एक ने जीता सारा जग
दूजे से लज्जित है हार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए
धनुष या कि तलवार ?
इस धनुष में बड़ी शक्ति है
राग -रंग जगाने वाली
दक्खिन , दिल्ली ही नहीं
हर दिल को थिरकाने वाली
और तलवार एक दंपति है
निज संतति ही खाने वाला
कुकृत्यों को नंगा करके
हम सबको दहलाने वाला
व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व ये
इस युग के हैं नव आधार
तुम ही कहो कि अब कैसे
रचना है अपना संसार ?
हार-जीत हैं दोनों हमसे
रुक कर थोड़ा करो विचार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए
धन्य धनुष या तम तलवार ?
दूजे से लज्जित है हार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए
धनुष या कि तलवार ?
इस धनुष में बड़ी शक्ति है
राग -रंग जगाने वाली
दक्खिन , दिल्ली ही नहीं
हर दिल को थिरकाने वाली
और तलवार एक दंपति है
निज संतति ही खाने वाला
कुकृत्यों को नंगा करके
हम सबको दहलाने वाला
व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व ये
इस युग के हैं नव आधार
तुम ही कहो कि अब कैसे
रचना है अपना संसार ?
हार-जीत हैं दोनों हमसे
रुक कर थोड़ा करो विचार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए
धन्य धनुष या तम तलवार ?
Lovely verse!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
ReplyDeleteआज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
माफ़ कीजिये मुझे समझ नहीं आई ये पोस्ट ।
ReplyDeleteमरती आरुषि महल में, काटी थी तलवार |
Deleteजिनसे मिलता प्यार था, करते वे ही वार |
करते वे ही वार, किसे तलवार चाहिए -
कितना चुके लताड़, इन्हें तो मार चाहिए |
करे धनुष टंकार, मुफ्त हो जाए धरती |
मरे नहीं कुविचार, दिखे नहिं आरुषि मरती ||
मांग तो लूं पर धनुष ही क्या करेगा
Delete...
क्या बात!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteक्या बतलाऊँ अपना परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
थोडी सी सावधानी रखे और हैकिंग से बचे
आदेर्नीया इस पोस्ट के मर्म को समझने में मुश्किल हो रही है ..कृपया कुछ हिंट करें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.कोलावरी डी और तलवार में क्या कोई साम्य है .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसुंदर सृजन ! बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteRECENT POST : बिखरे स्वर.
निश्चय ही अपने संसार के सृजन में कठिनाई है। पर अपनी जीत-हार का निर्णय हमारे ही हाथों में है। हाथ तलवार उठाएं या धनुष, ये हाथों को बताना है।
ReplyDeleteवाह .... बहुत उम्दा रचना .....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteयहाँ तो तलवार से बेहतर धनुष ही लग रहा है .... रोचक प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteसंहारक तो वैसे दोनों हैं लेकिन धनुष तमोघ्न हो तो चुनाव उसी का करना होगा. वैसे सबसे अच्छा तो यही होता कि हाथ उठते तो बिना धनुष या तलवारों के. बस एक दूसरे के सुमति की प्रार्थनाएं लिए.
ReplyDeleteव्यापक आधार का बिंव... शायद कुछ संकुचित........ रचना सुन्दर
ReplyDeleteअभिनव प्रयोग...!
ReplyDeleteवैसे दोनों के बिना ही काम चल जाये तो चला लेना चाहिए..
“अजेय-असीम”
ReplyDeleteअंतिम ४ पंक्तियां बहुत उत्साह वर्धक और दर्शन भरी लगी |
बहुत सुंदर..
ReplyDeleteधनुष, न तलवार
ReplyDeleteन जीत, न हार
द्वेष नहीं, प्यार
जन-जन का उद्धार
प्रण लें आज अहिंसा का….
ReplyDeleteसाध लें हम आज स्वर को …
साथ हो भले धनुष तलवार…….
जीत हो सत्य की इस तरह……….
फिर न करना पड़े कोई वार …
ह्रदय आलोकित करें स्वयं का….
बिखरने दें बस प्यार ही प्यार…….
बहुत सुन्दर रचना अमृता जी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteये तो अपने ऊपर है की कैसा साम्राज्य रचना है ...
ReplyDeleteलयात्मक, भावपूर्ण रचना ...
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि नो कमेंट्स लिखकर अपना कमेंट्स दूं , पर सच में ऐसा हो नहीं पाता...
ReplyDeleteजितनी मुझे समझ में बात आई, उसके हिसाब से ये पोस्ट आपके मूड का यू टर्न है ......शायद
हार-जीत हैं दोनों हमसे
ReplyDeleteरुक कर थोड़ा करो विचार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए
धन्य धनुष या तम तलवार ?
भौतिकता की झेलो मार ,
या खुद से होलो दो दो चार
आदरणीया तन्मय जी ...
ReplyDeleteकिसे चाहिए खून घिनौना अपनों के जीवन पर वार
आओ बाँटें प्यार सदा ही रखें म्यान खूनी तलवार
सुन्दर भाव ..तीखा व्यंग्य और अच्छी प्रस्तुति
भ्रमर ५
पता ही नहीं चलता कब मन पर तलवार हावी हो जाती है और कब धनुष. कई बार लगता है कि इस पर किसी का वश नहीं. जब तक जीवन ठीक चल रहा है, सब ठीक है.
ReplyDeletebhut sunder prastuti hai
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