर भी तेरा
हवा भी तू
आग भी तू
सब को पिरोता
ताग भी तू
माया भी तुम
मोह भी तुम
मिलन तुम्हीं से
बिछोह भी तुम
दुविधा भी तुम
सुविधा भी तुम
विष के बीच
सुधा भी तुम
प्रश्न भी तुम
उत्तर भी तुम
पूछूँ कुछ तो
निरुत्तर भी तुम
मिथ्या भी तुम
सांच भी तुम
रस से पिघलाते
आंच भी तुम
नया भी तू
पुराना भी तू
बाँचने के लिए
बहाना भी तू
कोई भी नाम
तेरा ही नाम
पुकारा तुम्हें ही
मुझे तू थाम
तुम्हें ही रोया
तुम्हें ही गाया
तड़प को चैन
तनिक न आया
ना दो आराम
पर लो प्रणाम
तुझे ही जपना
मेरा एक काम .
चरण भी तुम्हारा
शीश जो चढ़ाऊँ
शरण भी तुम्हारा
चलूँ तो तुममें
बैठूँ तो तुममें
रूक जाऊँ तो
ऐंठूँ भी तुममें
खाऊँ तो तुम्हें
पियूँ तो तुम्हें
श्वास भी लूँ
तो जियूँ तुम्हें
चुप तो तुम
बोलूँ तो तुम
रूठूँ तुम्हीं से
मानूँ तो तुम
ओढ़नी भी तू
बिछौनी भी तू
सोऊँ तो उसमें
मिचौनी भी तू
आकाश भी तेरा
सागर भी तेरा
मिट्टी का सब
गागर भी तेरा
हवा भी तू
आग भी तू
सब को पिरोता
ताग भी तू
माया भी तुम
मोह भी तुम
मिलन तुम्हीं से
बिछोह भी तुम
दुविधा भी तुम
सुविधा भी तुम
विष के बीच
सुधा भी तुम
प्रश्न भी तुम
उत्तर भी तुम
पूछूँ कुछ तो
निरुत्तर भी तुम
मिथ्या भी तुम
सांच भी तुम
रस से पिघलाते
आंच भी तुम
नया भी तू
पुराना भी तू
बाँचने के लिए
बहाना भी तू
कोई भी नाम
तेरा ही नाम
पुकारा तुम्हें ही
मुझे तू थाम
तुम्हें ही रोया
तुम्हें ही गाया
तड़प को चैन
तनिक न आया
ना दो आराम
पर लो प्रणाम
तुझे ही जपना
मेरा एक काम .
प्रेम का यह जाप कितना सरल, प्रेमिल है।
ReplyDeleteना दो आराम
ReplyDeleteपर लो प्रणाम
तुझे ही जपना
मेरा एक काम .
वाह ...प्रेम अविराम की सुंदर कथा ...
pick of devotion and dedication towords love so deep emotions
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..
ReplyDeleteआत्मसमर्पण...पूर्णरूपेण ..!!!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहोने व न होने के बीच हर उस स्पंदन में तुम ही तो हो .....तुम में तुम तक की यात्रा हर उस आकाशगंगा से बड़ी है ..जो अपने को असीम कहता है...
ReplyDeleteकिसी के प्रेम में डूबकर प्रेम से लिखा हुआ... बेहतरीन रचना .....!!
ReplyDelete:) बहुत सुंदर हैं
ReplyDeleteजय श्री राम !
बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.....
ReplyDeletewaah! bahut sundar
ReplyDeleteदुविधा भी तुम
ReplyDeleteसुविधा भी तुम
विष के बीच
सुधा भी तुम
वाह बहुत सुन्दर समर्पण भाव अमृता जी
वही वही है सब ओर वही .... प्रति की रीत बताये यही
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरेया-
गज़ब गज़ब …………सूफियाने रंग में रंगी ये पोस्ट शानदार है । तू ही तू रहे बाकि न मैं रहूँ न मेरी आरज़ू रहे ..................
ReplyDeleteप्यार का यह सरल जाप यूं ही बना रहे क्यूंकि यही प्यार विश्वास है। इसलिए ... ना दो आराम पर लो प्रणाम...:))
ReplyDeleteप्रेम में एकाकार, सुन्दर।
ReplyDeleteअब तू ही दीखता है ,
Deleteबस तू ही दीखता है ,
तू ही रीझता है ,बस तू ही रीझता है ,
बस तू ही तू है ,मैं भी तू है। तू भी मैं है
मैं भी तुम ,तुम भी ,
ReplyDeleteतुम -
तुम ही तुम।
जित देखूं तित लाल।
यही है कृष्ण भावनामृत ,कृष्ण भावनाभावित मन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ....स्वीकार्यता और समर्पण की हर सीमा के पार ...
ReplyDeleteआस्था ऐसी हो तो हर क्षण अवलम्ब है. अति सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही सहज और सशक्त रचना.
ReplyDeleteरामराम.
तुम ही हो ... सब कुछ तू ही तू मैं भी तू ... निरंतर बजता नाद ...
ReplyDeleteप्रश्न भी तुम ...उत्तर भी तुम ...पूछूँ कुछ तो ... निरुत्तर भी तुम
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है ... बधाई स्वीकार करें ...
तुम्हें ही रोया
ReplyDeleteतु्म्हें ही गाया
यह भाव रिमार्केबल है.दृष्य से अदृष्य तक के साथ एकाकार होने की प्रबल अभिव्यक्ति.